1.1 यह क्या है?
Henoch-Schoenlein परपूरा (HSP) में बहुत छोटी रक्त वाहिनियों में सूजन आती है। इस सूजन को
वास्कुलिटिस कहते है। और आम तौर पर यह त्वचा, आंत और गुर्दे की छोटी रक्त वाहिनियों को प्रभावित करता है। इन रक्त वाहिनियों में से त्वचा में खून का रिसाव हो सकता है, जिसकी वजह से गहरे लाल या बैंगनी रंग के दाने आते है जिसे परपूरा कहते है। रक्त का रिसाव आंत या गुर्दो में भी हो सकता है, जिससे पेशाब तथा मल में खून पाया जा सकता है।
1.2 यह कितना आम है?
HSP, बचपन में आम तौर पर नहीं होता, ५ से १५ वर्ष के बीच आयु वर्ग के बच्चों में यह सबसे आम है। यह लड़कियों की तुलना में लड़को में ज्यादा आम है (२:१)।
इस बीमारी का कोई एक नस्लीय या भौगोलिक वितरण नही होता है। यूरोप और उत्तरी भागों में ज्यादातर सर्दियों में होता है लेकिन कुछ मामलो में वसंत के दौरान भी देखा जाता है। HSP लगभग प्रतिवर्ष १,००,००० में से २० बच्चो को प्रभावित करता है।
1.3 इस बीमारी का कारण क्या है?
HSP का कारण अज्ञात है। संक्रामक एजेंट (जैसे वायरस और बैक्टीरिया) बीमारी के लिए एक संभावित कारण माने जाते है। क्योंकि यह अक्सर ऊपरी श्वाश नली के संक्रमण के बाद होता है। हालांकि HSP ठंडे, जहरीले केमिकल पदार्थो, कीड़े के काटने और विशिष्ट खाद्य की एलर्जी से भी हो सकता है। HSP एक संक्रमण की प्रतिक्रिया हो सकती है। (बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता के अधिक प्रभाव के कारण)
HSP के घावों में प्रतिरक्षा प्रणाली के कुछ विशिष्ट उत्पाद जैसे IgA का जमा होना दर्शाता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली की असामान्य प्रतिक्रिया त्वचा, गुर्दे, जोड़ आँत और कभी कभी दिमाग व वृषण की छोटी रक्त वाहिनियों को प्रभावित करता है जो इस रोग का कारण है।
1.4 क्या यह आनुवांशिक है ? क्या यह छूत बीमारी है? क्या इसे रोका जा सकता है?
HSP एक आनुवंशिक बीमारी नहीं है। यह संक्रामक नहीं है और रोका नही जा सकता है।
1.5 मुख्य लक्षण क्या है ?
प्रमुख लक्षण त्वचा में लाल चकत्ते है, जो HSP के सभी रोगियों में पाये जाते है। दाने आमतौर पर छोटे पित्ती लाल धब्बे या लाल ऊभार के साथ शुरू होते है, कुछ समय के बाद यह बड़े बैंगनी चकत्तों में बदल जाते है। इन उभरी हुए घावों को त्वचा में महसूस किया जा सकता है, इसलिए इसे "स्पर्शनीय परपूरा" कहते है। परपूरा आम तौर पर शरीर के निचले भागों और नितंबो पर दिखाई देता है। कभी कभी शरीर के अन्य भागों में भी (ऊपरी अंगो ट्रंक आदि) में भी हो सकता है।
अधिकतर रोगियों में (>६५%) जोड़ो में दर्द, सूजन तथा चलने में तकलीफ होती है। आमतौर पर घुटना व एड़ी और कभी कभी कलाई, कोहनी उंगलियाँ भी प्रभावित होती है। गठिया के साथ अंगों की सूजन और जोड़ो के आसपास दर्द होता है। विशेष रूप से बहुत छोटे बच्चों में हाथ और पैर के कोमल ऊतक, माथा और वृषण में सूजन, इस रोग में जल्दी दिखाई दे सकते है।
जोड़ो के लक्षण अस्थायी होते है और कुछ दिनों या सप्ताह के भीतर चले जाते है।
वाहिनियों में सूजन होने की वजह से ६०% से अधिक रोगियों में पेट दर्द होता है, जो आमतौर पर रुक-रुक कर नाभि के आसपास होता है और कभी कभी आंतों में खून के रिसाव के साथ भी हो सकता है। कभी कभी आंत का असामान्य रूप से मुड़ा हुआ भाग जिसे इन्टूससेपशन कहते है, आंतो में रूकावट का कारण बन जाता है, जिसमे सर्जरी की आवश्यकता होती है।
गुर्दे की रक्त वाहिनियों में सूजन होने पर २०-३५% रोगियों में पेशाब में खून और प्रोटीन आने की संभावना होती है। गुर्दे की समस्या आमतौर पर गंभीर नहीं होती हैं। कुछ दुर्लभ मामलो में गुर्दे की बीमारी महीनों या वर्षों तक चल सकती है और गुर्दे की खराबी (१ – ५%) को बढ़ा सकती है। ऐसे रोगियों में उनके सामान्य चिकित्सक के साथ गुर्दा रोग विशेषज्ञ (Nephrologist) के सहयोग और सलाह की आवश्यकता होती है।
उपरोक्त लक्षण कभी-कभी त्वचा के लाल चकत्तों के कुछ दिनों पूर्व भी प्रकट हो सकते है। वे धीरे धीरे एक अलग क्रम में या एक साथ भी आ सकते है।
कभी कभी रक्त वाहिनियों में सूजन की वजह से अन्य लक्षण जैसे दौरे, दिमाग या फेफड़ों में खून का रिसाव और वृषण की सूजन भी देखे जा सकते है।
1.6 क्या यह रोग हर बच्चे में एक जैसा होता है?
रोग हर बच्चे में लगभग एक जैसा होता है, लेकिन हर रोगी में त्वचा और अंगो पर असर अलग हो सकता है।
1.7 क्या यह रोग बच्चों और बड़ों में अलग अलग होता है?
बच्चो में यह रोग बड़ों से अलग नहीं है, लेकिन यह युवा रोगियों में कभी कभी ही होता है।
2.1 इसका निदान कैसे होता है?
HSP का निदान मुख्य रूप से लाक्षणिक और क्लासिकल परपूरा से होता है। जो की आमतौर पर शरीर के निचले भागों तक ही सीमित होता है, इसके साथ निम्नलिखित में से कम से कम एक लक्षण होना चाहिए जैसे पेट में दर्द, जोड़ों का दर्द और गुर्दे की बीमारी (अक्सर पेशाब में रक्त)। इस तरह के समान लक्षण दर्शाने वाली अन्य बीमारियों को अलग कर देना चाहिए। कभी कभी बीमारी की पुष्टि के लिए त्वचीय बायोप्सी की आवश्यकता होती है। जो कि अंगों में इम्यूनोग्लोब्युलिन (ImmunoglobulinA) की उपस्थिति को दर्शाता है।
2.2 कौनसे अन्य परिक्षण उपयोगी है?
HSP की पुष्टि के लिए कोई विशेष परीक्षण उपलब्ध नहीं है। एरिथ्रोसाइट अवसादन दर (ESR) तथा CRP) जो कि प्रणलीगत सूजन के माप हैं, सामान्य या बढ़े हुए हो सकते हैं। मल में रक्त का होना छोटी आंतो खून के रिसाव का एक लक्षण हो सकता है। बीमारी के दौरान पेशाब की जाँच गुर्दे की बीमारी का पता लगाने में उपयोगी है। अगर पेशाब में खून व् प्रोटीन जाता है, तो गुर्दा बायोप्सी की आवश्यकता हो सकती है। इमेजिंग परीक्षण जैसे अल्ट्रासाउंड कभी कभी पेट दर्द के अन्य कारणों अथवा संभवतः जटिलताओं जैसे आंतो में रूकावट का पता लगाने के लिए किए जाते है।
2.3 क्या इसका इलाज संभव है?
अधिकांश रोगी ठीक हो जाते है। और दवाओं की आवश्यकता नहीं होती है। लक्षण जारी रहने तक बच्चों को आराम जरुरी है।उपचार मुख्य रूप से, सहायक होता है। जब जोड़ों में दर्द अधिक हो तब साधारण दर्दनाशक दवाओं जैसे कि पेरासिटामोल या
एन. एस. ए. आई. डी जैसे इब्रुप्रोफेन और नेपरोक्सन आदि उपयोगी है।
Corticosteroids (मुँह या कभी कभी नसों द्वारा) का उपयोग गंभीर पेट के लक्षण या खून के बहाव और कभी कभी अन्य अंगो (वृषण) से जुडे गंभीर लक्षणों में किया जाता है। गुर्दे की बीमारी गंभीर होने पर गुर्दे की बायोप्सी की जाती है और corticosteroid / Immunosupressive दवाओं से उपचार किया जाता है।
2.4 दवाओं के बुरे प्रभाव क्या है ?
HSP के रोगियों को ज्यादातर दवाओं की आवश्यकता नहीं होती, या फिर थोड़े समय लिए ही दवाएँ दी जाती है, इसलिए कोई गंभीर बुरे प्रभाव नहीं होते हैं । गुर्दे की गंभीर बीमारी में लंबे समय के लिए Prednisone / Immunosuppresive दवाओं के उपयोग से समस्या हो सकती है।
2.5 यह बीमारी कितने लंबे दौरान तक रहती है?
बीमारी का पूरा कोर्स लगभग ४-६ सप्ताह होता है। HSP के लगभग आधे रोगियों में ६ सप्ताह के भीतर कम से कम एक बार फिर से लक्षण आ सकते है। जो पहले एपिसोड की तुलना में मंद और कम समय के लिए होता है। यह रोग की गंभीरता का संकेत नहीं है। अधिकतर रोगी पूरी तरह से ठीक हो जाते है।
3.1 यह बच्चे और परिवार के दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव डालता है? और समय - समय पर किन जांचो की आवश्यकता होती है?
अधिकांश बच्चों में यह रोग स्वयं सीमित होता है और लंबे समय तक रहने वाली समस्याएँ पैदा नहीं करता। बहुत छोटी संख्या में रोगियों को गुर्दे की गंभीर बीमारी हो सकती है और आगे चलकर गुर्दा ख़राब हो सकता है। आम तौर पर बच्चा एक सामान्य जीवन बिता सकता है।
मूत्र परीक्षण रोग के दौरान कई बार होना चाहिए और रोगमुक्त होने के ६ माह बाद तक जाँच जारी रखनी चाहिए, यह गुर्दे की संभावित समस्याओं का पता लगाने के लिए किया जाता है, क्योंकि कुछ मामलों में गुर्दे की बीमारी कई सप्ताह या महीने के बाद भी शुरू हो सकती है।
3.2 क्या यह बच्चे स्कूल जा सकते है?
आमतौर पर बीमारी के दौरान शारीरिक कामकाज सीमित हो जाता है और पूर्णतः आराम की जरुरत हो सकती है। स्वस्थ होने के बाद फिर से स्कूल जा सकते है और सामान्य जीवन बिता कर सकते है। वे अपने स्वस्थ साथियों के साथ सभी कामों में भाग ले सकते है।
3.3 क्या यह बच्चे खेलकूद में भाग ले सकते है?
खेलकूद सहन शक्ति के मुताबिक किया जा सकता है। सामान्य तौर पर रोगियों को खेलकूद में भाग लेने की अनुमति दी जाती है। तथा जोड़ों में दर्द होने पर खेल रोक देने की सलाह दी जाती है। तथा शिक्षकों को किसी भी प्रकार की चोट से बचाने (विशेष रूप से किशोरों में) की सलाह दी जाती है। ज्यादा चलना सूजे हुए जोड़ों के लिए हानिकारक है। पर यह माना जाता है की इससे होने वाला नुकसान, खेलकूद से रोके जाने पर होने वाली मानसिक हानि से कम होता है।
3.4 इन रोगियों का आहार कैसा होना चाहिए?
आहार से रोग प्रभावित होने का कोई प्रमाण नहीं है। बच्चों को उनकी उम्र के मुताबिक एक संतुलित, सामान्य आहार देना चाहिए। बढ़ते बच्चे के लिए पर्याप्त प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन युक्त संतुलित आहार देना चाहिए। Corticosteroids दवाओं से भूख में वृद्धि हो सकती है जो मोटापे का कारण बन सकता है।
3.5 क्या मौसम इस रोग को प्रभावित करता है?
मौसम का इस रोग को प्रभावित करने का कोई प्रमाण नहीं है।
3.6 क्या HSP ग्रसित बच्चों का टीकाकरण किया जा सकता है?
टीकाकरण रोक दिया किया जाना चाहिए तथा छूटे हुए टीकाकरण का समय बच्चों के चिकित्सक की सलाह से निश्चित किया जाना चाहिए । टीकाकरण रोग की गतिविधि में वृध्दि नहीं करता है और PRD रोगियों में गंभीर प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालता है। हालाँकि जैविक टिके आम तौर पर नहीं देने चाहिए क्योंकि Immunosupressive दवाओं या Biologics प्राप्त रोगियों में यह रोग को बढ़ा सकता है।
3.7 क्या यौन जीवन, गर्भावस्था, जन्म नियंत्रण पर इसका कोई प्रभाव पड़ता है?
इस रोग से गसित रोगियों में सामान्य यौन जीवन या गर्भावस्था पर कोई रोक नहीं है। इन दवाओं का सेवन करने वाले मरीजों को काफी सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि ये दवाए भ्रूण पर असर डालती है।मरीजों को जन्म नियंत्रण और गर्भावस्था के बारे में अपने चिकित्सक से परमार्श लेना चाहिए।