ड्रग थेरेपी 


के संस्करण 2016
diagnosis
treatment
causes
Drug Therapy
ड्रग थेरेपी
एन एस ए आई डी (नॉन स्टेरायडल एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएँ), साइक्लोस्पोरिन A, इम्मुनोग्लोबुलिंन (IVIG), कोर्टिकोस्टेरॉयड, एजाथिओप्रिंन, सायक्लोफोसफामाइड, मिथोट्रेक्सेट, लेफ्लूनामाइड, हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन, सलफासेलाजिंन, कोल्चीसीन, मयकोफेनोलेट मोफेटील (एम एम एफ), बायलोजिक दवाएँ, नई दवाएँ जो विकास में हैं।
evidence-based
consensus opinion
2016
PRINTO PReS
एन एस ए आई डी (नॉन स्टेरायडल एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएँ)
साइक्लोस्पोरिन A
इम्मुनोग्लोबुलिंन (IVIG)
कोर्टिकोस्टेरॉयड
एजाथिओप्रिंन
सायक्लोफोसफामाइड
मिथोट्रेक्सेट
लेफ्लूनामाइड
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन
सलफासेलाजिंन
कोल्चीसीन
मयकोफेनोलेट मोफेटील (एम एम एफ)
बायलोजिक दवाएँ
नई दवाएँ जो विकास में हैं।
प्रस्तावना
1. एन एस ए आई डी (नॉन स्टेरायडल एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएँ)
2. साइक्लोस्पोरिन A
3. इम्मुनोग्लोबुलिंन (IVIG)
4. कोर्टिकोस्टेरॉयड
5. एजाथिओप्रिंन
6. सायक्लोफोसफामाइड
7. मिथोट्रेक्सेट
8. लेफ्लूनामाइड
9. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन
10. सलफासेलाजिंन
11. कोल्चीसीन
12. मयकोफेनोलेट मोफेटील (एम एम एफ)
13. बायलोजिक दवाएँ
14. नई दवाएँ जो विकास में हैं।



प्रस्तावना

इस भाग में बच्चों के गठिया रोग संबंधित रोगों के इलाज में काम आने वाली दवाओं की जानकारी दी गई है। इसे चार भागों में बाँटा गया है।
विवरण
इस भाग में दवाओं की सामन्य जानकारी के साथ काम करने की प्रक्रिया तथा बुरे प्रभावों की जानकारी भी दी गई है।
खुराक / दवा देने के तरीके
इस भाग में दवा की खुराक, समान्यात: मि ग्रा / किलो ग्राम / प्रतिदिन व मि. ग्रा. / बी. एस. ए. (बॉडी सरफेस एरिया य मीटर2 के रूप में बताया गया है उसके साथ में दवा देने के तरीकों की भी जानकरी दी गई है (खाने की दवा / इंजेक्शन)
दुष्प्रभाव
इस भाग में सबसे अधिक देखे गए बुरे प्रभावों की जानकारी दी गई है।
बच्चों के प्रमुख गठिया संबंधित रोगों की सूचना
इस भाग में बच्चों के सभी (गठिया संबंधी) रोगों की सूचि दी गई है। इन दवाओं की मुख्य रूप से बच्चों में जाँच की गई है तथा FDA (फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन) अथवा EMA (यूरोपियन मेडिसिन एजेंसी) व्दारा बच्चों में इन दवाओं के उपयोग की स्वीकृति दी गई है।

पीडियाट्रिक लेजिस्लेशन, लेबल व ऑफ लेबल उपयोग (पूर्ण रूप से स्थापित व अस्थापित उपयोग) तथा भविष्य में इलाज की संभावना
लगबग १५ वर्ष पूर्व तक सभी दवाएँ जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थराइटिस तथा कई दूसरी बच्चों की बीमारियों के इलाज में उपयोग की जाती थी जिनका ठिक तरह से ज्ञान नहीं था। इसका अर्थ है कि चिकित्सक अपने अनुभव तथा बड़ों में दवाओं की जानकारी के आधार पर इनका उपयोग कर रहे थे।
पहले पीडियाट्रिक रयूमेटोलोजी के ट्रायल कठिन थे क्योंकि दवा बनाने वाली कंपनियों को इन ट्रायल से होने वाले कम लाभ तथा कम निवेश की वजह से इसमें अधिक रूचि नहीं थी। लेकिन कुछ वर्षों पहले इसमें काफी बदलाव हुआ है। यह बदलाव अमेरिका कें चिल्ड्रन एक्ट में सबसे अच्छी दवा कंपनियों के प्रस्ताव तथा यूरोपीयन संगठन में पीडीयाट्रीक दवाओं के विशिष्ट नियमो के कारण देखा गया है।
अमेरिका तथा यूरोपीयन संगठन का PRINTO (पीडियाट्रिक रयूमेटोलोजी इंटरनेशनल ट्रायल र्ओगेनाइजेशन) तथा PRCSG (पीडियाट्रिक रयूमेटोलोजी कोलेबोरेटिव स्टडी ग्रुप) के साथ जे आए ए के इलाज के नए विकल्पों में बड़ा योगदान है। PRINTO तथा PRCSG के कई बड़े ट्रायल किए हैं जिसमें दुनिया के कई देशों के बच्चों ने भाग लिया है इन परीक्षणों में बच्चों को प्लेसीबो दवाएँ भी दी जाती है। (दवा या इंजेक्शन जिसमें कोई सक्रिय पदार्थ नहीं होता) ताकि ट्रायल में दी गई दवाओं की तुलना की जा सके।
इन सभी परिक्षोणो की वजह से FDA , EMA तथा कई राष्ट्रिय संस्थओं ने इन दवाओं की जानकारी का संशोधन किया है तथा दवा कंपनियों को बच्चों में इनके प्रभाव तथा सुरक्षित उपयोग की अनुमति दी है।
जे आए ए के लीए जिन दवाओं की मंजूरी दी गई है। उनकी सूचि यह है - मीथोट्रेक्सेट, इटानरसेप्ट, अडालिमुमाब, टोसिलिजुमाब कनाकिनुमाब
कई सारी दवाओं का अध्ययन चल रहा है। आपके चिकित्सक आपके बच्चे के लिए इस परीक्षण में भाग लेने के लिए पूछ सकते हैं।
कई दवाए जे आए ए के इलाज के लिए मंजूर नहीं की गई है जैसे कई एन एस ए आए डी एजथायोप्रिन, साइक्लोस्पोरिन, अनाकिनरा तथा इनफ्लिक्जिमेब। इनका उपयोग बिना मंजूरी के (जिसे ऑफ लेबल उपयोग कहते है) किया जा सकता है।

सख्ती से पालन (अनुपालन)
इलाज को गंभीर तथा पूर्ण रूप से लेना कम तथा लंबे समय के फायदे के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
इलाज के अनुपालन के लिए निम्न बातें का ध्यान रखना चाहिए डॉक्टर द्वारा दी गई दवाओं का कोर्स जैसे सुनिशिचित रूप से दवा लेना, समय पर जाँच, फिजियोथेरेपी तथा दूसरे परिक्षण आदि। इन सब की वजह से बच्चे के स्वास्थ्य में सुधर आता है तथा वह रोग से अच्छी तरह लड़ सकता है। दवा की आवृत्ति तथा खुराक, शरीर में दवा का एक निश्चित अनुपात बना कर रखती है। यदि इलाज का अनुपालन ठीक से न किया जाए तो दवा का अनुपात कम हो सकता है और बीमारी बढ़ सकती है। इसके लिए दवा के शोट तथा खाने वाली दवा नियमित रूप से लेना चाहिए।
इलाज में असफलता का सबसे आम कारण अनुपालन ना करना है। पूरी मेडिकल टीम के साथ इलाज को पूरा करना कभी-कभी माता-पिता के लिए मुश्किल होता है। जैसे जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती है विशेष रूप से जब वे किशोर होते है अनुपालन मुश्किल होता है और वे उस इलाज को बीच में छोड़ देते है जो असुविधाजनक होता है। इस उम्र में बीमारी के बढ़ने का खतरा अधिक होता है यदि इलाज का ठीक तरह से अनुपालन किया जाए तो बीमारी ठीक हो सकती है और जीवन की गुणवत्ता बढ़ सकती है।


1. एन एस ए आई डी (नॉन स्टेरायडल एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएँ)

1.1 विवरण
NSAID समान्यता बच्चों के गठिया संबंधी रोगों का मुख्य इलाज है। इसकी भूमिका मुख्य है। यह मुख्य रूप से लाक्षणिक जैसे सूजन दर्द व् बुखार को कम करने वाली दवाएँ हौं। ये दवाएँ बीमारी को ठीक नहीं करती तथा उसके विकास को रोक नहीं सकती जैसे कि बड़ों में होने वाले गठिया रोग में बताया गया है लेकिन ये बीमारी के लक्षणों को कम करती है।
ये दवाएँ मुख्य रूप से एक एंन्जाइम को रोकती है जो सूजन पैदा करने वाले पदार्थ (प्रोस्टाग्लेंडिन) को बनाने के लिए जरूरी है। ये पदार्थ शरीर की क्रियाओं जैसे पेट की सुरक्षा व् गुर्दों में खून के बहाव का नियंत्रण करते है। इन प्रभावों से, NSAID दवाओं के बुरे प्रभावों की पुष्टि होती है। पहले एस्पिरिन सबसे अधिक उपयोग में ली जाने वाली दवा थी क्योंकि यह सस्ती और प्रभावी है लेकिन इसके बुरे प्रभवों की वजह से इसका उपयोग कम हो गया है। सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली NSAID दवाएँ नेप्रोक्सेन, इबुप्रोफेन तथा इंडोमेथासिन है।
आजकल कुछ नई NSAID दवाएँ उपलब्ध हैं जिन्हे साइक्लोऑक्सीजनेज (कॉक्स-२) इनहिबिटर कहते है। लेकिन बच्चों में इनके उपयोग की जानकारी सीमित है। meloxicam तथा celecoxib. इसलिए ये दवाएँ बच्चों में अधिक उपयोग नहीं की जाती है। इन दवाओं से पेट संबंधित बुरे प्रभाव कम होते है और ये दूसरी दवाओं के बराबर प्रभावी है। कॉक्स-2 इन्हीबिटर, NSAIDs की तुलना में अधिक महँगी है तथा इनकी सुरक्षा और प्रभाव से संबंधित अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। बच्चों में इन दवाओं के उपयोग सीमित है। meloxicom तथा celecoxib बच्चों में सुरक्षित पाई गई है। अलग अलग NSAIDs दवाओं के प्रभाव अलग अलग देखे गए है।

1.2 खुराक / दवा देने के तरीके
एक NSAID, दवा को उसके प्रभाव को मापने के लिए कम से कम ५ से ६ हफते देना जरूरी है। चँकि NSAID बीमारी के कोर्स को बदलने वाली दवाएं नहीं है, इनका उपयोग दर्द, जकड़न तथा बुखार को ठीक करने में किया जाता है। इन दवाओं को पिने की दवा या गोली के रूप में लिया जा सकता है।
सिर्फ कुछ NSAID दवाएँ बच्चों में उपयोग के लिए मंजूर की गई है जैसे नेप्रोक्सिन, इबुप्रोफेन, इंडोमेथेसिंन, मेलोक्सिकाम तथा सेलिकोक्सीब।
नेप्रोक्सिन
नेप्रोक्सिन को १०-२० मि ग्रा / कि ग्रा / प्रतिदिन, १२ घंटों के अंतर पर देना चाहिए।
आइबूप्रोफेन
आइबूप्रोफेन ६ माह से १२ माह की उम्र के बच्चों को ३०-४० मि ग्रा / कि ग्रा प्रतिदिन ३ से ५ खुराकों में दिया जाता है। बच्चों को समान्यता कम डोज से दवा शुरू की जाती है और धीर धीरे डोज को बढ़ाया जाता है। कम तीव्रता की बीमारी में डोज २० मि ग्रा / कि ग्रा प्रतिदिन दिया जाता है। ४०मि ग्रा / कि ग्रा / प्रतिदिन से अधिक खुराक उचित नहीं है। अधिकतम खुराक २.५ ग्रा / प्रतिदिन है।
इंडोमेथासिन
इस दवा को २ से १४ साल की उम्र के बच्चों को २-३ मि ग्रा / कि ग्रा / प्रतिदिन के डोज में दिया जाता है। अधिकतम डोज ५ मि ग्रा / की ग्रा / प्रतिदिन अथवा २०० मि ग्रा प्रतिदिन तक दिया जा सकता है। इस दवा को खाने के साथ देना चाहिए, जिससे पेट की तकलीफ कम होती है।
मेलोक्सिकाम
यह दवा २ वर्ष या उससे अधिक उम्र के बच्चों में ०.१२५ मि ग्रा / कि ग्रा / प्रतिदिन एक खुराक में दी जाती है अधिकतम डोज ७.५ मि ग्रा प्रतिदिन है। ०.१२५ मि ग्रा / कि ग्रा से अधिक डोज के कोई अतिरिक्त फायदे नहीं देखे गये है।
सेलिकोक्सीब
दवा २ साल या उससे अधिक उम्र के बच्चों में दी जाती है। १०-२५ कि ग्रा - 50मि ग्रा प्रतिदिन दो खुराक > 25 कि ग्रा - 100मि ग्रा प्रतिदिन, दो खुराक
NSAID दवाओं के आपस में एक दूसरे को प्रभवित नहीं करती हैं।

1.3 दुष्प्रभाव
सामान्यत: NSAID दवाएँ कोई समस्या पैदा नहीं करती है तथा इनके दुष्प्रभाव बड़ों की तुलना बच्चों में कम होते है। पेट की तकलीफ सबसे आम दुष्प्रभाव है। इसके लक्षण हलके पेट दर्द से लेकर गंभीर पेट दर्द तथा रक्तस्त्राव हो सकता है जिससे गहरे रंग का संडास होता है। इसलिए बच्चों को दवा हमेशा खाने के साथ लेने की सलाह दी जाती है। एन्टासिड, एच-2 ब्लोकर, मीसोप्रीस्टोलl तथा PPI जैसी दवाओं का उपयोग NSAID से होने वाले पेट संबंधी गंभीर दुष्प्रभावों से बचाने में स्पष्ट नहीं हैं। लीवर पर होने वाले बुरे प्रभाव से लिवर एंजाइम बढ़ सकते है, लेकिन इसका अधिक महत्त्व नहीं है, सिवाय एस्प्रीन के।
गुर्दा संबंधी समस्या काफी दुर्लभ है और सिर्फ उनमे होती है जिन बच्चों में पहलेसे किडनी, लीवर या दिल की कोई खराबी होती है।
सिस्टमिक जे. आए. ए. के मरीजों में NSAID से मैक्रोफेज एक्टिवेशन सिंड्रोम हो सकता है जो कि शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र के गंभीर रूप से सक्रिय होने की वजह से होता है।
NSAIDs खून के जमने को प्रभावित करता है लेकिन इसका अधिक महत्त्व नहीं है सिवाय उन बच्चों के जिनमे पहले से ही खून न जमने की खराबी होती हैं। एस्प्रीन से खून जमने की समस्याएँ अधिक होती है। इसलिए इसका उपयोग उन बीमारियों में किया जाता है जहाँ खून जमने का खतरा अधिक होता है; इन मामलों में एस्प्रीन कम खुराक में दी जाती है। इंडोमेथासिन सिस्टेमिक जे आए ए में बुखार के नियंत्रण में उपयोगी है।

1.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोग जिनमे ये दवाएँ उपयोगी है :
NSAID दवाएँ ज्यादतर सभी बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोगी है।


2. साइक्लोस्पोरिन A

2.1 विवरण
साइक्लोस्पोरिन A शरीर के रक्षातंत्र को रोकने वाली दवा है पहले इसका उपयोग अंगों के ट्रान्सप्लांट रीजेक्शन को रोकने में किया जाता था, लेकिन अब बाल गठिया संबंधी रोगों में भी इसका उपयोग होता है। यह एक विशेष प्रकार की सफेद रक्त कणिकाओं के काम को रोकता है जिनका प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में मुख्य भाग है।

2.2 खुराक / देने का तरीका
इसे पिने की दवा या गोली के रूप में लिया जा सकता है ३-५ मि ग्रा / की ग्रा प्रतिदिन २ खुराक में।

2.3 दुष्प्रभाव
दुष्प्रभाव काफी आम है सामान्यत: जब इसे अधिक डोज में लिया जाए, जो इसके उपयोग को सिमित करता है। इसमें गुर्दे की खराबी, अधिक रक्तचाप, लीवर की खराबी, मसूड़ों की सूजन, उलटी तथा शरीर पर अधिक बालों का आना आम है।
इसलिए इस दवा द्दारा इलाज करने पर नियमित रूप से डॉकटरी तथा खून की जांच करना चाहिए। बच्चों का रोज BP मापना चाहिए।

2.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोग में उपयोग:
मैक्रोफेज एक्टिवेशन सिंड्रोम

जुवेनाइल डर्मेटोमयोसिटिस


3. इम्मुनोग्लोबुलिंन (IVIG)

3.1 विवरण
इम्यूनोग्लोब्युलिंन एंटीबॉडी के समानार्थक है। IVIG को स्वस्थ आदमी के रक्त से प्लाज्मा अलग करके बनाया जाता है। प्लाज्मा खून का एक तरल भाग होता है। IVIG का उपयोग उन बच्चों के इलाज में किया जाता है जिनमे रक्षातंत्र की खराबी की वजह से एंटीबॉडी नहीं बनती है। IVIG दवाओं के काम करने की प्रक्रिया स्प्ष्ट नहीं है तथा यह हर स्थिति में अलग हो सकती है। यह कुछ गठिया रोगों तथा ऑटोइम्यून बिमारियों में सहायक है।

3.2 डोज देने का तरीका
इस दवा को नसों द्दारा रोग के आधार पर अलग अलग शेड्यूल में दिया जाता हैं।

3.3 दुष्प्रभाव
ये दुष्प्रभाव अपनेआप ठीक हो जाते है। मरीज जिन्हें कावासाकी बीमारी और कम एल्बुमिन की शिकयत होती है उनमे IVIG देने पर रक्तचाप कम हो सकता है इसलिए मरीज अच्छी देखरेख में होना चाहिए।

IVIG में हेपेटाइटिस, एच आई व्ही तथा अन्य वायरस नहीं होते है।

3.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग:

4. कोर्टिकोस्टेरॉयड

4.1 विवरण
कोर्टिकोस्टेरॉयड वह रासायनिक पदार्थ (हार्मोन) है जो शरीर में बनता है। समान प्रकार के पदार्थ बाह्य रूप से भी बनाए जा सकता है तथा इनका उपयोग बाल गठिया संबंधी रोगों के इलाज में किया जाता है।
बच्चों को दिए जाने वाले स्टीरॉयड एथिलीट द्दारा उपयोग किए जाने वाले स्टीरॉयड से अलग होते है।
स्टीरॉयड जो की सूज पैदा करने वाली अवस्थाओं में उपयोग होते है उन्हें ग्लुकोकोर्टिकोइड्स कहते है। यह वहुत तेज काम करने वाली दवा है जो की प्रतिरक्षा तंत्र के काम में रुकावट डालती है और सूजन को कम करती है। अधिकतर इनका उपयोग बीमारी के जल्द नियंत्रण के लिए किया जाता है जब तक की अन्य दवाएं कोर्टिकोस्टेरॉयड के साथ मिलकर काम करना शुरू नहीं करती।
प्रतिरक्षा तथा सूजन को कम करने वाले प्रभाव के आलावा इन दवाओं के दूसरे प्रभाव भी है जैसे हृदय संबंधी तथा तनाव की प्रतिक्रिया, पानी शक्कर और वसा का शरीर में उपयोग तथा BP का नियंत्रण।
चिकित्सा संबंधी प्रभावों के आलावा इनके दुष्प्रभाव भी है जो लम्बे उपचार की वजह से होते है। इसके लिए यह बहुत जरूरी है कि बच्चा जिस डॉकटर की देखरेख में है उन्हें बीमारी के इलाज और दवा के दुष्प्रभावों को कम करने का पूरा अनुभव होना चाहिए।

4.2 डोज / देने के तरीके
कोर्टिकोस्टेरॉयड दवाओं को मूँह से या नसों में इंजेक्शन से लिया जा सकता है अथवा जोड़ों में इंजेक्शन और ड्राप या चमड़ी पर लगाकर उपयोग किया जाता है।
डोज तथा देने का तरीका बीमारी और उसकी गंभीरता के आधार पर किया जाता है। अधिक डोज जब इंजेक्शन द्दारा दिया जाता है तो वह अधिक तीव्र और प्रभावी होता है।
खाने वाली दवाएँ अलग अलग मात्रा में उपलब्ध है। प्रेडनीसोन या प्रेडनिसोलोन सबसे अधिक उपयोग किए जाते है।
दवा के डोज तथा कितनी बार देना चाहिए इसका कोई सामन्य नियम नहीं है।
समान्यता: सुबह में अधिकतम २ मि ग्रा / की ग्रा प्रतिदिन (अधिकतम ६० मि ग्रा प्रतिदिन) अथवा हर दूसरे दिन के डोज से कम से कम दुष्प्रभाव होते है लेकिन कभी कभी दिन में दो या तिन बार बांटकर दी गई डोज बीमारी के नियंत्रण में अधिक प्रभावी होती है। गंभीर बीमारी में कई चिकित्सक अधिक दोज मे मिथाइल प्रेडनिसोलोन नसों में इंजेक्शन द्दारा देते है (ज्यादातर दिन में एक बार कई दिनों तक ३०मि ग्रा / की ग्रा प्रतिदिन, अधिकतम १ ग्रा प्रतिदिन)
कई बार प्रतिदिन छोटे डोज में नसों से इंजेक्शन दिए जाते है जब खाने वाली दवा लेने में कोई समस्या होती है।
जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थराइटिस, में सूजे हुए जोड़ों में लम्बे समय काम करने वाले कोर्टिकोस्टेरॉयड के इंजेक्शन अच्छा प्रभावी इलाज है। ट्राइमसिनोलोन छोटे क्रिस्टल के रूप में स्टीरॉयड है जो जोड़ों में इंजेक्शन देने के बाद अंदर फैल जाता है और धीरे धीरे लम्बे समय तक दवा का प्रभाव रहता है।
दवा का असर कई मरीजों में कई महीनों तक रहता है। एक बार में एक या अधिक जोड़ों में एक साथ इंजेक्शन दिए जा सकते है। इसके लिए दर्द कम करने वाले दवाएँ जैसे क्रीम या स्प्रे या लोकल तथा जनरल एनेस्थीसिया दिया जाता है। जो जोड़ो की संख्या तथा रोगी की उम्र पर निर्भर करता है।

4.3 बुरे प्रभाव
कोर्टिकोस्टेरॉयड से दो मुख्य प्रकार के दुष्प्रभाव होते है एक वह जो दवा के लंबे समय तक उपयोग से हैं और दूसरे वह जो इलाज बंद करने की वजह से होते है। यदि इन दवाओं को लगातार एक सपताह लिया जाए तो अचानक बंद नहीं किया जा सकता है क्योंकि उसके गंभीर बुरे प्रभाव हो सकते है। यह प्रभाव बाहर से दिए जाने वाले स्टीरॉयड की वजह से शरीर में अपने आप बनने वाले स्टीरॉयड के कम होने के कारण होता है।
दुष्प्रभाव सामन्यत: डोज पर निर्भर होते है जैसे समान टोटल डोज कई भागों में देने से बुरे प्रभाव दवा को रोज एक भाग में देने की तुलना में अधिक होते है। इनमे मुख्य है अधिक भूख लगना वजन बढ़ना तथा त्वचा में स्ट्रेच मार्क। इसलिए वजन को नियंत्रण में रखने के लिए संतुलित भोजन करना चाहिए जिस में वसा तथा शक्करर की मात्रा कम और फाइबर अधिक होना चाहिए। चेहरे पर मुँहासों को त्वचा पर लगाने वाली दवाओं से ठीक किया जा सकता है। नींद की समस्या, मूड में बदलाव और शरीर में कम्पन महसूस होना भी आम है। लम्बे समय तक इन दवाओं के उपयोग से शारीरिक विकास ठीक तरह से नहीं हो पाता है। इस महत्त्वपूर्ण दुष्प्रभाव को रोकने के लिए दवा को कम से कम डोज व् कम से कम समय के लिए देना चाहिए। ०.२ मि ग्रा / की ग्रा /प्रतिदिन (अथवा अधिकतम १० मि ग्रा रोज) के डोज से शारीरिक विकास की समस्या कम होती है।
रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है जिससे बार बार या गंभीर इन्फेक्शन हो सकते है जो की प्रतिरोधकता के कम होने की सीमा पर निर्भर करता है। इन बच्चों में चिकन पॉक्स गंभीर हो सकता है इसलिए लक्षण आते ही या किसी चिकन पॉक्स रोगी के संपर्क में आते ही डॉक्टर से सलाह लेना चाहिए।
हर एक स्थिति के आधार पर चिकनपॉक्स के विरुद्ध एंटीबॉडी इंजेक्शन या एंटीवायरल एंटीबायोटिक दिए जा सकते हैं।
कई छुपे हुए दुष्प्रभाव नियमित जाँच पर देखे जा सकते हैं। उनमें से एक और ऑस्टियोपोरोसिस है , जिसमें हड्डियों से कैल्शियम का क्षय हो जाता हैं जिसके कारण हड्डिया कमजोर हो जाती हैं और फेक्चर होने की संभावना बढ़ जाती है। ऑस्टियोपोरोसिस की जाँच बोन डेन्सिटोमेट्री से की जाती है। विटामिन D और कैल्शियम की पर्याप्त डोज देने पर (१००० मि ग्रा प्रतिदिन) इसे बढ़ने से रोका जा सकता है।
आँखों संबंधी बुरे प्रभाव मोतियाबिंदु तथा ग्लूकोमा हैं। यदि ब्लडप्रेशर अधिक बढ़ता है तो नमक कम लेने कि सलाह दी जाती है। खून में ग्लूकोज भी बढ़ सकता है जिससे स्टीरॉयड संबंधी डायबिटीज होती है तथा खाने में वसा और शक्कर कम लेना उपयोगी होता है।
जोड़ों में स्टीरॉयड इंजेक्शन के कोई खास दुष्प्रभाव नहीं देखे गए है। इंजेक्शन देते समय दवा के बाहर निकल जाने का खतरा होता है जिससे उस भाग की त्वचा का क्षय तथा कैलसिनोसिस हो सकता हैं। स्टीरॉयड इंजेक्शन से इन्फेक्शन का खतरा काफी कम होता है (लगभग १०,००० में एक)

4.4 मुख्य बाल गठिया रोग संबंधी उपयोग
कोर्टिकस्टिरोइड को लगभग सभी गांठिया संबंधी बिमारियों में उपयोग किया जा सकता है समान्यता: कम से कम डोज और समय के लिए उपयोग होना चाहिए।


5. एजाथिओप्रिंन

5.1 विवरण
एजाथिओप्रिंन प्रतिरोध को कम करने वाली दवा है।
यह दवा DNA के उत्पादन को रोकती है जो की कोशिकाओं के विभाजन के लिए जरूरी होता है।

5.2 डोज / देने का तरीका
यह दवा खाने वाली गोली के रूप में २-३ मि ग्रा / की ग्रा प्रतिदिन (अधिकतम १५ मिग्र प्रतिदिन) के डोज में दी जाती है।

5.3 बुरे प्रभाव
एजाथिओप्रिंन साइक्लोफोस्फामाइड की तुलना में बेहतर है फिर भी इसके कुछ बुरे प्रभाव है जिनकी समय पर पूरी तरह से जाँच होना चाहिए। पेट संबंधी समस्यां (मुहँ के छाले, उलटी, दस्त तथा पेट दर्द) आम नहीं है। सफेद रक्त कणिकाओं की संख्या कम हो सकती है तथा यह डोज संबंधी होती है। लाल रक्त कणिकाओं तथा प्लेटलेट की संख्य पर अधिक प्रभाव नहीं होता है। लगभग १०% मरीजों में रक्त संबंधी समस्या (कणिकाओं की संख्या में कमी) का खतरा अधिक होता है जो एक जेनेटिक खराबी (थयोपुरिन मीथाईलट्रांसफेरेज\ TPMT की कमी) जेनेटिक पोलिमोर्फिसम के कारण होता है। इसकी जाँच इलाज शुरू करने से पहले की जा सकती है तथा ७-१० दिन बाद खून की जाँच करना चाहिए और उसके बाद नियमित रूप से महीने में एक बार करना चाहिए।
लम्बे समय तक एजाथिओप्रिंन के उपयोग से कैंसर का खतरा बताया गया है लेकिन अभी तक उसका कोई प्रमाण नहीं मिला है।
दूसरी दवाओं की तरह एजाथिओप्रिंन से भी इन्फेक्शन (खास तोर पर हरपीज जोस्टर) का खतरा बढ़ जाता है।

5.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोग में उपयोग

6. सायक्लोफोसफामाइड

6.1 विवरण
यह एक प्रतिरक्षा कम करने वाली दवा है जो सूजन को कम करती है। यह कोशिकाओं के विभजन में रोक लगाती है DNA के उत्पादन को कम करती है तथा इसलिए उन कोशिकाओं पर प्रभाव डालती है जो तेजी से विभाजित होते है और बढ़ती हैं (जैसे रक्त कणिकाओं बाल तथा आंत की कोशिकाएं) सफेद रक्त कणिकाएं जिन्हे लिम्फोसाइट कहते है सबसे अधिक प्रभावित होते है तथा उनके कार्य और संख्या में बदलाव प्रतिरोधकता के कम होने का कारण स्पष्ट करता है। इसका उपयोग कुछ तरह के कैंसर के इलाज में किया जाता है। गठिया संबंधी रोगों में इसे इंटरमिटेंट थेरेपी के रूप में उपयोग किया जाता है जिससे दुष्प्रभाव कम होते है।

6.2 डोज / देने का तरीका
साइक्लोफोस्फामाइड खाने की दवा के रूप में (१-२ मि ग्रा /कि ग्रा प्रतिदिन) अथवा ज्यादतर नसों द्दारा दिया जाता है। (अक्सर हर मिहने पल्स थेरेपी ०.५ - १ ग्रा / मि२ x ६ माह तथा उसके बाद २ पल्स हर ३ महीने में या ५०० मि ग्रा / मि२ डोज ६ पल्स हर २ हप्ते में।)

6.3 दुष्प्रभाव
सायक्लोफोसफामाइड प्रतिरक्षा को बहुत कम करती है तथा इसके कई प्रभाव हैं जिनकी नियमित जाँच जरूरी है। सबसे आम मितली और उल्टी की शिकायत है। यह बालों को कमजोर करती है।
कभी कभी सफेद रक्त कणिकाओं तथा प्लेटलेट संख्या काफी कम हो जाती है तब डोज को कम किया जाता है या कुछ समय के लिए दवा बंद कर दी जाती है।
पेशाब में खून का आना भी हर महीने नसों द्दारा इंजेक्शन की तुलना में रोज खाने वाली दवाओं से अधिक होता है। अधिक मात्रा में पानी पीनेसे इस प्रभाव को कम किया जा सकता है। नसों द्दारा इंजेक्शन देने के बाद काफी मात्रा में फ्लूइड दिया जाता है जो शरीर से साइक्लोफोस्फामाइड को बाहर निकालता है। लम्बे समय तक चलने वाले इलाज से गर्भ धारण करने की क्षमता कम हो जाती है तथा कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। इन सभी समस्याओं का खतरा मरीज को पिछले वर्षों में दी गई दवा के कुल डोज पर निर्भर करता है।
साइक्लोफोस्फामाइड प्रतिरक्षा को कम करता है जिसका वजह से इन्फ़ेक्श्न का खतरा बढ़ जाता है विशेष रूप से जब इसे कोर्टिकोस्टिरीयोड जैसी दवाओं के साथ दिया जाता है जो स्वयं प्रतिरक्षा को प्रभावित करती है।

6.4 मुख्य बाल गठिया रोग संबन्धी उपयोग.
जुवेनाइल सिस्टेमिक लुपस एरिथमतोसिस
कुछ सिस्टिमिक वास्कूलिटिस


7. मिथोट्रेक्सेट

7.1 विवरण
यह एकऐसी दवा है जिसे गठिया रोग संबंधी बिमारियों में कई वर्षों से उपयोग किया जा रहा है। इसे पहले कैंसर के इलाज में उपयोग किया जाता था क्योंकि यह कोशिकाओं के विभाजन को धीमा करती है।
फिर भी यह प्रभाव अधिक डोज में ही महत्वपूर्ण होता है। कम मात्रा में रुक रुक कर दी जाने वाली डोज अपना अन्य प्रतिकियों के द्दारा सूजन को कम करती है। कम डोज से दवा के बुरे प्रभाव कम होते है तथा उनकी देखरेख आसान होती है।

7.2 डोज / देने का तरीका
मिथोट्रेक्सेट दो मुख्य रूपों में मिलती है: खाने वाली दवा तथा इंजेक्शन। ईसे हप्ते में एक निर्धारित दिन पर एक बार दिया जाता है। डोज १०-१५ मि ग्रा / मी2 / सप्ताह (अधिकतम २० मि ग्रा प्रति सप्ताह ) है। फॉलिक एसिड या फोलिनिक एसिड इस दवा को देने के २४ घंटे बाद देने से कुछ बुरे प्रभाव कम होते है।
डोज तथा देने का तरीका, चिकित्सक व्दारा हर मरीज की स्थिति के आधार पर किया जाता है।
खाने की दवा, यदि भोजन के पहले और पानी के साथ ली जाए तो उसका असर अधिक होता है। इंजेक्शन चमड़ी के ठीक निचे (जैसे डायबिटीज में इन्सुलिन इंजेक्शन) दिया जाता है लेकिन ऐसे मांशपेशी या कभी कभी नसों में भी दिया जा सकता है।
इंजेक्शन अधिक प्रभावी है तथा इससे पेट की खराबी की समस्या कम होती है। मिथोट्रेक्सेट थेरेपी आम तौर पर लम्बे समय की होती है और कई वर्षों तक चलती है। कई चिकित्सक बीमारी के नियंत्रण के ६-१२ महीने बाद तक इलाज जारी रखते है।

7.3 दुष्प्रभाव
ज्यादतर बच्चों में इसके दुष्प्रभाव कम होते है। उनमें मितली तथा उल्टी हो सकती है। जिसे खुराक सोते समय लेकर कम किया जा सकता है। विटामिन फॉलिक एसिड भी लाभदायक होता है।
कभी कभी दुष्प्रभाव कम करने वाली दवाओं को मिथोट्रेक्सेट के पहले या बाद में लेने से और / अथवा इंजेक्शन के रूप में दवा को लेना लाभदायक होता है। दूसरे बुरे प्रभाव जैसे मूँह के छाले तथा कभी कभी शरीर पर दाने भी हो सकते है। खून की कणिकाओं की संख्या में कमी होना तथा लीवर की खराबी बच्चों में काफी दुर्लभ है क्योंकि दूसरे लीवर को खराब करने वाले कारण जैसे शराब आदि बच्चों में नहीं होते है।
यदि लीवर एंजाइम बढ़ जाते है तो मिथोट्रेक्सेट को कुछ समय के लिए बंद कर दिया जाता है तथा ठीक होने पर फिर से शुरू किया जाता है। इसलिए इस दवा से इलाज के दौरान नियमित खून की जाँच जरूरी है। बच्चों में मिथोट्रेक्सेट के इलाज से इन्फेक्शन का खतरा समान्यता: नहीं बढ़ता है।
यदि आपका बच्चा किशोर है तो दूसरी बातें भी महत्वपूर्ण है। शराब का सेवन पूरी तरह से रोक देना चाहिए क्योंकि यह लीवर को ख़राब कर सकता है। यह दवा भ्रूण को भी नुकसान पहुंचा सकती है इसलिए इलाज के समय गर्भधारण नहीं होना चाहिए।

7.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग

8. लेफ्लूनामाइड

8.1 विवरण
जिन मरीजों को मिथोट्रेक्सेट बर्दाश्त नहीं होता या दवा असर नहीं करती उनमें लेफ्लूनामाइड एक दूसरा विकल्प है। इस दवा का जे आए ए में उपयोग का अनुभव काफी कम है और यह दवा विशेषज्ञो द्दारा मंजूर नहीं की गई है।

8.2 डोज / देने का तरीका
बच्चे जिनका वजन <२० कि ग्रा - १०० मि ग्रा प्रतिदीन उसके बाद 10 मि ग्रा हर दुसरे दीन। बच्चे जिनका वजन २०-४० की ग्रा है १०० मि ग्रा दो दिन के लिए बाद १० मि ग्रा प्रतिदिन। >५०कि ग्रा - १०० ग्रा / दिन x ३ दिन के लिए उसके बाद २० मि ग्रा प्रतिदिन।
लेफ्लूनामाइड भ्रूण में खराबी करता है इसलिए महिलाओं में इसके इलाज के पूर्व गर्भवस्था को जाँच लेना चाहिए तथा गर्भनिरोधक तरीकों को अपनाना चाहिए।

8.3 दुष्प्रभाव
उलटी और दस्त मुख्य बुरे प्रभाव है। यदि दवा विषैली प्रभाव देती है तो उसे कोलेस्टायरामिन नामक दवा से नियंत्रित कर सकते हैं।

8.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग
जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थराइटिस (इस बीमारी के इलाज के लिए यह दवा मंजूर नहीं हुई हैं)


9. हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन

9.1 विवरण
इस दवा का मुख्य उपयोग मलेरिया में किया जाता है। यह दवा सूजन पैदा करने वाली कई प्रक्रियाओं को रोकती है।

9.2 डोज / देने का तरीका
यह खाने वाली दवा के रूप में ७ मि ग्रा / की ग्रा प्रतिदिन भोजन व दूध के साथ दी जाती है।

9.3 दुष्प्रभाव
हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन ज्यादातर अछि तरह शान होने वाली दवाई है। पेट की खराबी मुख्य रूप से मितली ज्यादा आम है लेकिन गम्भीर नहीं है। यह दवा आँख के एक भाग जिसे रेटिना कहते है उसमे जमा हो जाती है और दवा बंद होने के बाद भी लम्बे समय तक रहती है।
यह समस्या बहुत दुर्लभ है लेकिन इससे आँखों की रोशिनी जा सकती है दवा बंद करने के बाद भी।
यदि इस समस्या का जल्दी पता कर लिया जाए तो दृष्टी को खोने से रोका जा सकता है। समय समय पर आँखों की जाँच होना चाहिए लेकिन जब दवा कम डोज में दी जाए तो कब और कितनी बार जाँच होना चाहिए यह निश्चित नहीं है।

9.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग

10. सलफासेलाजिंन

10.1 विवरण
सल्फासेलाजीन एक एन्टीबैक्टीरियल तथा सूजन कम करने वाली दवा है जो दोनों प्रकार से काम करती है. यह कई वर्षों पहले ज्ञात हुआ जब बड़ों में रुमेटॉयड आर्थराइटिस को एक इन्फेक्शन समझा जाता था। सलफासेलाजिंन के उपयोग लिए जो तर्क किए गई है उनके लगातार गलत साबित होने के बाद भी कुछ प्रकार के आर्थराइटिस तथा आंतों की सूजन से संबंधित बिमरियोंमें यह उपयोग है।

10.2 डोज / देने का तरीका
डोज खाने वाली दवा के रूप में ५० मि ग्रा / की ग्रा प्रतिदिन है (अधिकतम २ ग्रा प्रतिदिन)

10.3 दुष्प्रभाव
इस दवा के दुष्प्रभाव आम नहीं हैं और नियमित खुन की जाँच जरूरी हैं। इनमें पेट की खराबी, मितली, उल्टी तथा दस्त, भूख न लगना) चमड़ी पर दाने, लीवर की खराबी, रक्त कणिकाओं का कम होना तथा इम्मुनोग्लोबुलिंन का कम होना आदि हैं।
इन दवओं का उपयोग सिस्टेमिक जे आइ ए तथा जुवेनाइल एस एल ई में नहीं करना चाहिए क्योंकि यह बीमारी को गंभीर रूप से बढ़ा सकता हैं। अथवा मैक्रोफेज एक्टिवेशन सिंड्रोम का कारण हो सकता हैं।

10.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग
जुवेनाइल एडीओपथिक आर्थराइटिस (मुख्य रूप से एन्थेसाइटिस संबंधी जे आई ए)


11. कोल्चीसीन

11.1 विवरण
कोल्चीसीन दवा सदियों से जानकारी में हैं। यह कोल्चीकम के बीजों से बनती हैं जो की फेमिली लिलिएसी के फूल वाले पौधों के जीनस के अंतर्गत आता हैं। यह सफेद रक्त कणिकाओं के कार्य तथा संख्या बढ़ने को रोकता है, जिससे सूजन कम होती है।

11.2 डोज / देने का तरीका
यह खाने वाली दवा के रूप में १ - १. ५ मि ग्रा प्रतिदिन दी जाती है। कुछ मरीजों में ज्यादा डोज (२ या २. ५ मि ग्रा प्रतिदिन) की जरूरत हो सकती हैं। बहुत दुर्लभ रूप से जब दवा ज्यादा डोज में प्रभावी नहीं होती है तब इसे नसों द्दारा दिया जाता हैं।

11.3 दुष्प्रभाव
ज्यादातर बुरे प्रभाव पेट संबंधी होते है जैसे दस्त उल्टी या पेट में दर्द। इन्हें बिना लेक्टोज के भोजन तथा डोज कम करके नियंत्रित किया जा सकता है।
इन तकलीफों से आराम मिलने पर धीरे धीरे डोज को पहले की तरह बढ़ाया जा सकता हैं। कभी कभी रक्त कणिकाओं की संख्या में कमी आ सकती है इसलिए नियमित रूप से खून की जाँच व इसका इलाज होना चाहिए।
मरीज जिनमें गुर्दा व लीवर की समस्या होती है उनमें मांसपेशियों की कमजोरी हो सकती है। दवा बंद करने पर यह ठीक हो जाती हैं।
एक दूसरा बुरा प्रभाव न्यूरोपैथी है जो बहुत दुर्लभ है तथा यह धीरे धीरे ठीक होता है। शरीर पर दाने तथा बालों का झड़ना भी कभी कभी देखा जा सकता हैं।
दवा की बहुत ज्यादा मात्रा लेने पर गंभीर दुष्प्रभाव हो सकते हैं। जिसके लिए अच्छी तरह से इलाज की जरूरत होती है। ज्यादातर यह दुष्प्रभाव ठीक हो जाते हैं लेकिन कभी कभी यह घातक हो सकता है। माता पिता को खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए की दवा बच्चों की पहुँच के बाहर हो। फेमिलिअल मेडिटेरेन फीवर में कोल्चीसीन का उपयोग गर्भवस्था में स्त्री रोग विशेषज्ञ की सलाह से जारी रखा जा सकता है।

11.4 मुख्य उपयोग
फेमिलिअल मेडिटेरेन फीवर
बार बार होने वाले पेरीकार्डिटिस


12. मयकोफेनोलेट मोफेटील (एम एम एफ)

12.1 विवरण
कुछ बाल गठिया रोगों में प्रतिरक्षा तंत्र का कुछ भाग अधिक कार्य करने लगता है। यह दवा B तथा T लिम्फोसाइट (जो एक प्रकार की सफ़ेद रक्त कणिकाएँ हैं) दूसरे शब्दों में यह प्रतिरक्षा में सक्रिय कोशिकाओं के बढ़ने की दर को कम करती है। एम एम एफ इस प्रक्रिया से काम करती है। तथा दवा शुरू करने के कुछ हप्ते बाद इसका प्रभाव आता है।

12.2 डोज / देने का तरीका
यह दवा खाने की गोली अथवा पाउडर घोल के रूप में १-३ ग्रा प्रतिदिन लिया जाता है। इसे भोजन के साथ नहीं लेना चाहिए क्योंकि खाने के साथ इसे लेने से दवा का अवशोषण कम होता है यदि एक खुराक छूट गयी है तो उसे दूसरे खुराक के साथ नहीं लेना चाहिए तथा इसे ठीक तरह से बंद करके रखना चाहिए सही तौर पर एक ही दिन में अलग अलग समय पर खून के सेम्पल लेकर दवा की मात्रा की जाँच करनी चाहिए जो हर मरीज में डोस को समायोजित करने के लिए जरूरी है।

12.3 दुष्प्रभाव
सबसे आम दुष्प्रभाव पेट की खराबी है जो १०-३०% मरीजों में देखी गई है। जिसमें दस्त उल्टी, मितली तथा कब्ज की शिकायत आम हैं। यदि यह दुष्प्रभाव लम्बे समय तक रहते हैं तो कम डोस में दवा या समान प्रकार की दवा मायफोर्टिक का उपयोग लाभकारी है। इस दवा से सफ़ेद रक्त कणिकाओं / प्लेटलेट की संख्या में कमी हो सकती है, इसलिए इनकी जाँच प्रतिमाह करना चाहिए। यदि इन कणिकाओं की संख्या में कमी आती है तो कुछ समय के लिए दवा को बंद कर देना चाहिए।
इस दवा के कारण इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है तथा प्रतिरक्षा कम होने की वजह से जैविक टीकों के प्रभाव में भी रूकावट आती है। इसलिए इस दवा के चलते हुए बच्चे को जैविक टीके जैसे खसरे का टीका आदि नहीं देना चाहिए। टीकाकरण के बारे में डॉक्टरी सलाह लेना चाहिए तथा गर्भधारण नहीं करना चाहिए।
नियमित डॉक्टरी जाँच तथा खून व पेशाब की प्रतिमाह जाँच दुष्प्रभावों के नियंत्रण के लिए जरुरी है।

12.4 मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग
जुवेनाइल सिस्टेमिक ल्यूपस एरीथमेटोसस


13. बायलोजिक दवाएँ

पिछले कुछ वर्षों में नई दवाएँ जिन्हे बायलोजिक एजेन्ट कहते है, वह प्रस्तावित की गई है। ये दवाएँ बायलोजिकल इंजीनियरिंग से बनाई जाती हैं तथा विशिष्ट प्रकार के मोलिक्यूल पर काम करती हैं (टयूमर नेक्रोसिस फेक्टर / टी. एन. एफ., इन्टरल्युकिन १ व ६, टी सेल रिसेप्टर एन्टागोनिस्ट)। बायलोजिक एजेन्ट मुख्य रूप से जे. आइ. ए. में सूजन की प्रक्रिया को रोकते हैं। आजकल कई तरह के बायलोजिक एजेन्ट जे. आइ. ए. में उपयोग के लिए उपलब्ध हैं।
ये दवाएँ काफी महँगी हैं। बायोसिमिलर दवाएं इस तरह के इलाज के लिए विकसित की गई हैं ताकि मुख्य दवा के एक्सपायर होने के बाद कम कीमत पर यह उपलब्ध की जा सकें।
बायलोजिक एजेन्ट के उपयोग से इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता हैं। इसलिए मरीज / मातापिता को पूरी जानकारी देना चाहिए तथा टीकाकरण व टी. बी. रोग की जाँच भी जरुरी हैं (जैविक टीके दवा शुरू करने के पहले दिए जाने चाहिए तथा अन्य टीके इलाज के दौरान भी दिए जा सकते हैं) यदि इलाज के दौरान इन्फेक्शन होता है तो कुछ समय के लिए यह दवाएँ बंद कर देना चाहिए। दवा बंद करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरुरी हैं।
टयूमर की संभावना के लिए, एन्टी टी. एन. एफ. दवा के भाग में जानकारी उपलब्ध हैं।
गर्भावस्था में इस दवा के उपयोग पर अधिक जानकारी नहीं है लेकिन सामान्यत: इस अवस्था में दवा को बंद करने की सलाह दी जाती है।
बायोलॉजिक्स से होने वाले खतरे एन्टी टी एन एफ के समान होते हैं जबकि इन दवाओं के इलाज में मरीज कम होते हैं। इनसे होने वाली कुछ समस्यां जैसे जे आइ ए के इलाज के दौरान होने वाला मैक्रोफेज एक्टिवेशन सिंड्रोम स्वयं बीमारी की वजह से होता है न की दवा के कारण। एनाकिनरा के इंजेक्शन से होने वाले दर्द की वजह से मरीज इलाज बंद कर देते हैं। नसों व्दारा दवा देने पर एनाफाइलेक्टिक यानि गंभीर एलर्जी हो सकती है।

13.1 एन्टी टी एन एफ एजेंट
एन्टी टी एन एफ दवाएँ मुख्य रूप से टी. एन. एफ. को रोकती है जो शरीर में सूजन पैदा करता है। इन दवाओं को अकेले या मिथोट्रेक्सेट के साथ उपयोग किया जाता है। इसका प्रभाव काफी तीव्र और अच्छा है तथा कुछ वर्षों तक इलाज सुरक्षित है लेकिन लंबे समय तक इलाज के लिए नियमित जाँच जरूरी है। जे आइ ए के इलाज के लिए कई तरह के टी इन एफ ब्लोकर उपयोगी हैं जिनका देने का तरीका तथा डोज अलग अलग है। इटानरसेप्ट को सप्ताह में एक या दो बार चमड़ी के नीचे इंजेक्शन से (सबक्यूटेनियस s /c ) दिया जाता है, एडालीमुमाब हर २ सप्ताह में एक बार s /c तथा इन्फ्लीक्सिमेब को नसों में इंजेक्शन व्दारा दिया जाता है। दूसरी दवाएँ जैसे गोलिमुमाब तथा सरटोलिमुमब अभी परिक्षण में हैं।
एन्टी टी एन एफ सामान्यत: सभी प्रकार के जे आइ ए में उपयोग किए जाते हैं सिर्फ सिस्टेमिक जे आइ ए को छोड़कर जिसमें दूसरे बायोलॉजिक्स जैसे एन्टी आइ एल -1 (एनाकिनरा और कानाकिनुमाब) तथा एन्टी आइ एल -६ (टोसिलीजुमाब) उपयोग किए जाते हैं। निरंतर रहने वाले ओलिगोआर्थराएटिस का इलाज बायलोजीक एजेंट से नहीं किया जाता हैं। बायलोजीक्स को चिकित्स्कीय निगरानी में देना चाहिए।
सभी दवाएँ प्रभावी रूप से सूजन को कम करती हैं जब तक इनसे इलाज किया जाता है। बुरे प्रभाव मुख्य रूप से इन्फेक्शन जैसे टी बी की संभावना बढ़ जाती हैं।
यदि गंभीर इन्फेक्शन होता है तो दवा बंद कर दी जाती है। कुछ दुर्लभ मामलों में इस दवा से आर्थरायटिस के अलावा दूसरे ऑटोइम्यून रोग हो सकते हैं। इसके इलाज से कैंसर की संभावना का कोई प्रमाण नहीं हैं।
कई साल पहले फ़ूड तथा ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इस दवा के लंबे उपयोग से ट्यूमर (जैसे लिम्फोमा ) होने की संभावन बताई थी लेकिन अभी तक इसका कोई प्रमाण नहीं हैं जबकि ऑटोइम्यून रोग स्वयं कैंसर की संभावना को थोड़ा बढ़ा देते है (जैसे की बड़ों में होता हैं) डॉक्टर को इन दवाओं से होने वाले खतरे तथा लाभ को मातापिता को अच्छी तरह बता देना चाहिए।
चूँकि एन्टी टी एन एफ इनहिबिटर नई दवा हैं इसलिए इनका कोई लंबे समय तक उपयोग का सुरक्षा डाटा उपलब्ध नहीं हैं। अगले भागों में आजकल उपलब्ध टी एन एफ दवाओं की जानकारी दी गई है।

13.1.1 इटानरसेप्ट
विवरण यह एक टी. एन. एफ. रिसेप्टर ब्लॉकर है, इसका अर्थ यह है की यह दवा टी एन एफ को उसके रिसेप्टर जो की सूजन पैदा करने वाली कोशिकाओं पर होते हैं जुड़ने से रोकती है तथा सूजन को कम या रोक देती है जो की जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थरायटिस का मुख्य कारण है।
२१५ डोज / देने का तरीका इटानरसेप्ट को ठीक त्वचा के नीचे इंजेक्शन व्दारा हप्ते में एक बार (०. ८ मि ग्रा / की ग्रा अधिकतम ५० मि ग्रा / सप्ताह) या हफ्ते में दो बार(०. ५ मि ग्रा / की ग्रा अधिकतम २५ मि ग्रा हफ्ते में दो बार) दिया जाता है। खुद मरीज या परिवार वालों को इंजेक्शन लेना सिखाया जा सकता है।
दुष्प्रभाव इंजेक्शन वाली जगह पर लाल धब्बा खुजली तथा सूजन हो सकता है पर सामान्यत: यह कम समय व् कम तीव्रता का होता है।
मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थरायटिस पोलीआर्टिकुलर प्रकार जो दूसरे दवाएँ जैसे मिथोट्रिक्सेट से ठीक नहीं होता। जे आइ ए के साथ होने वाली युवीआइटिस को मिथोट्रिक्सेट तथा आँख में डालने वाली स्टेरोइड ड्राप से ठीक नहीं होता उसमे इटानरसेप्ट का उपयोग किया जाता है।

13.1.2 इनफ्लिक्सिमेब
विवरण इस एक किमेरिक मोनोक्लोनल एन्टीबोडी है (दवा का एक भाग चूहे के प्रोटीन से बनता है) ये एन्टीबोडी टी एन एफ से जुड़कर सूजन की प्रक्रिया को कम या रोक देती है।
डोज / देने का तरीका इनफ्लिक्सिमेब को नसों व्दारा हर ८ हफ्तों में एक बार अस्प्ताल में भर्ती करके दिया जाता है (६ मि ग्रा / की ग्रा हर बार) तथा मिथोट्रिक्सेट के साथ दिया जाता है जिससे इसके दुष्प्रभाव कम हो जाते हैं।
दुष्प्रभाव दवा के इन्फ्यूजन के दौरान एलर्जी प्रतिक्रिया हो सकती है जो की हल्के रूप (साँस लेने में तकलीफ, त्वचा पर लाल दाने व् खुजली) जिन्हे आसानी से उपचारित किया जा सकता है, से लेकर गंभीर एलर्जी के साथ रक्त चाप का कम होना तथा शॉक है। यह एलर्जिक प्रतिक्रिया सामान्यत: पहले डोज के बाद तथा माउस प्रोटीन के विरुद्ध होने वाली प्रतिरक्षा की वजह से होती है। यदि एलर्जी होती है तो दवा को बंद कर दिया जाता है। कम मात्रा में डोज (३ मि ग्रा / की ग्रा /डोज ) से भी दुष्प्रभाव का खतरा अधिक होता है, जो गंभीर भी हो सकता है।
मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग इस दवा को ऑफ लेबल उपयोग किया जाता है क्योंकि यह जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थरायटिस के लिए मंजूर नहीं है।

13.1.3 एडालीमुमाब
विवरण एडालीमुमाब एक मानवी मोनोक्लोनोल एंटीबॉडी है। जो टी एन एफ से जुड़कर सूजन को रोकती है। जो जे आइ ए के इलाज में सबसे महत्त्वपूर्ण है।
डोज / देने का तरीका इसे त्वचा के निचे सुई व्दारा हर दो हफ्ते में ज्यादातर मिथोट्रिक्सेट के साथ दिया जाता हैं। (डोज २५ मि ग्रा / मी२ / इंजेक्शन अधिकतम ५० मि ग्रा / इंजेक्शन)
दुष्प्रभाव इंजेक्शन वाली जगह पर लाल धब्बा, खुजली तथा सूजन हो सकता है जो सामान्यत: कम समय व् कम तीव्रता का होता हैं।
मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थराइटिस पोलीआर्टिकुलर प्रकार जो मीथोट्रेक्सेट से ठीक नहीं होता। जे आइ ए में होने वाले युविआइटिस में जब मीथोट्रेक्सेट तथा स्टीरोइड आइ ड्राप काम नहीं करती तब इस दवा का उपयोग किया जाता है।

13.2 दूसरे बायोलोजिक एजेंट
13.2.1 एबाटासेप्ट
विवरण एबाटासेप्ट वह दवा है जो एक अलग प्रक्रिया से काम करती है, (CTL4Ig) मॉलिक्यूल जो सफ़ेद रक्त कणिकाओं (T लिम्फोसाइट) की सक्रियता के लिए जरूरी है, पर काम करती है। आजकल इसे पोलीआर्थराइटिस के इलाज में उपयोग किया जाता है जो मिथोट्रेक्सेट व अन्य बायलोजिक एजेन्ट से ठीक नहीं होते हैं। तथा एंटी टी एन एफ दवा काम नहीं करती हैं।
डोज / देने का तरीका एबाटासेप्ट को नसों व्दारा अस्प्ताल में प्रतिमाह (६ मि ग्रा प्रत्येक इन्फुजन) मिथोट्रिक्सेट के साथ इसके दुष्प्रभाव कम करने के लिए दिया जाता है। समान उपचार के लिए एबाटासेप्ट को त्वचा के निचे सुई से देने का अध्ययन किया जा रहा हैं।
दुष्प्रभाव अभी तक कोई बड़े दुष्प्रभाव नहीं देखे गए हैं।
मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग पोलीआर्टीकूलर प्रकार के जुवेनाइल इडिओपेथिक आर्थरायटिस जिसमें मिथोट्रिक्सेट तथा एन्टी टी एन एफ दवाएँ काम नहीं करती हैं।

13.2.2 एनाकिनरा
विवरण एनाकिनरा एक प्राकृतिक मोलीक्यूल का रीकोम्बीनेन्ट प्रकार है (IL-1 रीसेप्टर एन्टागोनिस्ट) जो आर एल -1 को सूजन पैदा करने से रोकती है, विशेष रूप से जुवेनाइल इडिओपेथिक आरर्थराइटिस तथा ऑटोइन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम जैसे क्रायोपिरिन एसोसिएटेड पीरियोडिक सिंड्रोम (CAPS)
डोज / देने का तरीका एनाकिनरा को त्वचा के निचे सुई व्दारा (समान्यता: १-२ मि ग्रा / कि ग्रा अधिकतम 5 मि ग्रा / कि ग्रा कुछ कम वजन वाले बच्चों में जिनमें गंभीर फिनोटाइप होता है, कभी कभी १०० मि ग्रा प्रतिदिन प्रति इन्फुजन) सिस्टिमिक जुवेनाइल इडियोपेथिक आर्थराइटिस के इलाज में उपयोग होता है।
दुष्प्रभाव इंजेक्शन की जगह पर लाल धब्बा, खुजली तथा सूजन हो सकता है लेकिन यह कम समय व कम तीव्रता का होता है। गंभीर दुष्प्रभाव काफी दुर्लभ हैं जैसे गंभीर इन्फेक्शन, हिपेटाइटिस तथा सिस्टिमिक जे आइ ए में मेक्रोफेज एक्टीवेशन सिंड्रोम।
मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग इस दवा का उपयोग २ साल की उम्र के बाद क्रायोपिरिन असोसिएटेड पीरिआेडिक सिंड्रोम (CAPS) में किया जाता है। इसे अक्सर ऑफ लेबल सिस्टिमिक जे आइ ए के उन मरीजों में उपयोग किया जाता है जो की कोर्टिकोस्टीरोइड पर निर्भर होते हैं और कुछ दूसरे ऑटोइन्फ्लेमेटरी रोगों में।

13.2.3 कनाकिनुमाब
विवरण यह एक दूसरी पीढी की मोनोक्लोनल एन्टीबाडी है जो विशेषरूप से IL-1 मोलीक्यूल के लिए है और सिस्टिमिक जे आइ ए तथा ऑटोइन्फ्लेमेटरी सिंड्रोम जैसे CAPS में सूजन को रोकती है।
डोज / देने का तरीका कनाकिनुमाब को हर माह त्वचा के निचे सुई व्दारा (५ मि ग्रा / की ग्रा प्रत्येक इंजेक्शन) सिस्टिमिक जे आइ ए में उपयोग किया जाता हैं।
दुष्प्रभाव लाल धब्बा, खुजली, तथा सूजन, सुई लगने की जगह पर हो सकता है। जो की कम समय तथा कम तीव्रता का होता है।
मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग इस दवा को अभी कोर्टिकोस्टीरोड पर निर्भर सिस्टिमिक जे आइ ए तथा क्रायोपिरिन असोसिएटेड पीरिओडिक सिंड्रोम CAPS में उपयोग करने के लिए मंजूर किया गया है।

13.2.4 टोसिलिजुमाब
विवरण टोसिलिजुमाबएक मोनोक्लोनल एंटीबॅडी है जो इन्टरल्यूकीन -6 रीसेप्टर पर काम करती है तथा सिस्टिमिक जे आइ ए में सूजन की प्रक्रिया को रोकती है।
डोज / देने का तरीका टोसिलिजुमाब को नसों व्दारा अस्पताल में भर्ती करके दिया जाता है सिस्टिमिक जे आइ ए में इसे हर 15 दिनों में (8 मि ग्रा / कि ग्रा यदि वजन >३० कि ग्रा है अथवा 12 मि ग्रा कि ग्रा यदि वजन <३० कि ग्रा है) तथा ज्यादातर मीथोट्रेक्सेट / कोर्टिकोस्टीरोड के साथ उपयोग किया जाता है। नॅान सिस्टिमिक जे आइ ए पोलीआर्टीकुलर कोर्स में टोसिलिजुमाब को हर 4 हप्तेमें दिया जाता है (8 मि ग्रा / कि ग्रा यदि वजन 30 कि ग्रा तथा 10 मि ग्रा / कि ग्रा यदि वजन <३० कि ग्रा)
दुष्प्रभाव सामान्य एलर्जिक प्रतिक्रिया हो सकती है। दुसरे गंभीर दुष्प्रभाव काफी कम होते हैं, इनमें कुछ गंभीर इन्फेक्शन तथा हिपेटाइटिस और सिस्टिमिक जे आइ ए के मरीजों में मेक्रोफेज एक्टीवेशन सिंड्रोम आदि है। लीवर एन्जाइम में खराबी तथा सफेद रक्त कणिकाएँ जैसे प्लेटलेट तथा न्यूट्रोफिल की संख्या में कमी और लिपिड की मात्रा में बदलाव कभी कभी देखा गया है।
मुख्य बाल गठिया संबंधी रोगों में उपयोग इस दवा को अभी कोर्टिकोस्टीरोड निर्भर जे आइ ए तथा जे आइ ए जिनमें पोलीआर्टीकुलर कोर्स होता है और मीथोट्रेक्सेट से ठीक नहीं होता है उनमें उपयोग की मंजूरी दी गई है।

13.3 दूसरे बायलोजिक एजेन्ट जो उपलब्ध है या अध्ययन के अंतर्गत है।
कुछ दूसरे बायलोजिक जैसे रिलोनासेप्ट (एन्टी आए एल -1 त्वचा के नीचे सुई व्दारा) रिटुक्सीमेब (एन्टी सी डी 20 नसों व्दारा इन्फ्यूजन) टोफासिटिनिब (जे ए के-3 इन्हीबिटर, गोली के रूप में) तथा कुछ अन्य जिन्हें बडों के गाठिया रोगों उपयोग किया जाता है और बच्चों में केवल परीक्षण में हैं इन दवाओं की सुरक्षा तथा प्रभाव की जाँच अभी जारी है अथवा कुछ वर्षो में शुरु होगी / अभी बच्चों में इनके उपयोग की जानकारी बहुत सीमित है


14. नई दवाएँ जो विकास में हैं।

दवा कंपनी नई दवाएँ विकसित कर रही हैं तथा क्लिनिकल परीक्षण में काम करने वाले लोग जो कि पीडियाट्रिक रह्यूमेटोलोजी इन्टरनेशनल ट्रायल ऑर्गेनाइजेशन (PRINTO) और पीडियाट्रिक रह्यूमेटोलोजी कोलेबोरेटिव स्टडी ग्रुप (PRCSG) भी इस संबंधमें काम कर रहे हें। PRINTO तथा PRCSG प्रोटोकॉल, केस रिपोर्ट फॉर्म, डाटा एकत्रण तथा उसकी जाँच एवं रिपोर्टिंग पर काम कर रहें हैं।
डॉक्टर के दवा देने के पूर्व उसकी सावधानीपूर्वक जाँच होनी चाहिए जिससे उसकी सुरक्षा तथा इलाज करने की क्षमता निर्धारित की जा सके। सामान्यत: दवा का उपयोग पहले बड़ों में किया जाता हैं, उसके बाद बच्चों में इसलिए कुछ दवाएँ सिर्फ बड़ों के लिए उपलब्ध हैं। इन दवाओं का ऑफ लेबल उपयोग कम होना चाहिए। आप स्वयं नई दवाओं के विकास के लिए क्लिनिकल ट्रायल में भाग ले सकते हैं।
आगे की जानकारी नीचे दी गई वेबसाइट पर देखे :
PRINTO: www.printo.it | https://www.printo.it/pediatric-rheumatology/
PRCSG: www.prcsg.org

अभी चलने वाले क्लिनीकल ट्रायल :-
www.clinicaltrialsregister.eu/
www.clinicaltrials.gov

यूरोप में बच्चों की नई दवाओं के विकास के लिए स्वीकृत योजनाएँ:-
www.ema.europa.eu/ema/index.jsp?curl=pages/medicines/landing/pip_search.jsp&mid=WC0b01ac058001d129

बच्चों में उपयोग होने वाली स्वीकृत दावाएँ:-
www.ema.europa.eu
http://labels.fda.gov http://labels.fda.gov


 
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