1.1 यह क्या है ?
यह रोग पहली बार अंग्रेजी चिकित्सा साहित्य में 1967 में एक जापानी बालरोग विशेषज्ञ द्वारा बाताया गया था ( इस रोग का नाम उनके नाम पर रखा गया है)। उन्होंने बुखार, त्वचा पर लाल चकत्ते, लाल ऑंखें, गले और मुँह की लाली, हाथों और पैरों में सूजनऔर गर्दन में बढ़े लिम्फ नोड्स के साथ बच्चों के एक समूह की पहचान की। शुरु में इस रोग को म्यूकोक्युटेनियस लिम्फ नोड सिंड्रोम कहा जाता था । कुछ साल बाद हृदय जटिलताओं जैसे कोरोनरी धमनियों के एन्यूरिज़म (इन रक्त वाहिकाओं का फैलना) की जानकारी मिली ।
कावासाकी रोग एक तीव्र प्रणालीगत
वैस्कुलाइटिस है, जिसका अर्थ है कि शरीर की किसी भी मध्यम धमनियों मुख्य रूप से कोरोनरी धमनियों में सूजन होती है और उनमें एन्यूरिज्मस बन सकते हैं। हालांकि अधिकतर बच्चे सिर्फ तीव्र लक्षण दिखाएंगे और दिल की कम्पलीकेशन्स नहीं होंगी।
1.2 यह कितना आम है ?
केडी एक दुर्लभ बीमारी है। लेकिन बचपन की अन्य आम वेसकुलाइटिस की बीमारी जैसे कि
हिनोकस्कोनलेन परप्युरा के समान आम बीमारी है। कावासाकी रोग को दुनिया भर में वर्णन किया गया है । हालांकि यह बीमारी जापान में ज्यादा आम है। यह लगभग विशेष रूप से छोटे बच्चों की एक बीमारी है। इस बीमारी के लगभग 85% बच्चे 5 साल से कम की उम्र के होते हैं। 18-24 महीने की उम्र के बच्चों में यह सबसे ज्यादा आम है। 3महीने से कम और 5 साल से ज्यादा के बच्चों में यह बीमारी कम पाई जाती है । परन्तु इन बच्चों में कोरोनरी एन्यूरीज़म बनने का खतरा ज्यादा होता है। लड़कियों की तुलना में लड़कों में अधिक आम है। हालांकि साल के किसी भी समय में इस बीमारी के मामले पाए जा सकते हैं, पर कुछ मौसमी भी पाई जाती है । देर की सर्दियों में और बसंत ऋतु में इनकी संख्या में वृद्धि होती है।
1.3 इस बीमारी के कारण क्या हैं ?
केडी के कारण अस्पष्ट हैं हालांकि संक्रामक उत्पत्ति एक ट्रिगर होने का संदेह है। अतिसंवेदनशीलता या संक्रामक एजेंट द्वारा शूरु की गई अव्यवस्थित प्रतिरक्ष प्रतिक्रिया,एक सूजनप्रक्रिया शुरु कर सकती है ।
1.4 क्या यह विरासत में मिली है ? मेरे बच्चों को यह बीमारी क्यों है ? क्या इससे बचाया जा सकता है ? क्या यह संक्रामक है ?
केडी एक वंशानुगत बीमारी नहीं है, हालांकि एक अनुवंशिक गड़बड़ी का संदेह है। ऐसा बहुत दुर्लभ है कि एक ही घर में इस बीमारी से दो सदस्य ग्रसित हो। यह संक्रामक नहीं है। वर्तमान में, इस बीमारी से बचने का कोई तरीका नहीं है। एक बच्चे में इस बीमारी का दोबारा होना संभव है, परन्तु बहुत दुर्लभ है।
1.5 मुख्य लक्षण क्या हैं ?
बीमारी अस्पष्टीकृत तेज बुखार के साथ प्रस्तुत करता है। बच्चा आमतौर पर चिड़चिड़ा होता है। बुखार शुरु होने के साथ-साथ कुछ दिन बाद ऑंखें लाल हो जाती हैं, परन्तु कोई मवाद या स्त्राव के बिना । बच्चे में विभिन्न प्रकार के त्वचा के चकते बन जाते हैं। जैसे कि खसरे या स्कारलेट फीवर की तरह, लाल रंग के दाने, पेप्यूल्स आदि। त्वचा के चकत्ते ज्यादातर ट्रंक और हाथ पैरों पर और डायपर क्षेत्र में होते हैं और यह त्वचा पर लालिमा ला सकता है या उसे छील सकता है।
मुंह में परिवर्तन जैसे चमकदार लाल फटे होंठ, जीभ लाल ( आमतौर पर स्ट्राबेरी जीभ कहा जाता है) और ग्रसनी में लाली हो सकती है। हाथ और पैरों में लाली और सूजन आ सकती है। हाथों और पैरों की अंगुलियों में सूजन आ सकती है। इसके बाद त्वचा एक विशेष तरह से छिलना शुरु होती है, यह अंगुलियों की नोक से शुरु होती है (दूसरे से तीसरे हफ्ते में )। आधे से ज्यादा बच्चों में गर्दन का एक लिम्फ नोड बढ़ जाता है, ज्यादातर 1.5 सैं.मी. से ज्यादा और सिर्फ एक ही तरफ।
कभी-कभी अन्य लक्षण जैसे जोड़ों में दर्द या सूजन, पेट में दर्द, दस्त, चिड़चिड़ापन या सिरदर्द भी हो सकते हैं । जिन देशों में बी.सी.जी. का टीका दिया जाता है (जोकि टीबी की बीमारी से बचाता है), छोटे बच्चों में उस निशान क्षेत्र का लाल होना भी दिख सकता है।
हृदय का शामिल होना इस बीमारी का सबसे गंभीर लक्षण है । इससे लंबी अवधि जटिलताओं की संभावना होती है । दिल में मरमर्स, ताल गड़बड़ी और अल्ट्रासाउण्ड असामान्यताएं हो सकती हैं। दिल की सभी परतों में थोड़ी सूजन आ जाती है। पेरिकार्डिटिस (हृदय की बाहरी झिल्लर की सूजन), मायोकार्डिटिस (हृदय की मांसपेशी की सूजन) और वाल्व भी शामिल हो सकती है। हालांकि इस बीमारी की मुख्य विशेषता कोरोनरी धमनियों में एन्यूरिज्म बनना है ।
1.6 क्या यह बीमारी सब बच्चों में एक जैसी होती है ?
रोग की गंभीरता हर बच्चे में अलग होती है । सारे लक्षण हर बच्चे में नहीं होते और हृदय का प्रभावित होना भी ज्यादातर रोगियों में नहीं होता है। जिन बच्चों को इलाज मिलता है, उनमें 100 में से लगभग 2 से 6 बच्चों में एन्यूरिज़म बनते हैं । कुछ बच्चों में ( विशेष रूप से 1 वर्ष से छोटे ) यह बीमारी अधूरे रूप से आती है, जिसका अर्थ है कि उनमें बीमारी के सारे लक्षण नहीं दिखाई देते, जिससे निदान और अधिक कठिन हो जाता है । इनमें से कुछ बच्चों में एन्यूरिज्म भी बन जाते हैं । इन्हें असामान्य केडी का निदान दिया जाता है ।
1.7 क्या बच्चों में यह बीमारी बड़ों से कुछ अलग होती है ?
यह ज्यादातर बच्चों की बीमारी है , हालांकि वयस्कता में केडी की रिपोर्टस बहुत कम हैं।
2.1 इसका निदान कैसे होता है ?
केडी एक नैदानिक या बैडसाइड निदान है। इसका मतलब यह है कि निदान केवल एक चिकित्सक द्वारा एक नैदानिक मूल्यांकन के आधार पर किया जाता है। एक निश्चित निदान बनाने के लिए 5 दिन का अस्पष्टीकृत तेज बुखार और निम्न 5 में से कोई 4 विशेषताएं होना जरुरी है- द्विपक्षीय नेत्रश्लेष्मलाशोथ (यानी नेत्रगोलक कतर झिल्ली की सूजन), बड़े हुए लिम्फ नोड्स, त्वचा पर लाल चकत्ते, मुंह और जीभ पर लाली और हाथ पैर में बदलाव । डॉक्टर को पुष्टि करनी होगी कि कोई अन्य बीमारी नहीं है जिसके लक्षण भी ऐसे ही हो सकते हैं। कुछ बच्चों में यह बीमारी अधूरे रूप में दिखाई देती है । इसका मतलब यह है कि वे कम नैदानिक मापदंड के साथ प्रस्तुत करते हैं। जिससे निदान बनाने में कठिनाई होती है। ऐसे मामलों को अधूरा केडी कहा जाता है।
2.2 यह बीमारी कितनी लंबी चलेगी ?
केडी के तीन चरण हैं – तीव्र चरण जोकि पहले 2 हफ्ते चलता है जिसमें बुखार और अन्य लक्षण दिखाई देते हैं । उपतीव्र चरण – दूसरे से चौथे हफ्ते तक जिसमें प्लेटलेट काउंट वृद्धि होनी शुरु होती है और एन्यूरिज़म दिखाई दे सकते हैं और वसूली चरण पहले से तीसरे महीने तक जिसमें सब बदले हुए प्रयोगशाला परीक्षण परिणाम सामान्य हो जाते हैं और कुछ रक्त वाहिकाओं की असामान्यताएं ( जैसे हृदय धमनियों का एन्यूरिज़म) सामान्य होने लगता है या पूर्णतया सही हो जाता है ।
अगर इलाज नहीं करते हैं तो बीमारी खुद को 2 हफ्ते में सीमित कर लेती है और हृदय धमनियों में हुई क्षति वैसी ही रह जाती है।
2.3 परीक्षण का क्या महत्व है ?
वर्तमान में ऐसा कोई टेस्ट नहीं है जिससे इस बीमारी का निर्णायक निदान बन सके। कुछ टेस्ट जैसे बढ़ा हुआ ई.एस.आर. , बढ़ा हुआ सी.आर.पी., श्वेतरक्त रक्त कोशिकाओं में वृद्धि, अनीमिया (लाल रक्त कोशिकाओं में कमी) कम सीरम एलब्यूमिन और बढ़े हुए लीवर एंजाइम्स निदान में मदद कर सकते हैं । प्लेटेलेट्स की संख्या (कोशिकाएं जोकि रक्त के थक्के में शामिल होती हैं ) आमतौर पर बीमारी के पहले हफ्ते में सामान्य होती हैं, परन्तु दूसरे हफ्ते में बढ़ने लगती हैं और बहुत ज्यादा हो जाती हैं।
बच्चों का समय-समय पर परीक्षण कराना चाहिए जब तक कि प्लेटलेट्स की संख्या और ई.एस.आर. सामान्य नहीं हो जाता।
एक प्रारंभिक इलैक्ट्रोकार्डिग्राम (ई.सी.जी.) और इकोकार्डिग्राम किया जाना चाहिए । इकोकार्डिग्राम से कोरोनरी धमनियों का आकार का मूल्यांकन और उनका फैलना एवं एन्यूरिज़म का पता लगा सकते हैं । जिन बच्चों की कोरोनरी धमनियों में असामान्यता पाई जाती है उनको अनुवर्ती इकोकार्डिग्राम और अतिरिक्त अध्ययन और मूल्यांकन की जरुरत होगी ।
2.4 क्या इसे पूरी तरह ठीक किया जा सकता है ?
केडी के ज्यादातर बच्चों को ठीक किया जा सकता है । हालांकि कुछ बच्चों में उचित उपचार के बावजूद भी दिल की जटिलताओं का विकास हो सकता है।
2.5 क्या-क्या इलाज होते हैं ?
निश्चित या संदिग्ध केडी के बच्चे को अवलोकन और निगरानी के लिए अस्पताल में भर्ती करना चाहिए और दिल की इनवोल्वमेंट के लिए मूल्यांकन करना चाहिए।
दिल की जटिलताओं को कम करने के लिए जल्दी से जल्दी इलाज शुरु करना चाहिए।
इलाज के लिए उच्च खुराक
इम्युनोग्लोबुलिन और एसपीरिन दिया जाता है । इस इलाज से सूजन कम होगा और तीव्र लक्षणों में तुरन्त राहत मिलेगी । उच्च खुराक आई.वी.आई.जी. खुराक का मुख्य हिस्सा है क्योंकि इससे ज्यादातर मरीजों में कोरोनरी असामान्यताओं का खतरा कम हो जाता है । हालांकि यह महंगा इलाज है, परन्तु वर्तमान में यही सबसे प्रभावी इलाज है। विशेष जोखिम कारकों के साथ रोगियों में एक साथ कार्टिकोस्टीरोइडस भी दिया जा सकता है। रोगी जोकि आई.वी.आई.जी. की एक या दो खुराकों से ठीक ना हो , उनके लिए दूसरे उपचार के तरीके जैसे उच्च खुराक कोर्टिकोस्टीरोईडस या बायोलोजिक दवा से इलाज किया जा सकता है।
2.6 क्या आई.वी.आई.जी. से सब बच्चे ठीक हो जाते हैं ?
सौभाग्य से अधिकांश बच्चों को सिर्फ एक खुराक की आवश्यकता होगी । जिनको असर नहीं होता उनको आई.वी.आई.जी. की दूसरी खुराक या फिर कोर्टिकोस्टीरॉयडस दिया जाता है । दुर्लभ मामलों में बायोलोजिक दवाईयां भी दी जा सकती हैं।
2.7 दवाई के क्या दुष्प्रभाव हैं ?
आई.वी.आई.जी. चिकित्सा आमतौर पर सुरक्षित है और अच्छी तरह से सहन हो जाती है । शायद ही कभी, तंत्रिका की सूजन (एसेप्टिक मैनिंजाइटिस) हो सकती है।
आई.वी.आई.जी. के उपचार के बाद, जीना तनु टीकाकरण स्थगित कर दिया जाना चाहिए। (हर टीकाकरण के बारे में अपने बाल चिकित्सक से परामर्श करें) एस्पिरिन की ज्यादा खुराक से मतली या पेट खराब हो सकता है।
2.8 इम्यूनोग्लोबुलिन और उच्च खुराक एस्पिरिन के बाद क्या उपचार दिया जाना चाहिए। इलाज कितने समय तक चलेगा ?
बुखार उतरने के बाद (आमतौर पर 24-48 घंटे में) एस्पिरिन की खुराक कम कर दी जाएगी । एस्पिरिन की कम खुराक प्लेटेलेट्स पर उसके प्रभाव के कारण दी जाती है। इसका मतलब है कि यह प्लेटलेटस को एक दूसरे के साथ चिपकने से बचाती है। यह उपचार एन्यूरिज्म के अन्दर और सूजन वाली रक्त धमनियों के अन्दर की सतह पर थरोम्बस (रक्त के थक्के) को बनने से रोकता है। थरोम्बस के बनने से उस रक्त वाहिनि द्वारा दिये जाने वाले रक्त प्रवाह में रुकावट आ सकती है (जिससे हृदय रोधगलन हो सकता है जोकि केडी की सबसे खतरनाक जटिलता होती है। ) कम खुराक एस्पिरिन इन्फलेमेटरी मार्कस के सामन्य हो जाने तक और फोलोअप ईको के सामान्य हो जाने तक दिया जाता है। जिन बच्चों को एन्यूरिज्म लम्बे समय तक रहता है, उनको एस्पिरिन या अन्य थक्का विरोधी दवाई डॉक्टर की देखरेख में लम्बे समय तक देनी होती है।
2.9 मेरा धर्म मुझे रक्त या रक्त उत्पादों का प्रयोग करने की अनुमति नहीं देता। अपरंपरागत या पूरक चिकित्सा के बारे में बताएं ?
इस रोग के लिए अपरंपरागत उपचार के लिए कोई जगह नहीं है 1 आई.वी.आई.जी. एक सिद्ध उपचार है । कोर्टिकोस्टीरायॅडस का इस्तेमाल प्रभावी हो सकता है यदि आई.वी.आई.जी. काम नहीं करता ।
2.10 बच्चे की चिकित्सा देखभाल में कौन शामिल है ?
बालरोग विशेषज्ञ, बाल हृदय रोग विशेषज्ञ और बाल चिकित्सा रेहयूमेटोलोजिस्ट, तीव्र चरण और अनुवर्ती में बच्चे का ख्याल रखेंगे। उन स्थानों पर जहां बाल चिकित्सा रेहयूमेटोलोजिस्ट उपलब्ध नहीं है, हृदयरोग विशेषज्ञ के साथ-साथ, बालरोग विशेषज्ञ बच्चे का ख्याल रखेंगे, विशेष रूप से उन बच्चों का जिनको तकलीफ है।
2.11 बीमारी का दीर्घकालिक विकास क्या होगा ?
ज्यादातर बच्चों में निदान उत्कृष्ट है। यह बच्चे सामान्य जीवन जीते हैं और इनकी वृद्धि और विकास भी सामान्य होता है ।
कोरोनरी धमनियों में असामान्यताओं के रहने की स्थिति में रोग का निदान मुख्य रूप से संबहनी संकुचन और अवरोधों के विकास पर निर्भर करता है। इन बच्चों को प्रारंभिक जीवन में दिल के लक्षण होने का खतरा होता है और इन्हें लम्बी अवधि के लिए एक हृदय रोग विशेषज्ञ जोकि केडी के बच्चों को लंबी अवधि की देखभाल में अनुभव रखता है, की देखरेख में रहना पड़ सकता है।
3.1 इस रोग से बच्चों और परिवार के दैनिक जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ?
अगर दिल पर असर न हो तो बच्चा और परिवार एक सामान्य जीवन जीते हैं। हालांकि कावासाकी रोग के लगभग सभी बच्चे पूरी तरह ठीक हो जाते हैं लेकिनब्च्चा कुछ दिनों तक थका हुआ और चिड़चिड़ा महसूस कर सकता है।
3.2 स्कूल का क्या करना होगा ?
एक बार यह बीमारी पूरी तरह नियंत्रित हो जाती है, जोकि वर्तमान के इलाज से लगभग संभव है और तीव्र चरण जब खत्म हो जाता है, बच्चे को अपने बाकि स्वस्थ साथियों के जैसे हर गतिविधियों में भाग लेने में कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। बच्चों के लिए स्कूल वैसा ही है जैसा बड़ों के लिए अपना काम। स्कूल एक ऐसा स्थान है जहां पर वह एक स्वतंत्र और उत्पादक व्यक्ति बनना सीखता है। अभिभावकों और शिक्षकों को हर संभव कोशिश करके बच्चे को सामान्य रूप से स्कूल की गतिविधियों में भाग लेने देना चाहिए जिससे वह न केवल एकेडमिक सफलता प्राप्त करे बल्कि अपने साथियों और बड़ों द्वारा स्वीकार किया जाए।
3.3 खेल के बारे में ?
खेल खेलना किसी भी बच्चे की रोजगर्रा की जिंदगी का एक अनिवार्य पहलू है। चिकित्सा का एक उद्देश्य है बच्चे के लिए जितना संभव हो सके एक सामान्य जीवन जीए और अपने साथियों से अलग ना समझे। जिन बच्चों को दिल की तकलीफ न हो उन्हें खेलने में और दिनभर की बाकी गतिविधियों में प्रतिबंध की जरुरत नहीं है। हालांकि जिन बच्चों को कोरोनरी धमनियों में एन्यूरिज्म होते हैं, उन्हें विशेष रूप से किशोरावस्था में प्रतिस्पर्धा गतिविधियों में भाग लेने से पहले हृदयरोग विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए।
3.4 खानपान कैसा होना चाहिए ?
इसका कोइ सबूत नहीं है कि आहार से इस रोग पर कुछ प्रभाव होता है। सामान्य तौर पर बच्चे को उसकी उम्र के लिए संतुलित सामान्य आहार का पालन करना चाहिए। स्वस्थ पर्याप्त प्रोटीन, कैलशियम और विटामिन के साथ संतुलित आहार एक बढ़ते बच्चे के लिए जरुरी है कोर्टिकोस्टीरॉयडस से भूख बढ़ जाती है, इसलिए जिन बच्चों को यह दवाई मिल रही है उन्हें कम खाना खिलाना चाहिए।
3.5 क्या बच्चे का टीकाकारण किया जा सकता है ?
आई.वी.आई.जी. के बाद जीना तनु टीकाकरण स्थगित कर दिया जाना चाहिए।
बच्चे को क्या टीका दिया जाना है, यह एक चिकित्सक का फैसला होना चाहिए। कुल मिलाकर टीकाकरण से रोग की गतिविधि नहीं बढ़ती और केडी के बच्चों में इसका कोई बुरा असर नहीं होता। नॉन-लाईव क्म्पोजि़ट टीके, केडी के बच्चों में सुरक्षित होते हैं, उन बच्चों में भी जो कि इम्यूनोसुप्रेसिव दवाईयां खा रहे हों। हालांकि ज्यादातर स्टडीज़ टीकाकरण से होने वाले दुर्लभ नुकसानों की जांच करने में असमर्थ है।
जो बच्चे उच्च खुराक इम्यूनोस्प्रैसिव दवाइयों पर होते हैं, उन्हें चिकित्सक द्वारा टीकाकरण के बाद रोगजनक विशिष्ट एंटीबॉडी सांद्रता को मापने की सलाह दी जानी चाहिए।