1.1 यह क्या होता है?
यह बीमारी बोर्रेलिया बुर्गडोरफेर्री (लाइम बोर्रेलिओसिस) नामक कीटाणु से होती है,यह कीटाणु टिक के काटने से फैलता है,जिसमे से एक टिक एक्सोडस रीसेनस है|
इस बीमारी में जोड़ खास तौर से प्रभावित होते हैं,व् त्वचा,हृदय,आँखें,केंद्रीय मज्जा तंत्र व् अन्य अंगों पर भी इस का प्रभाव पड़ सकता है|त्वचा पर टिक के काटने की जगह पर फैलने वाली लाली आ जाती है जिसे एरिथिमा माइग्रेन्स कहते हैं|
कुछ लोगों में यदि इस का इलाज नहीं किया जाये तब यह केंद्रीय मज्जा तंत्र को भी प्रभावित कर सकती है|
1.2 यह बीमारी कितनी आम है?
बहुत कम बच्चों में लाइम गठिया देखा जाता है|
यूरोप में कीटाणु के काटने से होनी वाले सभी गठिया रोगों में यह सबसे ज्यादा देखा जाता है ख़ास कर बच्चों व् किशोरों में|यह आमतौर से ४ वर्षा की आयु के बाद ही देखा जाता है इसीलिए यह बीमारी अधिकतर स्कूल जाते बच्चों में देखी जाती है|
यह बीमारी पूरे यूरोप में देखी जाती है पर मध्य यूरोप व् बाल्टिक सागर के पास दक्षिणी स्कैंडेनेविया में अधिक देखी जाती है| वातावरण के तापमान व् उमस के अनुसार प्रभावित टिक के काटने का समय अप्रैल से अक्टूबर तक प्रायः देखा जाता है व् इसी समय इस बीमारी का संक्रमण अधिक होता है|यह बीमारी किसी भी समय आरम्भ हो सकती है
क्योकि टिक के काटने व् जोड़ में सूजन आने के बीच में थोड़ा समय लगता है|
1.3. यह बीमारी किन कारणों से होती है?
यह बीमारी बोर्रेलिया बुर्गदोर्रफेर्री नमक एक कीटाणु के संक्रमण से होती है|यह कीटाणु एक्सोडस रिसिनस नमक एक टिक के काटने के द्वारा संक्रमित होता है|
प्रत्येक टिक इस कीटाणु के द्वारा संक्रमित नहीं होती है.इसलिए प्रत्येक टिक के काटने से यह बीमारी नहीं होती|कई बार टिक के काटने से सिर्फ लाली आ जाती है जिसे एरिथिमा माइग्रेन्स कहते हैं|
कई बार बीमारी इस के आगे नहीं बढ़ती|ऐसा खास तौर पर तब भी होता है जब पहले ही चरण में एंटीबायोटिक दवाओं के द्वारा इलाज कर दिया जाता है|इसीलिए हालाँकि एरिथिमा माइग्रेन्स १ में १००० बच्चों में देखा जा सकता पर इसके द्वारा होने वाला लाइम गठिया, जो आखिरी चरण में होता है,बहुत कम बच्चों में देखा जाता है|
1.4 क्या यह एक अनुवांशिक रोग है?
लाइम गठिया एक संक्रामक रोग है,अनुवांशिक नहीं|कभी कभी ऐसा रोग देखने में आता है जिसमे अंटोबॉयोटिक दवाएं काम नहीं करती|इसमें कुछ अनुवांशिक तत्वों के कारणवश ऐसा हो सकता है पर इस विषय में पूरी जानकारी अभी नहीं है|
1.5 मेरे बच्चे को यह बीमारी क्यों हुई?क्या इससे बचाव किया जा सकता है?
जिन यूरोपियन जगहों पर यह टिक पायी जाती है,वहां इस की रोकथाम कर पाना अत्यन्य कठिन है|कीटाणु को टिक के अंदर जा कर थूक की ग्रंथि तक पहुँचने में समय लगता है,यदि टिक उससे पहले काट ले तब यह कीटाणु संक्रमित नहीं हो पाता|टिक मानव शरीर पर चिपक जाती है व् ३-४ दिन तक मानव का खून चूसती है|यदि बच्चों को गर्मी के मौसम में रोज़ ठीक से देखा जाये व् टिक को खोज कर निकल दिया जाये तब इस बीमारी के होना का खतरा काफी कम हो जाता है|रोकथाम के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का प्रयोग करना ठीक नहीं है|
हालाँकि जब एरिथिमा माइग्रेन्स होता है तब उसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं के द्वारा तुरंत किया जाना चाहिए|इससे कीटाणु आगे पनप नहीं पायेगा व् लाइम गठिया नहीं होगा|अमेरिका में इसके संक्रमण को रोकने के किये टीकाकरण शुरू किया गया था परंतु अधिक कीमत होने के कारन उसको वापिस ले लिया गया|कीटाणु के प्रकार में भिन्नता होने के कारन यह टीकाकरण यूरोप में कामयाब नहीं था|
1.6 क्या यह छूत की बीमारी है?
हालाँकि यह एक संक्रामक रोग है पर यह छूत की बीमारी नहीं है(मतलब यह एक मनुष्य से दूसरे को नहीं हो सकती)क्योकि यह कीटाणु सिर्फ टिक के द्वारा कटे जाने पर ही मनुष्य के शरीर में पहुचता है|
1.7 इसके प्रमुख लक्षण क्या है?
इस बीमारी के प्रमुख लक्षण जोड़ में सूजन व् प्रभावित जोड़ की हिलने की क्षमता में कमी आना होती है|कई बार जोड़ में सूजन बहुत अधिक होती है परंतु दर्द इतना अधिक नहीं होता|खुटने में सबसे अधिक प्रबह्व देखा जाता है,हालाँकि अन्य बडे जोड़ों में भी इसका प्रभाव देखा जाता है,पर ऐसा बहुत कम होता है की घुटनो में कोई सूजन न हो|२/३ लोगों में अकेली एक ही घुटने की सूजन पाई जाती है|९५% से अधिक लोगों में आम तौर से ४ जोड़ों से कम जोड़ प्रभावित होते हैंऔर समय के साथ सिर्फ घुटने में प्रभाव रह जाता है|२/३ लोगों में रुक रुक कर आता है(गठिया अपने आप कुछ सप्ताह में चला जाता है व् कुछ अंतराल के बाद अपने आप ही वापिस आ जाता है)
समय के साथ जोड़ों में सूजन का क्रम कम होता जाता है व् एक जोड़ में सूजन की अवधि भी कम होती जाती है|पर कुछ लोगों में यह एक दीर्घकालीन गठिया का रूप ले लेता है|कुछ लोगों में यह रुक रुक कर आने की जगह एक की जोड़ में तीन माह से अधिक अवधि के किये आ जाता है|
1.8 क्या प्रत्येक बच्चे को एक सी बीमारी होती है?
नहीं|यह बीमारी तीव्र हो सकती है(एक ही बार तीव्र गठिया होना),रुक रुक कर आने वाली हो सकती है अथवा दीर्घकालीन हो सकती है|अधिकतर ऐसा देखा गया है की छोटे बच्चों में यह बीमारी तीव्र होती है व् किशोरों में अधिकाँश दीर्घकालीन होती है|
1.9 क्या बच्चों में यह बीमारी वयस्कों से भिन्न होती है?
बच्चों व् वयस्कों में एक सी ही बीमारी देखि जाती है|हालाँकि बच्चों में गठिया होने की सम्भावना अधिक होती है|परंतु छोटी आयु के बच्चों में बीमारी तीव्रता से आती है व् दवाओं का असर ज़्यादा जल्दी और सफल होता है|
2.1 इस बीमारी का निदान कैसा किया जाता है?
जब भी गठिया के लिए कोई कारन न मिल रहा हो तब इस बीमारी के होने की भी सम्भावना रखनी चाहिए| जब भी इस बीमारी के होने का संदेह हो तब जांचों के द्वारा इस की पुष्टि की जा सकती है|पुष्टि के लिए रक्त की जांच अथवा जोड़ से निकाले गए पानी की जांच की जा सकती है|
रक्त जांच में बोर्रेलिया बुर्गदोर्रफेर्री के विरुद्ध एंटीबाडी एंजाइम इम्मुनो ऐसे के द्वारा देखि जा सकती हैं|यदि आई जीएम् एंटीबाडीज देखि जाती हैं,तब इनकी पुष्टि इम्मुनोब्लोट या वेस्टर्न ब्लॉट के द्वारा की जानी चाहिए|
यदि गठिया का कारन ज्ञात नहीं है व् रक्त जांच में एंटीबाडीज पायी जाती हैं व् वेस्टर्न ब्लॉट द्वारा उसकी पुष्टि की जाती है,तब वह गठिया लाइम गठिया ही कहलाता है| जब भी इस बीमारी के होने का संदेह हो तब जांचों के द्वारा इस की पुष्टि की जा सकती है|पुष्टि के लिए रक्त की जांच अथवा जोड़ से नकल गए पानी की जांच की जा सकती है|रक्त जांच में बोर्रेलिया बुर्गदोर्रफेर्री के विरुद्ध एंटीबाडी एंजाइम इम्मुनो ऐसे के द्वारा देखि जा सकती हैं|यदि आई जीएम् एंटीबाडीज देखि जाती हैं,तब इनकी पुष्टि इम्मुनोब्लोट या वेस्टर्न ब्लॉट के द्वारा की जानी चाहिए|
यदि गठिया का कारन ज्ञात नहीं है व् रक्त जांच में एंटीबाडीज पायी जाती हैं व् वेस्टर्न ब्लॉट द्वारा उसकी पुष्टि की जाती है,तब वह गठिया लाइम गठिया ही कहलाता है|
जोड़ से निकले पानी में इस कीटाणु की जीन देखने के लिए पोलीमरेज़ चेन रिएक्शन भी किया जा सकता है पर यह अन्य जांचों की अपेक्षा में कम भरोसेमंद होता है|ख़ास तौर से इस जाँच के द्वारा यह नहीं पाता चल पाता की मनुष्य के शरीर में अभी कीटाणु का संक्रमण हुआ है या पहले कभी संक्रमण हुआ था|
इस बीमारी का निदान बच्चों के विशेहागया द्वारा किया जाना चाहिए|यदि एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं होता तब बच्चों के गठिया रोग विषेशज्ञ की सहायता से इस बीमारी का इलाज किया जाना चाहिए|
2.2 इसमें जांचों का क्या महत्व है?
सेरोलॉजिकल जांचों के आलावा,प्रज्ज्वलन दर्शाने वाले अथवा रक्त की अन्य जांचें भी की जाती है|अन्य कीटाणुओं के कारणवश भी गठिया हो सकता है,उनकी खोज के लिए भी राकय की जांचें की जानी चाहिए|
एक बार जांचों के द्वारा लाइम गठिया की पुष्टि हो जाये,फिर इन जांचों को दोबारा करने की कोई लाभ नहीं होता क्योंकि इनसे दवाओं के असर के बारे में पता नहीं चलता|एक बार यह संक्रमण हो जाये फिर यह जांचें सफल इलाज के बाद भी कई वर्षों तक पॉजिटिव रहती हैं|
2.3 क्या इस बीमारी का इलाज /उन्मूलन है?
लाइम गठिया एक कीटाणु के द्वारा संक्रमित रोग है.इस लिए इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है|८०% रोगियों में १-२ बार एंटीबायोटिक्स देने से उन्मूलन हो जाता है|१०-२०%में बार बार एंटीबायोटिक्स देने से भी लाभ नहीं होता व् इनको एंटी रूमेटिक दवाओं की आवश्यकता पड़ती है|
2.4 इसके इलाज क्या हैं?
४ सप्ताह मुंह से एंटीबायोटिक्स या २ सप्ताह नस के द्वारा एंटीबायोटिक्स इसका इलाज हैं|८ वर्ष की आयु से अधिक बच्चों को डॉक्सीसाइक्लिन अथवा अमोक्सिसिल्लिन दिया जा सकता है|यदि लंबे समय तक बच्चों के दावा लिए जाने पर संदेह हो तब नस के द्वारा सेफट्रीएक्सऑन देना अधिक लाभदायक हो सकता है|
2.5 दवाओं के दुष्प्रभाव क्या हैं?
एंटीबायोटिक्स के कारण दस्त हो सकते हैं अथवा एलर्जी हो सकती है|यह दुर्लभ व् साधारण दुष्प्रभाव हैं|
2.6 इलाज की अवधि क्या है?
एक बार ४ सप्ताह का की एंटीबायोटिक्स की अवधी पूर्ण हो जाये और गठिया जारी रहे तब ६ सप्ताह के बाद ही ऐसा कहा जा सकता है की गठिया दवाओं से ठीक नहीं हुआ है
इन लोगों में दूसरी एंटीबायोटिक दी जानी चाहिए|यदि दूसरी एंटीबायोटिक की समाप्ति के ६ सप्ताह बाद भी गठिया जारी रहे तब एंटी रूमेटिक दवाओं से इलाज शुरू किया जाना चाहिए|अधिकतर नॉन स्टेरॉइडल एंटी रूमेटिक दवाएं दी जाती हैं व् प्रभावित जोड़ के अंदर
कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स दिए जाते हैं|
2.7 बार बार किस प्रकार की जांचों की आवश्यकता होती है?
जोड़ों की नियमित रूप से जाँच की जानी चाहिए|एक बार जोड़ ठीक हो जाएँ फिर जितना लंबा अंतराल होता जाता है,उतनी ही इस बीमारी के फिर से होने का खतरा कम हो जाता है|
2.8यह बीमारी कब तक रहती है?
८०%लोगों में यह बीमारी १-२ एंटीबायोटिक कोर्स से पूरी तरह ख़त्म को जाती है|बाकि में गठिया समाप्त होने में महीनों से साल भी लग सकते हैं|अंततः बीमारी अपने आप ख़त्म हो जाती है|
2.9 लंबी अवधी में इस बीमारी में क्या होता है?
अधिकतर लोगों में सफल इलाज के बाद यह बीमारी बिना कोई निशान छोड़े चली जाती है|कुछ लोगों में जोड़ों में खराबी आ जाती है,जैसे जोड़ पूरी तरह न हिल पाना या समय से पहले ऑस्टीओ आर्थराइटिस होना|
2.10 क्या इससे पूरी तरह ठीक हो पाना संभव है?
हाँ,९५%से अधिक लोग पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं|
3.1 यह बीमारी बच्चे व् परिवार के जीवन पर क्या प्रभाव डालती है?
दर्द व् जोड़ न हिला पाने के कारण बच्चे खेल कूद में थोड़ी दिक्कत महसूस कर सकते है खास कर के वह पहले से तेज़ नहीं भाग पाते|अधिकतर लोगों में यह बीमारी मामूली सी होती है व् अधिकतर प्रभाव मामूली व् थोड़े समय रहने वाला होता है|
3.2 स्कूल के विषय में क्या होता है?
कुछ समय के लिए स्कूल में खेल कूद में बच्चा शायद हिस्सा न ले पाए,यह बच्चे के जोड़ों पर पडे प्रभाव से निश्चित किया जाता है व् यह निर्णय बच्चा स्वयं ले सकता है की उसकी कितनी क्षमता है|
3.3 खेल कूद के बारे में क्या?
बच्चा इस विषय में अपने आप निर्णय ले सकता है|यदि बच्चा किसी स्पोर्ट्स क्लब का हिस्सा है तब असली इच्छा व् सामर्थ्य अनुसार कुछ समय के लिए इन गतिविधियों को कम कर देना अधिक लाभदायक होता है|
3.4 खाने पीने के बारे में क्या करना चाहिए?
बच्चे को संतुलित आहार दिया जाना चाहिए जिसमे भरपूर प्रोटीन,कैल्शियम व् विटामिन्स हों,जो एक बढ़ते बच्चे के लिए आवश्यक हैं|खान पान का इस बीमारी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता|
3.5 क्या वातावरण का इस बीमारी पर कोई प्रभाव पड़ता है?
हालाँकि टिक्स को गरम व् आद्र मौसम की आवश्यकता होती है,एक बार संक्रमण जोड़ों तक पहुच जाता है,उसके बाद इस बीमारी पर वातावरण का कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता|
3.6 क्या बच्चे का टीकाकरण किया जा सकता है?
टीकाकरण में कोई रोकथाम नहीं है|सफल टीककरण पर इस बीमारी के द्वारा अथवा एंटीबायोटिक के द्वारा कोई प्रभाव नहीं पड़ता|इस बीमारी के अथवा उसके इलाज की वजह से टीकाकरण के बाद कोई अन्य दुष्प्रभाव नहीं देखे जाते|इस बीमारी के लिए अभी कोई टीकाकरण उपलब्ध नहीं है|
3.7 यौन जीवन,गर्भ धारण व् परिवार नियोजन पर कोई प्रभाव होता है?
इस बीमारी के कारण यौन जीवन व् गर्भधारण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता|