1.1 यह क्या है?
फेमिलियल मेडीट्रेनियन फीवर एक आनुवंशिक बीमारी है, जिसमें बार बार बुखार आता है और साथ में पेट तथा जोड़ो में दर्द और सूजन भी हो जाती है। यह बीमारी आम तौर पर भूमध्यीय और मध्य पूर्व क्षेत्रों की नस्ल के लोगों में जैसे यहूदियों, तुर्कों, अरबों तथा आरमीनियाईयों को होती है।
1.2 यह बीमारी कितनी आम है?
इस बीमारी से प्रत्येक एक हज़ार व्यक्तियों में से लगभग तीन व्यक्ति प्रभावित होते हैं। अनुवंश (संबंधित) का पता लग जाने के बाद यह अन्य आबादियों मे भी पाई जाने लगी है जैसे इतालवी, यूनानी और अमरिकी ।
एफ एम एफ के 10% (प्रतिशत) मरीज़ों में यह बीमारी बीस (20) वर्ष की आयु से पहले ही होती है। इन में से आधे मरीज़ों में बीमारी के लक्षण प्रथम दस साल की आयु में ही ज़ाहिर हो जाते हैं। लड़कियों के मुकाबले यह बीमारी लड़कों में कुछ अधिक होती है। (1.3:1)
1.3 इस बीमारी के कारण क्या हैं ?
यह एक आनुवंशिक बीमारी है। इसके उत्तरदायी अनुवंश का नाम एम ई एफ वी अनुवंश है। यह उस प्रोटीन पर हमला करता है, जिसकी जलन कम करने में मुख्य भूमिका होती है। यदि इस अनुवंश में परिवर्तन होता है (जैसा कि एफ एम एफ में होता है) तो यह प्रक्रिया ठीक से नहीं हो पाती है और रोगी पर बुखार के हमले होते रहते हैं।
1.4 क्या यह बीमारी वंशागत है ?
हाँ, यह ज़्यादातर विरासत में मिलती है, लेकिन इसका लिंग भेद से कोई संबंध नहीं है। इस तरह की विरासत का मतलब होता है कि एफ एम एफ होने के लिए व्यक्ति को दो तरह के परिवर्तित अनुवंश मिलें । एक माता से तथा दूसरा पिता से प्राप्त हो, अर्थात रोगी नहीं बल्कि माता-पिता में इस बीमारी के अनुवंश होते हैं। किंतु प्रत्येक में एक-एक परिवर्तित अनुवंश ही होता है, बीमारी नहीं होती । परिवार में यह बीमारी, रिश्तेदारों में मिसाल के तौर पर किसी औलाद, रिश्ते के भाई-बहन, चाचा, मामा अथवा दूर दराज़ के परिवार जन में पाई जा सकती है। कुछ रोगियों के मामले में देखा गया है कि यदि माता-पिता में से किसी एक को एफ एम एफ है और दूसरा परिवर्तित अनुवंश का वाहक है, तो 50% संभावना है कि उनके बच्चे को यह बीमारी हो जाएगी । कुछ अल्पसंख्यक मरीज़ों में एक या दोनों अनुवंश साधारण/ठीक दिखाई देते हैं।
1.5 मेरे बच्चे को यह बीमारी क्यों हुई/ क्या इसे रोका जा सकता है?
आपके बच्चे को यह बीमारी इसलिए हुई है क्योंकि वह परिवर्तित अनुवंशों का वाहक है ।
1.6 क्या यह छूत से लगने वाली बीमारी हैं ?
नहीं, ऐसा नहीं है।
1.7 इसके मुख्य लक्षण क्या है?
बार-बार बुखार आना, साथ में पेट, सीने और जोड़ों में दर्द इस बीमारी के मुख्य लक्षण हैं। पेट में तकलीफ होना तो आम बात है। लगभग 10 प्रतिशत मरीज़ो को यह शिकायत होती है। सीने में दर्द 20% - 80% और जोड़ों में दर्द 50% - 60% रोगियों को होता है।
बच्चों को आम तौर पर विशेष किस्म की शिकायत होती है जैसे बार-बार पेट दर्द और बुखार हो जाना लेकिन कुछ रोगियों पर इसका हमला अलग तरह से होता है, एक बार में एक तकलीफ या इन में से कई एक साथ।
इस तरह के हमले सीमित अवधि के होते हैं जो एक से चार दिन में अपने आप समाप्त हो जाते हैं। एक हमले के बाद रोगी पूरी तरह ठीक हो जाता है। वह इन हमलों के बीच की अवधि में बिल्कुल सामान्य जीवन बिताता है। कुछ हमले इतने कष्टदायी होते हैं कि रोगी या उसके घरवालों को डाक्टर की मदद लेनी पड़ती है। पेट में बहुत तेज़ दर्द होने की अवस्था में कभी-कभी एपेन्डीसाइटिस होने का भ्रम होता है और कुछ रोगी तो बिना वजह ही इसका आपरेशन, भी करा बैठते हैं।
उसी रोगी में, कुछ हमले इतने हल्के होते हैं कि उन्हें पेट में गड़बड़ी होना समझा जाता है। यही एक ऐसा कारण है, जिससे इस रोग की पहचान करना मुश्किल हो जाता है। पेट दर्द की हालत में आम तौर पर बच्चे को कब्ज़ होता है लेकिन दर्द कम होने के साथ साथ मुलायम मल होने लगता है।
बच्चे को किसी हमले में बहुत तेज़ बुखार हो सकता है तो कभी शरीर का तापमान केवल हल्के रूप से बढ़ जाता है। सीने में एक तरफ दर्द की शिकायत होती है। और यह दर्द इतना तेज़ हो सकता है कि रोगी को गहरी सांस लेने में भी कठिनाई होने लगे। किंतु यह तकलीफ भी कुछ दिनों में खत्म हो जाती है।
आम तौर पर एक समय में एक ही जोड़ प्रभावित होता है (मोनो आर्थराइटिस)। यह सामान्यतः टखना या घुटना होता है। इसमें इतनी सूजन और इतना दर्द होता है कि बच्चा चल भी नहीं सकता। इस तरह के एक तिहाई रोगियों में प्रभावित जोड़ पर लाल चकत्ते होते हैं। जोड़ो पर हमले की अवधि अन्य अंगों के मुकाबले ज़्यादा होती है। इसको ठीक होने में चार दिन से दो हफ्ते तक का समय लगता है। कुछ बच्चों में बार-बार जोड़ों में दर्द तथा सूजन रोग का एक मात्र लक्षण होता है जिसे गलती से जोड़ी में दर्द की वजह से बुखार (वातज्वर) या किशोरावस्था में जोड़ों की गठिया समझ लिया जाता है।
पाँच से दस प्रतिशत मामलों में जोड़ों पर प्रभाव इतना कष्टदायक और लगातार हो सकता है कि उसका ठीक हो पाना ही संभव नहीं होता।
एफ एम एफ का एक विशेष दाग होता है जिसे एरीसिपलेस-लाइक चकत्ता कहते है जो निचले धड़ और जोड़ों पर दिखाई देता है। कुछ बच्चे पैर में दर्द की शिकायत कर सकते हैं जो बहुत तकलीफ देने वाली हो सकती है।
इस बीमारी के अतिरिक्त कभी कबार दिल की बाहरी परत पर सूजन आ जाती है। मासपैशियों में सूजन, दिमागी बुखार और अंडकोष पर सूजन होने की संभावना भी रहती है ।
1.8 इसकी अन्य जटिलताएँ क्या हैं ?
एफ एम एफ से पीड़ित बच्चों में बार बार होने वाली बीमारियों में कोष-सूजन (वैस्कुलाइटिस) जैसे-हेमख शानलिन परप्यूरा और पाली आर्टराइटिस नोडोसा दिखाई देते हैं। यदि इस बीमारी का इलाज न किया जाए, तो एक एम एफ से होने वाली सबसे गंभीर हानि, एक विशेष रूप के प्रोटीन (एमीलाइड) के विकास में होता है। यह विशेष प्रोटीन गुर्दे, आंत, खाल, दिल जैसे महत्वपूर्ण अंगों से जमा होकर धीरे-धीरे उनकी कार्यक्षमता को प्रभावित करता है और अन्तत विशेषकर गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं। यह केवल एफ एम एफ ही से जुड़ी नहीं है, बल्कि इलाज न होने की अवस्था में अन्य गंभीर बीमारियों को और पंचीदा बना देती है। इस विशेष प्रोटीन की आंत या गुर्दे में मौजूदगी से बीमारी का पता लगाया जा सकता है। जिन बच्चों को
कोल्चीसिन की खुराक बराबर और ठीक मात्रा में मिलती रहती है, उनको इस घातक पेंचीदगी के पैदा होने से निजात मिली रहती है।
1.9 क्या यह बीमारी हर बच्चे को एक ही जैसे होती है?
यह हर बच्चे में एक जैसी नहीं होती। यही नहीं, उसी बच्चे में इस बीमारी की किस्म, अवधि और गंभीरता भी अलग-अलग हो सकती है।
1.10 क्या बच्चों में यह बीमारी बड़ों से भिन्न होती है?
सामान्यतः बच्चों और बड़ों में यह बीमारी एक जैसी ही दिखाई देती है। गठिया, जोड़ो में सूजन और मायोसाइटिस बचपन में अधिक हो सकती है जो बढ़ती उम्र के साथ-साथ कम हो जाती है। अंडकोष सूजन किशोरों में विशेष रूप से पाई जाती है। जिन मरीज़ों को शुरु से ही यह बीमारी हो और उनका इलाज न किया गया हो तो विशेष प्रोटन (एमाइलोडोसिस) का खतरा बढ़ जाता है।
2.1 इसका पता कैसे लगाते हैं?
आम तौर पर निम्नलिखित तरीका अपनाया जाता है।
संदेह :
कम से कम तीन हमले होने के बाद ही बच्चे के वंश की विस्तृत जानकारी तथा समान शिकायत वाले रिश्तेदारों की पृष्ठभूमि पर विचार किया जाना चाहिए।
इसके अलावा बच्चे के माता पिता से पहले हुए हमलों की विस्तृत जानकारी ली जानी चाहिए ।
अनुवर्तन :
जब तक निश्चित रूप से मालूम न हो जाए; एफ एम एफ का संदेह होने पर बच्चे पर लगातार नज़र रखनी चाहिए। इस अवधि में यदि संभव हो तो हमले की अवस्था में ही रोगी का गहन शारीरित परीक्षण तथा रक्त जांच की जानी चाहिए ताकि सूजन का पता चल सके। आम तौर पर बीमारी की हालत में रक्त परीक्षण सकारात्मक हो सकते हैं जो बाद में सामान्य या लगभग समान्य हो जाते हैं। बीमारी का हमला होने की अवस्था में बच्चे को डॉक्टर को दिखा पाना विभिन्न कारणों से हमेशा संभव नहीं हो पाता। इसलिए माता-पिता को सलाह दी जानी चाहिए कि वे डायरी में इन हमलों के दौरान की स्थिति का विवरण दर्ज कर लिया करें। वे अपने घर के किसी नज़दीकी प्रयोगशाला में बच्चे का रक्त परीक्षण करा सकते हैं।
दवाई (कोल्चीसिन) की प्रतिक्रिया;
डॉक्टर द्वारा परीक्षण तथा प्रयोगशाला के नतीजों के आधार पर बच्चों में एफ एम एफ की संभावना होने पर कोल्चीसिन दवा लगभग छ (छह) महीने तक दी जाती है ताकि दवा का प्रभाव मालूम हो सके। यदि रोगी को एफ एम एफ है, तो दवा के असर से या तो हमले वंद हो जाएंगे अथवा उनकी तीव्रता तथा अवधि में संभावना की अपेक्षा स्पष्ट कमी आ जाएगी।
जब यह सब कदम उठा लिए जाएँ तो ही बच्चे को एफ एम एफ रोगी मानकर जीवन भर कोल्चीसिन दवा देना तय किया जाएगा।
चूकि एफ एम एफ से शरीर की अनेक प्रणालियों प्रभावित होती हैं, अतः एफ एम एफ के परीक्षण और नियंत्रण के लिए भी विभिन्न विशेष तरीके अपनाए जाते हैं। इनमें हड्डी रोग, गठिया, गुर्दे तथा पेट रोग विशेषज्ञों की भूमिका अहम हो जाती है।
अनुवंशिक समीक्षा :
पिछले कुछ वर्षों से एफ एम एफ को विकसित करने के लिए जिम्मेदार समझे जाने वाले तत्वों की समीक्षा का आनुवंशिक तरीका अपनाया जाने लगा है।
यदि रोगी में माता और पिता से एक-एक अनुवंशिक तत्व आया है तब परीक्षण में एफ एम एफ निश्चित किया जाता है। इसका मतलब यह हुआ कि ऐसे भी एफ एम एफ रोगी होते हैं जिन में यह अनुवंशिक तत्व नही होते अर्थात् उन्हें यह बीमारी विरासत में नहीं मिलती, इसलिए एफ एम एफ का पता अभी भी डाक्टरी परीक्षण से ही किया जाता है। आनुवंशिक समीक्षा की सुविधा देश में हर जगह उपलब्ध भी नहीं है।
बचपन में बुखार आना तथा पेट में दर्द होना आम शिकायत होती है। यही वजह है कि बीमारी का अधिक जोखिम रखने वाले लोगों में भी एफ एम एफ का पता लगाना आसान नहीं होता इस की सही पहचान करने में भी कई वर्ष लग जाते हैं। नतीजा यह होता है कि इलाज न करने/होने की दशा में विशेष किस्म के प्रोटीन (एमाइलोडोसिस) का बनना एफ एम एफ का सबसे पेंचीदा मामला हो जाता है जो बड़े खतरे की बात है।
बुखार, पेट और जोड़ों में दर्द की शिकायत बार बार होने पर कुछ अन्य बीमारियाँ भी हो जाती हैं। इन में एफ एम एफ वाले कुछ लक्षण समान होते हैं । यद्यापि प्रत्येक की जाँच से अलग-अलग स्पष्ट विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं।
2.2 परीक्षण का क्या महत्व है?
जैसा कि बताया जा चुका है, प्रयोगशाला परीक्षण से एफ एम एफ का पता लगाना महत्वपूर्ण है। ई सी आर,
सी आर पी, पूर्ण रक्त गणना, फाइब्रिनोजेन परीक्षण कराने से हमले से सूजन की तीव्रता का पता लगाया जाता है। यह परीक्षण हमले के 24-48 घंटों के बीच कराना चाहिए। बच्चे के लक्षण मुक्त होने के बाद यह परीक्षण फिर कराते हैं ताकि यह देखा जा सके कि नतीजा सामान्य या लगभग सामान्य निकलता है या नहीं। लगभग एक तिहाई मरीज़ों में परीक्षण का नतीजा सामान्य स्तर पर होता है। बाकी दो तिहाई मरीज़ों में बीमारी का स्तर स्पष्ट रूप से घटता हुआ दिखाई देता है लेकिन फिर भी वह सामान्य स्तर की ऊपरी हद से ऊपर होता है।
आनुवंशिक परीक्षण के लिए भी कुछ मात्रा में रक्त की जरूरत होती है। जिन बच्चों को जीवन भर कोल्चीसिन दी जा रही हो, उन्हें भी साल में दो बार परीक्षण के लिए रक्त और मूत्र का नमूना देना होता है।
प्रोटीन और लाल रक्त कोषों की मौजूदगी का पता लगाने के लिए मूत्र के नमूने की चांच की जाती है। रोग के हमले के दौरान कुछ परिवर्तन हो सकते हैं। एमाइलोडोसिस वाले रोगियों के पेशाब में प्रोटीन की मात्रा अधिक रहती है।
इसके अलावा कुछ मरीज़ों में बायोप्सी (जीवोति-जांच) भी की जाती है। इसमें गुदा द्वार से मांस का ज़रा सा अंश लिया जाता है। यह करना काफी सरल प्रक्रिया है। यदि इसमें एमल्वाइड का पता न चल सके तो बीमारी का पता लगाने के लिए रीनल बायोप्सी की जाती है। इसके लिए बच्चे को एक रात अस्पताल में रहना पड़ता है। बायप्सी के लिए निकाले गए मांस के अंश को सूक्ष्म यंत्र में जांचा जाता है।
2.3 क्या इसका इलाज संभव है ?
हाँ, जीवन पयरन्त कोल्चीसिन दवा देकर इलाज हो सकता है। वास्तव में यह इलाज नहीं है, बल्कि बच्चे पर बार-बार हमले को रोकने तथा एमाइलीडोसिस के विकास को स्तंभित करने में सहायक होता है। यदि रोगी दवा लेना बंदकर दे तो हमले और एमाइलोडोसिस के फिर हो जाने का जोखिम पैदा हो जाता है ।
2.4 तो फिर इलाज क्या है ?
एफ एम एफ का इलाज आसान, सस्ता और बिना किसी बड़े सहप्रभाव के संभव है। फिलहाल कोल्चीसिन एक मात्र दवा है जो एफ एम एफ के इलाज में इस्तेमाल की जाती है। रोग की मौजूदगी निश्चित हो जाने के बाद बच्चे को जीवन भर ये दवा लेनी पड़ती है। अगर ठीक तरीके से दवा ली जाती रहे, तो लगभग 60 प्रतिशत रोगियों पर बीमारी के हमले बन्द हो जाते हैं, 30 प्रतिशत में आंशिक फायदा होता है जबकि पाँच से दस प्रतिशत मामलों में कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।
इस इलाज से न केवल रोग के हमलों पर काबू पाया जाता है बल्कि एमाइलोडोसिस का जोखिम भी समाप्त हो जाता है। इसलिए डॉक्टर के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वह माता-पिता और बच्चे को बार-बार ज़ोर देकर समझाएँ कि निर्धारित मात्रा में दवा की खुशक रोज़ लेना कितना आवश्यक है। इस पर अमल करना बेहद ज़रूरी है। यदि एसा किया गया तो बच्चा सामान्य जीवन और सामान्य वधित जीवन अवधि तक बिता सकेगा। माता-पिता को चाहिए कि डाक्टर की सलाह के बिना दवा की मात्रा में कोई परिवर्तन अपने आप न करें ।
रोग के हमले के दौरान दवा की मात्रा बढ़ानी नही चाहिए क्योंकि इसका कोई प्रभाव नहीं होगा। महत्वपूर्ण बात यह है कि हमले को होने से रोका जाए।
ऐसी कोई दूसरी दवा भी नहीं है जिसे कोल्चीसिन के साथ मिलाया जा सके ।
2.5 इस दवा के सह प्रभाव क्या हैं ?
माता पिता के लिए यह यकीन करना आसान नहीं है कि उनके बच्चे को जीवन भर यह दवा खानी पड़ेगी। वे कोल्चीसिन के निश्चित सह प्रभावों को लेकर चिंतित हो सकते हैं। यह एक सुरक्षित दवा है जिसके मामूली सह-प्रभावों को दवा की मात्रा में कमी करके नियंत्रित किया जा सकता है। सबसे ज्यादा सह प्रभाव डायरिया/दस्त के रूप में सामने आता हैं।
पतले दस्त आने की वजह से बहुत से बच्चों के दवा की खुराक बर्दाश्त नहीं हो पाति। ऐसे बच्चों को दवा की खुराक तब तक कम की जाती है, जब तक वे इसे सहन न करने लगे । फिर धीरे-धीरे दवा की मात्रा बढ़ाते हुए उचित मात्रा तक लाई जाती है।
दूसरे सह प्रभावों में उल्टी और पेट में मरोड़ की शिकायतें शामिल हैं । कभी कमर मांसपेशियों/पुठ्ठों में कमज़ोरी भी हो सकती है लेकिन दवा की मात्रा कम कर देने से यह तललीफे दूर हो जाती है। रक्त के श्वेत और लाल कोषो में एवं प्लेटलेट्स की संख्या में जो कमी आ जाती है, वो भी दवाई की खुराक कम कर देने से पहले की तरह ठीक संख्या में आ जाती है।
2.6 यह इलाज कितने दिन चलता है?
यह जीवन पर्यन्त बचाव करने वाला इलाज है ।
2.7 किसी और गैर परम्परागत इलाज के बारे में क्या राय है?
ऐसा कोई इलाज नहीं है ।
2.8 समय-समय पर किस तरह के परीक्षण ज़रूरी है।
जिन बच्चों का इलाज किया जा रहा हो, उन्हें वर्ष में दो बार रक्त तथा मूत्र की जांच ज़रूर करनी चाहिए ।
2.9 यह बीमारी कितने दिन रहती है ?
यह पूरी ज़िंदगी बाकी रहने वाली बीमारी है।
2.10 बहुत दिनों तक बीमारी रहने से क्या होता है ?
यदि एफ एम एफ वाले बच्चे को जीवन भर कोल्चीसिन दवा दी जाती रहे तो उसका जीवन सामान्य वच्चों जैसा ही होगा। ताहम, यदि बीमारी का पता चलने में विलंब हो या इलाज पर ठीक से ध्यान न दिया जाए, तो एमाइलोडोसिस विकसित हो जाने का खतरा है, फिर कुछ नहीं किया जा सकता है।
जिन बच्चों में एमाइलोडीसिस विकसित हो जाता है, उन्हें गुर्दा बदलवाने की ज़रूरत पड़ सकती है। एफ एम एफ में मरीज़ के शरीर के बढ़ने को लेकर कोई समस्या नहीं है। कुछ बच्चों में बालिग होने के समय शरीर के बढ़ने में आई कमी को कोल्चीसिन इलाज से ठीक किया जा सकता है।
2.11 क्या पूरी तरह ठीक होना संभव है ?
नहीं, क्योंकि यह आनुवंशिक बीमारी है। लेकिन पूरे जीवन भर कोल्चीसिन दवा लेने से सामान्य जीवन बिताने का अवसर मिल सकता है किसी तरह की कोई रोक टोक नहीं होगी तथा एमाइलोडोसिस के विकास का खतरा भी नहीं होगा।
3.1 दैनिक जीवन कैसा होगा? इस बीमारी से बच्चे तथा माता-पिता का दैनिक जीवन कैसे प्रभावित होगा ?
बीमारी का पता चलने से पहले बच्चे तथा माता-पिता को काफी परेशानियाँ होती है। पेट, सीने तथा जोड़ो में तेज़ दर्द के कारण उन्हें बार-बार बच्चे को अस्पताल ले जाना पड़ता है। गलत निदान के कारण कभी कभी बच्चे की शल्य क्रिया भी की जा सकती है। बीमारी का ठीक से पता चल जाने के बाद घर वाले तथा बच्चा सामान्य जीवन बिता सकते हैं। कुछ तो यह भी भूल जाते हैं कि बच्चे को एफ एम एफ है लेकिन यह खतरनाक हो सकता है क्योंकि इससे पेंचीदगियां बढ़ जाएंगी और एमाइलोडोसिस का खतरा भी बढ़ जाता है।
एक मात्र यह समस्या मनोवैज्ञानिक भी होती है। यह विचार कि जीवन भर इलाज कराने की ज़रूरत है, परेशानी की जड़ है। इस पर रोगी तथा माता-पिता को शिक्षित करके काबू पाया जा सकता है।
3.2 स्कूल के बारे में क्या होगा ?
बार-बार बीमारी का हमला होने से स्कूल जाने की समस्या हो सकती है। कोल्चीसिन इलाज शुरु होने के बाद यह कोई गंभीर बात नहीं रहती ।
बच्चे के शिक्षकों को बीमारी के बारे में बता देना चाहिए और यह भी कि यदि स्कूल में दौरा पड़े तो वे क्या करें।
3.3 खेल कूद के बारे में क्या कहते हैं ?
एफ एम एफ रोगी बच्चा यदि कोल्चीसिन दवा ले रहा है, तो वह जिस खेल में चाहे भाग ले सकता है। एक मात्र समस्या जोड़ों की लगातार सूजन से हो सकती है जिससे प्रभावित जोड़ों का इस्तेमाल कम करना पड़ेगा ।
3.4 खान पान की कोई पाबंदी ?
खाने पीने के बारे में कोई पाबंदी नहीं है।
3.5 मौसम के कारण क्या रोग पर कोई प्रभाव पड़ता है?
नहीं, बिल्कुल भी नहीं ।
3.6 क्या बच्चे को टीके लगाए जा सकते हैं ?
हाँ, बच्चे को टीके लगाए जा सकते हैं ।
3.7. यौन जीवन, गर्भधारण, परिवार नियोजन के बारे में भी बताइए ?
एफ एम एफ रोगी को कोल्चीसिन इलाज शुरु करने से पहले प्रजनन समस्याएँ होती है लेकिन बाद में ऐसा नहीं होता। इलाज के दौरान शुक्राणु की मात्रा में कमी भी बहुत ही कम मरीज़ों में देखी गई है। गर्भधारण और स्तनपान के दौरान भी महिलाओं को दवा की सही मात्रा में खुराक लेनी चाहिए ।