१.१. यह किस प्रकार की बीमारी है?
जुवेनाइल डर्माटोमायोसाइटिस( जे. डी. एम.) एक असाधारण प्रकार की बीमारी है जिसमे त्वचा व् मांसपेशियां प्रभावित होती हैं|
यह १६ वर्ष की काम आयु में शुरू होती है इसीलिए इसे जुवेनाइल कहा जाता है|
जुवेनाइल डर्माटोमायोसाइटिस( जे. डी. एम.) ऑटो इम्यून बीमारियों के समूह में से एक माना जाता है|आमतौर से हमारी प्रतिरोधक शक्ति हमारे शरीर को संक्रमण से होने वाले रोगों से बचाती है, परन्तु इन बीमारियों में प्रतिरोधक शक्ति अलग तरह से काम करती है व् शरीर के विरुद्ध काम करने लगती है|प्रतिरोधक शक्ति की अधिक प्रतिक्रिया से प्रज्ज्वलन(इंफ्लैममेशन) होता है, जो अंगों में सूजन पैदा कर उन्हें क्षति पहुँचाता है|
जुवेनाइल डर्माटोमायोसाइटिस( जे. डी. एम.) में त्वचा(डर्माटो) की छोटी नसों में व् मांसपेशियों की छोटी रक्त कोशिकाओं में सूजन(मायोसिटिस) आने के कारण इस बीमारी के लक्षण दिखाई देते हैं| इस बीमारी का प्रमुख लक्षण मांसपेशियों में दर्द व् कमज़ोरी आना होता है,खासकर के धड़,कंधे,गर्दन व् कूल्हे की मांसपेशियों में|कई मरीज़ों की त्वचा पर विशेष प्रकार के निशान भी होते हैं जिससे इस रोग को पहचाना जा सकता है|यह निशान आँखों के इर्द गिर्द,उँगलियों पर,कोहनी व् घुटनों पर या गले में दिखाई देते हैं|यह निशान और मांसपेशियों की दिक्कत हमेशा साथ साथ नहीं होती बल्कि पहले या बाद में आ सकती है|कभी कभी अन्य अंगों की छोटी रक्त कोशिकाओं में भी इस बीमारी के कारणवश सूजन आकर दुष्प्रभाव हो सकता है|
डर्माटोमायोसिटिस, बच्चों,किशोरों व् व्यस्कों,किसी को भी प्रभावित कर सकता है|पर बालावस्था व् व्यस्कों में होने वाली बीमारी में कुछ विशेष अंतर होते हैं|व्यस्कों की बीमारी में कैंसर का खतरा ३०% तक पाया जाता है जबकि बच्चों में इस तरह का कोई सम्बन्ध नहीं पाया जाता है|
१.२ यह बीमारी कितनी आम है?
बच्चों में यह बीमारी बहुत आम नहीं है व् हर साल लगभग १० लाख में ४ बच्चों में पायी जाती है|यह लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में अधिक होती है और आमतौर से ४ से १० वर्ष की आयु में शुरू होती है पर किसी भी आयु के बच्चों को यह बीमारी हो सकती है| यह बीमारी किसी भी देश व् समुदाय के बच्चों को हो सकती है|
१.३. यह बीमारी किस वजह से होती है,क्या यह अनुवांशिक है?मेरे बच्चे को यह बीमारी क्यों हुई?क्या इस बीमारी का इलाज है?
इस बीमारी के होने की ठोस वजह अज्ञात है|विशव भर में इस विषय पर काफी अनुसन्धान चल रहा है|
यह बीमारी फिलहाल एक ऑटोइम्मुन बीमारी मानी जाती है और इसके कई कारण एक साथ होने से यह बीमारी पनप सकती है|अनुवांशिक व् पर्यावरण सम्बन्धी कारणों का एक साथ होना कदाचित इस बीमारी की शुरुआत करता है|अध्ययन से पता चला है की कुछ कीटाणु जैसे वायरस व् बैक्टीरिया की वजह से हमारी प्रतिरोधक शक्ति असामान्य रूप से प्रतिक्रिया करने लगती है|कुछ परिवार जिनमे इस बीमारी से पीड़ित बच्चे होते हैं,उनके अन्य सदस्यों में अन्य बीमारियां जैसे गठिया या डायबिटीज पायी जा सकती है|हालाँकि एक ही परिवार में एक बच्चे को यदि यह बीमारी है तब भी उसके बाद दुसरे बच्चे में इस बीमारी के होने का संयोग अधिक नहीं होता|
फिलहाल इस बीमारी की रोकथाम के लिए कोई इलाज नहीं है|ख़ास कर यह ध्यान में रखने योग्य बात है की माता पिता होने के नाते आप ऐसा कुछ भी नहीं कर सकते जिससे आपके बच्चे को यह बीमारी ना हो|
१.४. क्या यह एक संक्रमित रोग है?
यह बीमारी न ही संक्रमित है न ही छूत की बीमारी है|
१.५. इस बीमारी के प्रमुख लक्षण क्या हैं?
इस बीमारी से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति के लक्षण भिन्न भिन्न हो सकते हैं|अधिकतर बच्चों में निम्न लक्षण पाये जाते हैं:
थकान महसूस करना
इस बीमारी के कारण बच्चे अपने आप को थका हुआ महसूस करते हैं जिससे उनकी व्यायाम करने की क्षमता कम हो जाती है और धीरे धीरे उनकी दिनचर्या पर भी प्रभाव पड़ने लगता है|
मांसपेशियों में दर्द या कमज़ोरी
धड़,पेट,कमर न गर्दन की मांसपेशियों में अधिकतर यह तकलीफ होती है|शुरुआत में बच्चा लम्बे समय तक चलने के लिए मना कर सकता है या खेलने के लिए मना कर सकता है,छोटे बच्चे थोड़े चिढ़ चिड़ै हो सकते हैं व् हर समय गोद में ही रहना चाह सकते हैं| जैसे जैसे यह बीमारी बढ़ती है,बच्चों को सीढ़ी चढ़ने व् बिस्तर से उतरने में भी तकलीफ हो सकती है|कुछ बच्चों में प्रज्ज्वलित मांसपेशियों में सूजन के कारण कसाव आ जाता है जिससे मांसपेशियां कसी हुई रहती हैं व् जोड़ पूरी तरह खुल नहीं पाते खास तौर से कोहनी व् घुटने पूरी तरह खोलने में दिक्कत होती है|इससे हाथ पैरों को पूरी तरह हिलाने में तकलीफ होती है|
जोड़ों का दर्द और कभी कभी संयुक्त सूजन और कठोरता
जोड़ों में दर्द व् कभी कभी सूजन या अकड़न होना
इस बीमारी में बड़े व् छोटे दोनों जोड़ की तकलीफ हो सकती है|इस सोजिश के कारण जोड़ों में सूजन,अकड़न व् जोड़ पूरी तरह खोलने व् बंद करने में दिक्कत आ सकती है|यह तकलीफ दवाओं से बिलकुल ठीक हो सकती है व् आमतौर से जोड़ों में खराबी नहीं आती|
त्वचा पर धब्बे
इस बीमारी में आँखों के इर्द गिर्द सूजन आ सकती है(पेरी ऑर्बिटल इडिमा) व् बैगनी गुलाबी रंग के धब्बे(हेलिओट्रोप रैश) आँखों के इर्द गिर्द पड़ सकते हैं|गालों पर भी लालिमा आ सकती है(मैलर रैश) व् अन्य अंगों पर जैसे उँगलियों,घुटनों न कोहनी पर भी लालिमा आ सकती है और त्वचा मोटी हो सकती है|त्वचा की लाली मांसपेशी व् जोड़ों की तकलीफ से काफी पहले से आ सकती है|इन बच्चों को कई अन्य प्रकार की त्वचा की तकलीफ भी हो सकती है|कभी कभी आँखों के व् नाखूनों के नीचे सूजी हुई रक्त कोशिकाएं भी डॉक्टर देख पाते हैं जो इस बीमारी के निदान में मदद करती हैं|कुछ रैश धुप से बढ़ जाती है व् कुछ में त्वचा में नासूर पड़ सकते हैं|
कैल्सिनोसिस
इस बीमारी में त्वचा की भीतरी सतह में कैल्शियम जमा होने की सम्भावना होती है|कभी कभी यह बीमारी की शुरुआत में ही हो सकता है|इसके ऊपर नासूर बन कर उसमे से दूध जैसा तरल पदार्थ निकल सकता है| इसका इलाज जटिल होता है|
पेट में दर्द
कुछ बच्चों को आँतों में तकलीफ के साथ यह बीमारी शुरू हो सकती है|इसमें पेट में दर्द अथवा कब्ज़ बन सकता है|कभी कभी यह गंभीर रूप भी ले सकती है यदि आँतों की रक्त कोशिकाओं में सूजन आ जाये|
फेफड़ों में तकलीफ
मांसपेशियों में कमज़ोरी के कारण श्वास लेने में कठिनाई हो सकती है|कभी कभी आवाज़ में भी भारीपन आ सकता है व् निगलने में दिक्कत हो सकती है|श्वास में कठिनाई के कारण श्वास उखड़ने लगता है|
अधिक गंभीर परिस्थिति में धड़ से जुडी सभी मांसपेशियों में कमज़ोरी आ जाती है जिससे श्वास लेने,निगलने व् बोलने में कठिनाई हो सकती है|इसीलिए आवाज़ में बदलाव आना,खाते या पीते समय निगलने में कठिनाई होना व् श्वास उखड़ना इस बीमारी की गंभीरता के लक्षण हैं|
१.६. क्या सभी बच्चों में एक समान बीमारी पायी जाती है?
इस बीमारी की गंभीरता प्रत्येक बच्चे में भिन्न होती है|कुछ बच्चों को त्वचा की तकलीफ अधिक होती है व् मांसपेशी की कमज़ोरी बहुत कम होती है(डर्माटोमोसिटिस सिने माइोसाइटिस),जो सिर्फ जांचों के द्वारा ही पता लग पाती है|इसके विपरीत कुछ बच्चों को शरीर के कई अंगों में दिक्कत हो सकती है जैसे त्वचा,मांसपेशी,आंत,जोड़ व् फेफड़े|
२.१. क्या बच्चों में यह व्यस्कों से भिन्न है?
व्यस्कों में अधिकतर यह बीमारी शरीर में कहीं छुपे कैंसर के कारण होती है,जबकि बच्चों में कैंसर से इस बीमारी का कोई सम्बन्ध नहीं होता|
व्यस्कों में कदाचित सिर्फ मांसपेशियों की कमज़ोरी होती है जिसे पौलीमाइोसाइटिस कहते हैं,इसमें त्वचा की कोई तकलीफ नहीं होती|व्यस्कों में मांसपेशी की तकलीफ के लिए एंटीबॉडी की जांच की जा सकती जो की आमतौर से बच्चों में नहीं पायी जाती|पिछले पांच सालों में बच्चों में पायी जाने वाली एंटीबाडीज की खोज की गयी है|कैल्सिनोसिस अधिकतर बच्चों में पायी जाती है,वयस्कों में नहीं|
२.२. इस बीमारी का निदान कैसे किया जाता है?क्या इसके लिए कुछ जाँचें करवाई जाती हैं?
आपके बच्चे की शारीरिक जांच के साथ रक्त की जाँचें व् विशिष्ट जाँचें जैसे मांसपेशी के टुकड़े की जांच अथवा एम आर आई के द्वारा इस बीमारी का निदान किया जाता है|प्रत्येक बच्चे की बीमारी भिन्न होती है इसीलिए आपके चिकित्सक बच्चे के लिए उपयुक्त जाँचे करवाते हैं|जब यह बीमारी एक प्रकार विशेष की त्वचा के धब्बों या जाँघों व् बाज़ुओं की कमज़ोरी के साथ होती है तब इसका निदान कर पाना सरल होता है|शारीरिक जांच में मांसपेशियों की ताकत,त्वचा के धब्बों की जांच व् नाखून के नीचे की बारीक रक्त कोशिकाओं की जांच की जाती है|
कभी कभी यह बीमारी अन्य बीमारिओं जैसे गठीआ,लुपस या जन्मजात मांसपेशियों की कमज़ोरी आदि की तरह भी दिखाई दे सकती है|रक्त की जांचों से इस बीमारी को अन्य बीमारियों से भिन्न किया जा सकता है|
रक्त जांच
रक्त जांच करने से प्रज्ज्वलन, इम्यून सिस्टम की कार्यकारिणी व् उन दिक्कतों के बारे में पता चलता है जो मांसपेदशियों के प्रज्ज्वलन के कारण होती हैं|अधिकतर बच्चों में मांसपेशिया प्रज्ज्वलन के कारण रिसने लगती हैं|अर्थात मांसपेशियों के कणों में से प्रोटीन बाहर की ओर रिसने लगता है,इस की मात्रा के माप से बीमारी के भार का अथवा मांसपेशियों के प्रज्ज्वलन का माप किया जा सकता है|इन प्रोटीन में सबसे महत्वपूर्ण प्रोटीन मस्सल एंज़ाईमस होते हैं|रक्त की जांचों के द्वारा बीमारी का भार अथवा दवाओं के असर दोनों की ही मात्र मापी जा सकती है|सी के,एल डी एच,एलडोलेस,ऐऐसटी अथवा ऐएलटी यह पांच मस्सल एंज़ाईमस होते हैं|अधिकाँश मरीज़ों में इन पाँचों में से एक न एक की मात्र बढ़ी हुई होती है|अन्य जाँचें भी इस बीमारी के निदान में मदद करती हैं जिनमे ऐइनऐ(ANA), माइोसाइटिस स्पेसिफिक एंटीबॉडीज(MSA) व् माइोसाइटिस एसोसिएटेड एंटीबॉडीज(MAA) प्रमुख हैं|ANA व् MAA कुछ अन्य ऑटो इम्यून बिमारियों में भी देखे जाते हैं|
एमआरआई
एमआरआई की सहायता से मांसपेशियों का प्रज्ज्वलन देखा जा सकता है|
मांसपेशियों की अन्य जाँचे
बायेओप्सी( मांसपेशी के टुकड़े की जांच) से भी इस बीमारी के निदान में सहायता मिलती है व् इस का उपयोग इस बीमारी को बेहतर समझ पानी के लिए अनुसंधान में भी किया जाता है|
मांसपेशियों के कार्य करने की क्षमता को ई एम जी नामक जांच के द्वारा देखा जा सकता है,इस जांच में विशेष प्रकार की सुइओं की उपयोग किया जाता है| इस जांच का उपयोग अनुवांशिक मांसपेशियों की कमज़ोरी का पता लगाने में विशेष रूप से किया जाता है अन्यथा नहीं|
अन्य जांचें
अन्य जांचों के द्वारा विभिन्न अंगों पर प्रभाव देखा जा सकता है जैसे हृदय की पट्टी(ई सी जी) व् हृदय के इको से हृदय पर प्रभाव व् छाती के एक्स रे व् सी टी स्कैन से फेफड़ों पर प्रभाव देखा जा सकता है|खाने की नली की मांसपेशियों पर प्रभाव देखने के लिए कंट्रास्ट डाई से जांच करी जा सकती है|आँतों की जांच के लिए पेट का अल्ट्रा साउंड भी करवाया जा सकता है|
२.३. इन जांचों का क्या महत्व है?
इस रोग का निदान मांसपेशियों की कमज़ोरी को देख कर किया जा सकता है,खास कर जब जाँघों व् बाज़ुओं की कमज़ोरी हो व् त्वचा पर है तौर के धब्बे दिखाई दें जो इस बीमारी में ही पाये जाते हैं|इसके बाद जांचों के द्वारा इस रोग का निदान किया जाता है व् दवाओं के असर को देखा जाता है|मांसपेशियों की ताकत को मापने के लिए निर्धारित स्कोर किये जाते हैं जैसे चाइल्डहुड माइोसाइटिस असेसमेंट स्कोर(सीमॉस),मैन्युअल मस्सल टेस्टिंग -८ (एम एम टी-८) आदि|इसके साथ मांसपेशी के प्रोटीन की जांच करके भी प्रज्ज्वलन का भार मापा जाता है|
२.४. इलाज
इस बीमारी का इलाज संभव है|इसको जड़मूल से समाप्त नहीं किया जा सकता पर इसकी रोकथाम कर इस पर काबू पाया जा सकता है|प्रत्येक बच्चे की बीमारी के भार के अनुरूप ही उसका इलाज किया जाता है|यदि बीमारी पर काबू जल्दी नहीं पाया जाता तब खराबी आ सकती है जो लाइलाज होती है|इस कारण जो खराबी आती है वह प्रज्ज्वलन खत्म होने के बाद भी रहती है|
फिजियोथेरेपी इस बीमारी के इलाज में एक महतवपूर्ण योगदान देती है|इसी के साथ कुछ बच्चों व् उनके परिवार जनों को मानसिक सम्बल की आवश्यकता पड़ सकती है|
२.५. इस बीमारी के लिए क्या इलाज उपलब्ध हैं?
इस बीमारी में उपयोग की जाने वाली सभी दवाएं रोग प्रतिरोधक शक्ति को दबा कर प्रज्ज्वलन व् उसके कारण होने वाली हानि को रोकती हैं|
कर्टिकोस्टेरॉइड्स
यह दवाएं प्रज्ज्वलन पर बहुत जल्दी काबू पा लेती हैं|कभी कभी यह दवाएं नस के द्वारा दी जाती हैं और यह जीवनरक्षक होती हैं|
परन्तु यदि इनकी आवश्यकता अधिक मात्रा में लम्बे समय तक रहे तब इनके दुष्परिणाम भी हो सकते हैं|इन दुष्परिणामों में प्रमुख हैं शारीरिक विकास में कमी होना,उच्च रक्तचाप होना,संक्रमित रोगों में वृद्धि होना व् हड्डी का पतला होना|अधिकांश हानी अधिक मात्रा में यह दवाएं देने से होती है,कम मात्रा में यह दवा बहुत कम हानी पहुंचाती है| कर्टिकोस्टेरॉइड्स शरीर में बनने वाले कोर्टिसोल को कम कर देते हैं,कोर्टिसोल शरीर का रक्तचाप सामने रखने के लिए आवश्यक होता है,इसीलिए कर्टिकोस्टेरॉइड्स को एकदम बंद कर देने से रक्तचाप एकदम गिर सकता है व् बच्चे की स्थिति गंभीर हो सकती है| इसीलिए इन दवाओं को थोड़ी मात्रा में कम किया जाता है|कर्टिकोस्टेरॉइड्स के साथ संयोजन में अन्य दवाएं, जो की रोग प्रतिरोधक शक्ति को नियंत्रित करने में मदद करती हैं(जैसे मिथोट्रेक्सेट),भी शुरू की जा सकती हैं|
अधिक जानकारी के लिए देखें,औषध उपचार
मिथोट्रेक्सेट
यह औषधि अपना असर दिखाने में ६ से ८ सप्ताह लेती है व् अधिकतर लम्बे समय के लिए दी जाती है|इस दवा का प्रमुख दुष्प्रभाव दवा लेते समय जी मिचलाना या उलटी आ जाना होता है|कभी कभी मुंह में छाले होना,बाल अधिक गिरना, रक्त में सफ़ेद कणों का कम होना या जिगर पर सूजन आना भी इसका दुष्प्रभाव हो सकता है| जिगर की सूजन अधिक तीव्र नहीं होती परन्तु इस दवा के साथ शराब के सेवन से यह दिष्प्रभाव अधिक हो सकता है|अन्य दुष्प्रभावों को कम करने के लिए फोलिक एसिड व् फोलिनिक एसिड नमक विटामिन दिए जा सकते हैं|इस दवा को लेते हुए संक्रमित रोगों के बढ़ने की आशंका भी अनुसन्धान के दौरान बताई गयी है परन्तु रोज़मर्रा में यह नहीं देखा जाता है सिवाय चिकन पॉक्स इन्फेक्शन के|इस दवा के दुष्प्रभाव अजन्मे शिशु पर पड़ सकते हैं,इसीलिए इस दवा को लेते हुए महिलाओं को गर्भ धारण नहीं करना चाहिए|
इन औषधियों का उपयोग आमतौर से तब किया जाता है जब यह बीमारी स्टेरॉयड्स या मेथोट्रेक्सेट से काबू में नहीं आ पाती|
अन्य एंटी इंफ्लेमेटरी दवाएं:
मेथोट्रेक्सेट की ही भांति
साइक्लोस्पोरिन भी लम्बे समय तक इस बीमारी को काबू में रखने के लिए दी जाती है|लम्बे समय तक दिए जाने से इस बीमारी के कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं जैसे उच्च रक्तचाप,शरीर पर अत्यधिक बाल आना,मसूड़े सूज जाना व् गुर्दे पर सूजन आना|
माइकोफेनोलेट मॉफेटिल नामक दवा भी लम्बे समय तक दी जाती है|यह दवा लेने पर आमतौर से कोई तकलीफ नहीं होती पर कभी कभी इस दवा से पेट दर्द,दस्त व् संक्रमित रोगों में बढ़ोतरी हो सकती है|
जब अन्य दवाओं से बीमारी काबू में न आ पाये अथवा जब बीमारी बहुत तीव्र हो तब
साइक्लोफोस्फामाईड नामक दवा का उपयोग किया जाता है|
इंट्रावेनस इम्मुनोग्लोब्युलिन(आई.वी.आई.जी.)
इसमें रक्त में पायी जाने वाली एंटीबाडीज को इक्कट्ठा किया जाता है,यह नस के द्वारा दिया जाता है व् प्रज्ज्वलन को काम करने में मदद करता है|
इसके काम करने के तरीके के बारे में पूरी तरह से जानकारी नहीं है|
भौतिक चिकित्सा और व्यायाम
इस बीमारी में मांसपेशियों की मज़ोरी,जोड़ों में सूजन व् अकड़न रहती है जिसके कारण चलने फिरने में तकलीफ होती है| प्रभावित मांसपेशियों में सूजन के कारण अंगों को हिलाने में तकलीफ होती है|भौतिक चिकित्सा(फिजियो थेरेपी)की मदद से इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है|बच्चों व् अभिभावकों को मांसपेशियों की ताकत व् फिटनेस के बारे में सिखाया जाता है|व्यायाम से मांसपेशियों में ताकत बानी रहती है व् यह महत्वपूर्ण है की अभिभावक इसमें बच्चों को प्रोत्साहित करते रहे जिससे वह लम्बे समय तक व्यायाम सरलता से कर पाएं|
सह औषध
सही मात्र में कैल्शियम व् विटामिन डी लेना अत्यंत महत्वपूर्ण है|
२.६.इलाज कब तक चलना चाहिए?
प्रत्येक बच्चे के लिए इलाज का दौरान भिन्न होता है और बीमारी की तीव्रता पर निर्भर करता है|अधिकतर बच्चों का इलाज १-२ वर्ष तक चलता है पर कुछ बच्चों का इलाज कई साल तक चल सकता है|इलाज का प्रमुख लक्ष्य बीमारी पर काबू पाना होता है|जब बच्चे की बीमारी लम्बे समय तक असक्रिय रहती है तब दवा धीरे धीरे काम कर के बंद करी जाती है|बीमारी को असक्रिय तब कहा जाता है जब बच्चे में बीमारी के कोई भी लक्षण न दिखें व् रक्त की सभी जाँचे भी सामान्य हों|असक्रिय बीमारी को सावधानी से परखना पड़ता है व् सभी पहलुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है|
२.७. अपरम्परागत व् वैकल्पिक चिकित्सा पद्धत के बारे में बताएं?
इस बीमारी के लिए कई तरह की अपरम्परागत व् वैकल्पिक चिकित्सा बताई जाती हैं जो परिवारजनों को भ्रमित कर सकती हैं|इनमें से अधिकतर चिकित्सा पद्धतियों के सफल होने का कोई ठोस सबूत नहीं है|इन चिकित्सा पद्धतियों को शुरू करने के पहले इनके बारे में विस्तार से जानना चाहिए क्योंकी अधिकतर इनकी वजह से समय व् पैसे की बर्बादी होती है व् बच्चे पर भारी भी पड़ता है|यदि अभिभावक इन चिकित्सा पद्धतियों को आज़माना चाहते हैं तब बेहतर होता है यदि वह इस बारे में अपने बच्चों के गठिया रोग विशेषज्ञ से सलाह मश्वरा कर लें क्योंकि कुछ दवाएं आपस में एक दूसरे के विपरीत भी कार्य कर बच्चे को नुक्सान पहुंचा सकती हैं|अधिकतर आपके चिकित्सक को अन्य पद्धति की दवा साथ में देने से कोई आपत्ति नहीं होगी|यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है की आप दवाएं खास तौर से स्टेरॉयड्स अपने आप बिना चिकित्सक की सलाह के बंद न करें क्योंकि यह दवाएं बंद करने से बीमारी की तीव्रता बढ़ सकती है|यदि आपको दवाओं के या बीमारी के विषय में कोई भी संदेह हो या प्रश्न हो तो निस्संकोच अपने चिकित्सक से इस विषय पर चर्चा करें|
२.८. जांच पड़ताल
नियमित रूप से जांच महत्वपूर्ण होती है|इन मुलाकातों के दौरान बच्चे की बीमारी व् दवाओं से हो सकने वाले दुष्प्रभाव की जांच की जा सकती है|क्योंकि यह तकलीफ शरीर हे हर अंग में हो सकती है इसीलिए पूरी शारीरिक जाँच करना आवश्यक होता है|कुछ मुलाकातों में मांसपेशियों की ताकत भी विशेष स्कोर के द्वारा की जाती है|दवाओं के असर व् बीमारी की तीव्रता देखने के लिए समय समय पर रक्त की जाँच भी करनी होती है|
२.९. प्रोग्नोसिस (दीर्घ कालिक परिणाम)
यह बीमारी आम तौर से तीन में से एक तरह से रूप लेती है:
मोनोसाइक्लिक दौर: इसमें बीमारी एक बार तीव्र रूप से आती है और आम तौर से दो साल के अंदर अंदर शांत हो जाती है व् इसके लक्षण दोबारा दिखाई नहीं देते;
पॉलीसाइक्लिक दौर: इसमें बीमारी लम्बे समय के लिए शांत हो जाती है(इस दौरान बीमारी का कोई भी लक्षण देखने में नहीं आता और बच्चा ठीक रहता है) पर बीमारी के लक्षण फिर से दिखाई देने लगते हैं,अधिकतर यह लक्षण दवा कम करने अथवा रोकने पर वापिस आते हैं|
क्रोनिक सक्रिय दौर:इस प्रकार की बीमारी की विशेषता है की इलाज के बाद भी बीमारी सक्रिय रहती है(क्रोनिक रेमिटेंट सक्रिय दौर); इस तरह की बीमारी में सबसे अधिक जटिलताएं पायी जाती हैं|
इस बीमारी से पीड़ित बच्चे व्यस्कों की तुलना में बेहतर रहते हैं और उन्हें कैंसर होने की सम्भावना भी कम होती है|जिन बच्चों को अंदरूनी अंगों पर इस बीमारी का प्रभाव होता है जैसे की दिमाग,आंतें,फेफड़े व् दिल इत्यादि,उन बच्चों की बीमारी अधिक तीव्र होती है|यह बीमारी जानलेवा भी हो सकती है पर यह इस पर निर्भर करता है कि बीमारी कि तीव्रता कितनी है, बीमारी कि वजह से कौन से अंगों पर प्रभाव पड़ा है और त्वचा के नीचे कि परत पर कैल्शियम का जमाव(कालसिनोसिस) तो नहीं हो गया है|दीर्घ कालिक तकलीफें आम तौर से मांसपेशियों के छोटे हो जाने से(कॉंट्रक्चर),मांसपेशियां पतली होना व् कालसिनोसिस कि वजह से होती हैं|
३.१. इस बीमारी कि वजह से मेरे बच्चे और मेरे परिवार के दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
दीर्घ कालिक बीमारी होने के कारण यह बीमारी पूरे परिवार के लिए एक चुनौती होती है,खास तौर से जब तीव्र बीमारी होती है|इस बीमारी से होने वाले मानसिक तनाव कि ओर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए|यदि माता पिता को इस बीमारी का सामना करने में दिक्कत होगी तो बच्चे के लिए बीमारी का सामना करना अधिक मुश्किल होगा|माता पिता का रवैया बच्चे को प्रोत्साहित करने वाला व् उसे आत्मनिर्भर करने वाला होना चाहिए| इससे बच्चे को बीमारी से आने वाली दिक्कतों का सामना करने का साहस मिलता है व् उसमें आत्मनिर्भरता आती है|गठिया रोग विशेषज्ञ को आवश्यकता पड़ने पर अभिभावकों व् बच्चे को मानसिक प्रोत्साहन देना चाहिए|
इस बीमारी से पीड़ित बच्चा बड़ा हो कर एक साधारण व्यस्क जीवन व्यतीत कर पाये,यह इस बीमारी के इलाज का एक मुख्य लक्ष्य होता है ओर आम तौर से यह लक्ष्य पाया जा सकता है|पिछले दस वर्षों में इस बीमारी के इलाज में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है ओर आशा कि जाती है कि आने वाले कुछ वर्षों में इस बीमारी के इलाज के लिए कई नयी औषधियां उपलब्ध हो सकेंगी|नियामत व्यायाम व् दवाओं की मदद से अब मांसपेशियों की खराबी को रोक सकते हैं|
३.२. क्या व्यायाम व् कसरत मेरे बच्चे की मदद कर सकते हैं?
व्यायाम ओर शारीरिक थेरेपी से बच्चे के जीवन की सभी सामान्य दैनिक गतिविधियों में भाग लेने की लिए मदद करते हैं ओर समाज में अपनी पूरी क्षमता से कार्य करने में सहायक होते हैं|
व्यायाम और शारीरिक थेरेपी का इस्तेमाल सक्रीय व् स्वस्थ रहने की लिए प्रोत्साहित करने में भी किया जाता है|स्वस्थ व् सक्रिय जीवन व्यतीत करने की लिए स्वस्थ व् ताकतवर मांसपेशियों की आवश्यकता होती है|व्यायाम से मान्स्पेशिओं की ताकत,लचीलापन व् स्टैमिना बढ़ाया जाता है|मांसपेशियों की स्वस्थ होने से बच्चे शैक्षिक व् अन्य गतिविधियों में सक्रिय रूप से भाग लेने में मदद मिलती है|इलाज व् व्यायाम से सामान्य फिटनेस की स्तर को पाया जा सकता है|
३.३.क्या मेरा बच्चा खेलकूद में भाग ले सकता है?
खेलकूद में भाग लेना हर बच्चे की जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है|व्यायाम का एक प्रमुख लक्ष्य होता है की बच्चा एक सामान्य जीवन व्यतीत कर सके व् अपने को अपने साथियों से कम महसूस न करे|आम तौर से अभिभावकों को यही सलाह दी जाती है की बच्चे को सभी तरह की खेल कूद में हिस्सा लेने दें पर यदि मांसपेशियों में दर्द हो तो उसे कुछ समय की लिए आराम करवाएं|पूरी तरह से खेलकूद बंद कर देने से बेहतर है की बच्चा थोड़ा व्यायाम करे व् अपने मित्रों की साथ थोड़ा समय खेल पाये|बच्चा अपनी बीमारी की निम्मित्त जितना आत्मनिर्भर हो पाये उतना ही बेहतर है|व्यायाम फिजियो थेरेपिस्ट की सलाह से व् उनकी देखरेख में ही होना चाहिए|मांसपेशियों के बल को देख कर फिजियो थेरेपिस्ट निरिक्षण दे सकते हैं की कौनसे खेल व् व्यायाम बच्चा बिना कोई नुकसान पहुचाये कर सकता है|मांसपेशियों की ताकत व् बल के बढ़ने के साथ ज़्यादा कार्य करवाया जा सकता है|
३.४. क्या मेरा बच्चा प्रतिदिन विद्यालय जा सकता है?
व्यस्कों के लिए जो महत्व उनके कार्यक्षेत्र का होता है,बच्चों के लिए वही महत्व उनके शिक्षा के स्थल का होता है,वहां वह स्वावलम्बी व् आत्मनिर्भर होना सीखते हैं|माता पिता व् शिक्षकों को बच्चे को सामान्य रूप से सभी गतिविधियों में भाग लेने देने के लिए प्रोसहित करना चाहिए व् उनकी मदद करनी चाहिए|इससे बच्चे का आत्मविश्वास बढ़ेगा व् वह अपने को अपने मित्रों से अलग महसूस नहीं करेगा व् इससे उसे शैक्षिक सफलता में भी मदद मिलेगी| यह अत्यंत महत्वपूर्ण है की बच्चे जितना हो सके उतना नियामत रूप से स्कूल जाएं|कुछ पहलू हैं जो नियामत स्कूल जाने में कठिनाई पैदा कर सकता हैं जैसे:चलने फिरने में कठिनाई,थकान,दर्द व् अकड़न|इसीलिए यह ज़रूरी है की शिक्षकों को इस बात से अवगत करवाया जाये की बच्चे को कुछ क्षेत्रों में मदद की आवश्यकता हो सकती है जैसे: लिखने में तकलीफ होने पर सही ऊंचाई की मेज़ का प्रयोग करना,बीच में उठ कर थोड़ा सा चलना फिरना जिससे अकड़न न हो और कुछ शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने में मदद आदि| बच्चों को जितना भी हो सके उतना शारीरिक गतिविधियों में भाग लेना चाहिए|
३.५.क्या खान पान से मेरे बच्चे को मदद मिल सकती है?
ऐसा कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं है की किसी विशेष प्रकार के खान पान से इस बीमारी के दौर पर कोई असर पड़ता हो,परन्तु संतुलित आहार ही लिया जाना चाहिए|सभी बच्चों के लिए स्वस्थ, संतुलित आहार, जिसमें प्रोटीन,विटामिन,कैल्शियम सही मात्र में हों,देने की सलाह दी जाती है|अधिक मात्र में खाना इन बच्चों के लिए हानिकारक होता है क्योंकि उन्हें स्टेरॉयड्स लेने से अधिक भूख लगती है और अधिक खाने से उनका वज़न बहुत बढ़ सकता है जो उन्हें हानि पहुंचाता है|
३.६. क्या वातावरण से मेरे बच्चे की बीमारी के दौर पर असर पड़ सकता है?
यू.वी.किरणों व् इस बीमारी में सम्बन्ध पर फिलहाल अनुसन्धान चल रहा है|
३.७. क्या मेरे बच्चे को संक्रमित रोगों से बचने के लिए टीके लगाये जा सकते हैं?
टीकाकरण के विषय में आपको अपने चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए जो आपको बता सकते हैं की कौन से टीके बच्चे को बिना नुक्सान पहुंचाए दिए जा सकते हैं|कुछ टीकों को लगवाने की सलाह इस बीमारी में विशेष तौर से दी जाती है जैसे: पोलियो का टीका,टेटनस,डिफ्थीरिया,इन्फ्लुएंजा का टीका व् न्यूमोकोकस का टीका|यह अजीवित टीके होते हैं जो इस बीमारी में भी सुरक्षित रूप से दिए जा सकते हैं|जीवित कीटाणुओं वाले टीके जैसे मम्प्स,रूबेला,मीजिलस,पोलियो ड्रॉप्स इस बीमारी में नहीं दिए जाने चाहिए क्योंकि इस बीमारी में दी जाने वाली दवाओं की वजह से रोग प्रतिरक्षा शक्ति कम हो सकती है व् बच्चों को इन टीकों के द्वारा संक्रमित रोग होने का खतरा हो सकता है|
३.८.क्या इस बीमारी की वजह से यौन सम्बन्ध,गर्भावस्था व् जन्म नियंत्रण में कोई बाधा आ सकती है?
इस बीमारी का यौन सम्बन्ध या गर्भावस्था पर कोई नुकसान नहीं पाया गया है परन्तु इसके इलाज में उपयोग की जाने वाली दवाएं अजन्मे शिशु को हानि पहुंचा सकती हैं|यौन सक्रीय रोगियों को उपयुक्त गर्भनिरोध साधन अपनाने चाहिए व् गर्भ निरोध व् गर्भ धारण सम्बन्धी मसलों पर अपने चिकित्सक से सलाह करनी चाहिए|