1.1 यह क्या है?
पी.एफ.ए.पी.ए. का मतलब सामायिक बुखार के साथ छाले गले तथा लिम्फ नोड्स की सूजन है। यह चिकित्सा शब्द है जो बुखार के बारम्बार होने वाले हमलों के कारण दिया है। बुखार के साथ गले व लिम्फ नोड्स में सूजन, गले में खराष और मुंह मे छाले होते है। आम तौर पर पी.एफ.ए.पी.ए. शुरूआत में ही पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है। यह एक दिर्घकालिक समस्या है परन्तु समय के साथ सम्पूर्ण तरीके से ठिक होने कि सम्भावना होती है। सन् 1987 मे इस बिमारी को पहली बार जाना गया और तब उसे मार्षल सिंड्रोम कहा जाता था।
1.2 क्या यह आम बिमारी है?
पी.एफ.ए.पी.ए. की आवृति ज्ञात नही है लेकिन आम तौर पर यह बीमारी सराहना की तुलना में अधिक आम है।
1.3 इस बीमारी के कारण क्या है?
बीमारी का कारण अज्ञात है। बुखार के दौरान, प्रतिरक्षा प्रणाली सक्रिय होती है। इस सक्रियण से बुखार के साथ गले व मुख की सूजन हो जाती है। यह प्रदाह स्वः सिमित है जिसके दो प्रकरण के बीच प्रदाह के रूप में कोई संकेत नही मिलते है। हमलो के दौरान कोई संक्रामक घटक मौजुद नही है।
1.4 क्या यह विरासत में मिली है?
पारिवारीक मामलों में इसे वर्णित किया गया है लेकिन इसके आज तक कोई अनुवांषिक कारण नही मिले है।
1.5 क्या यह संक्रामक है?
यह एक संक्रामक बीमारी नही है और ना ही फैलती है, लेकिन संक्रमण इस बीमारी को बढ़ावा दे सकते है।
1.6 इसके मुख्य लक्षण क्या है?
इसके मुख्य लक्षण समय - समय से आने वाले बुखार के साथ, गले में खराष, मुंह मे छालें और बढ़े हुए गले के लिम्फ नोड्स (प्रतिरक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा) होते है। बुखार के प्रकरण अचानक शूरू होते है जो तीन से छः दिनों तक रहते है। बुखार के दौरान बच्चा बहुत बीमार लगता है और उपर्युक्त तीनों लक्षणों में से कम से कम एक से ग्रसित होता है। बुखार के प्रकरण हर 3-6 हफ्तों में बार-बार आते है, कभी-कभी बहुत ही नियमित अंतराल पर आते है। दो प्रकरण के अंतराल में बच्चा बिलकुल सामान्य रहता है। बच्चें के विकास पर कोई बुरा परिणाम नही दिखता है, हमलो के अतंराल मे बच्चा पूरी तरह से स्वस्थ दिखाई देता है।
1.7 क्या यह रोग हर बच्चे में समान होता है?
ऊपर वर्णित मुख्य विषेशताएं सभी बच्चों में पाई जाती है। कुछ बच्चों में रोग का मामूली स्वरूप हो सकता है, और कुछ में अस्वस्थता, जोड़ो मे दर्द, पेट दर्द, सिर दर्द, उल्टी या दस्त के रूप में अतिरिक्त लक्षण हो सकते है।
2.1 इसका निदान कैसे होता है?
पी.एफ.ए.पी.ए. के निदान के लिये विशिष्ट प्रयोगशाला परीक्षण और इंमेजिंग प्रक्रिया नही होती है। रोग का निदान शारीरिक परिक्षा और प्रयोगशाला परिक्षणों के संयोजन पर आधारित होता है। इस बिमारी का पक्का निदान करने से पहले समान लक्षणों वाली अन्य बिमारीयों को अलग करना जरूरी होता है।
2.2 किस प्रयोगशाला परीक्षा से इस बिमारी का निदान किया जाता है?
इ.एस.आर. और सी-रियाक्टिव प्रोटीन (सी.आर.पी.) का खून में अधिक मात्रा में होना इस बिमारी के मुख्य प्रयोगशाला जांच होती है।
2.3 क्या इसका जड़ से इलाज संभव है?
पी.एफ.ए.पी.ए. सिंड्रोम के इलाज के लिये कोई विषेश उपचार नही है। इसका मुख्य उद्देश्य बुखार के प्रकरण के उपचार के दौरान लक्षणों को नियंत्रित करना है। अधिकांश बच्चों में समय के साथ बिमारी के कम हो जाते है नजर आते है या अनायास ही गायब हो जाते है।
2.4 इसका उपचार क्या है?
आम तौर पर लक्षणों के लिये पेरासिटामोल या
नॉन-स्टेरायडल एण्टी-इंफ्लामैन्ट्री दवाओं का विषेश असर नही होता है, लेकिन यह दर्द पर कुछ राहत जरूर प्रदान करते है। पहले लक्षण दिखाई देने पर प्रेडनिसोन की एक खुराक दी जाती है, जिससे हमले कि लम्बाई कम होने मे मदद होती है। किन्तु इससे बुखार के दो प्रक्ररण के बिच का अतंराल कम होने कि सम्भावना भी बनती है और बुखार पहले की तुलना मे जल्दी आ सकता है। जिन बच्चों की या उनके परिवार की दिनचर्या इस बिमारी से बाधित हो रही हो उनमें टॉन्सील्स निकालने का सलाह दी जाती है।
2.5 रोग का निदान (भविष्यवाणी परिणाम और पाठ्यक्रम) क्या है?
यह बिमारी कुछ सालों तक बनी रहने कि सम्भावना होती है। उसके बाद बुखार के दो प्रक्ररण के बिच की अवधि बढ़ जाती है और लक्षण धीरे-धीरे गायब हो जाते है।
2.6 क्या इसे पूरी तरह से ठिक कर पाना सम्भव है?
आम तौर पर यह कम गंभीर होती है। लम्बे समय मे, पी.एफ.ए.पी.ए. अनायास ही गायब हो जाता है या वयस्क हो ने से पहले खत्म हो जाता है। पी.एफ.ए.पी.ए. के मरीजों में अधिक हानि नहीं होती है। इस रोग से बच्चे की वृद्धि और उसके विकास पर कोई प्रभाव नही पड़ता है।
3.1 यह रोग बच्चे और परिवार की दैनिक जीवन को किस तरह प्रभावित कर सकता है?
जीवन की गुणवत्ता बुखार के बार बार आने से प्रभावित हो सकती है। सही निदान के लिये कभी-कभी काफी लम्बा इंतजार करना पड़ सकता है जिससे माता पिता की चिंता बढ़ जाती है और अनावश्यक ईलाज दिया जाता है।
3.2 क्या इससे स्कूल जाना प्रभावित हो सकता है?
नियमित रूप से बुखार आने से स्कूल में उपस्थिति पर प्रभाव पड़ सकता है। दिर्घकालीक बिमारी में भी बच्चे की शिक्षा जारी रहना जरूरी है। ऐसे कारण जिनसे स्कूल की उपस्थिती प्रभावित हो सकती है उनकी जानकारी शिक्षक को देना जरूरी है। पालक एवं शिक्षक की इस बिमारी वाले बच्चों को सभी गतिविधीयों में सामान्य बच्चों जैसे भाग लेने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिये। दिर्घकालीक बिमारी होने के बावजूद व्यवसायिक जगत में इन बच्चों को सामान्य लोगों के जैसे हि समाहित करना जरूरी है।
3.3 क्या यह बच्चे खेल में भाग ले सकते है?
खेल खलना किसी भी बच्चें की दैनिक दिनचर्या का एक अनिवार्य पहलू है। चिकित्सा के उद्देश्य से बच्चों को सामान्य जीवन संभव कराने और अपने साथियों से खुद को अलग ना करने के विचार को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिये।
3.4 आहार कैसा होना चाहिएँ?
कोई विषेश आहार की सलाह नही दी जाती है। सामान्यतः बच्चों को उसकी उम्र के मुताबीक संतुलीत आहार दिया जाना चाहिये। पर्याप्त प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन के साथ स्वस्थ और संतुलीत आहार दिया जाना चाहिये।
3.5 क्या जलवायु रोग के पाठ्यक्रम को प्रभावित कर सकते है?
नही, जलवायु का इस रोग के पाठ्यक्रम पर कोई प्रभाव नही होता है।
3.6 क्या बच्चे को टीका किया जा सकता है?
हाँ, बच्चे को टीका लगाया जा सकता है और लगाना अनिवार्य है। हालांकि इलाज करने वाले चिकित्सक की उचित सलाह के बाद। टीका लगवाने से पहले टीका प्रशासन को सूचित किया जाना आवष्यक होता है।
3.7 यौन जीवन, गर्भावस्था, जन्म नियंत्रण के बारे में क्या?
अब तक,रोगीयों में इस पहलू पर कोई जानकारी नही उपलब्ध हो पाई है। अन्य ऑटोइनफ्लामेट्री बिमारीयों कि तरह इस बिमारी मे भी गर्भावस्था को पूर्व नियोजीत करना ही उचित है। इससे दवाईयों का गर्भस्थ शिषु पर होने वाले असर से बचा जा सकता है।