बेह्सेट्स रोग  


के संस्करण 2016
diagnosis
treatment
causes
Behcet’s Disease
बेह्सेट्स रोग
बेह्सेट्स सिंड्रोम या बेह्सेट्स रोग (बी
evidence-based
consensus opinion
2016
PRINTO PReS
1. बेह्सेट्स क्या है ?
2. निदान और चिकित्सा
3. दैनिक दिनचर्या



1. बेह्सेट्स क्या है ?

1.1 यह क्या है |
बेह्सेट्स सिंड्रोम या बेह्सेट्स रोग (बी. डी). एक अज्ञात कारण प्रणालीगत वेस्कुलाइट्स (पुरे शरीर में रक्त वाहिकाओं की सुजन)है | म्युकोसा (म्यूकस ऊतक में पैदा होता है जो पाचन, जननांग और मूत्र अंगो की परत में पाया जाता है) और त्वचा को प्रभावित करता है जिसके मुख्य लक्षण मौखिक और जननांग अलसर और आँख, जोड़ों, त्वचा, रक्तवाहिका और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है | इस बीमारी का नाम एक तुर्की डॉक्टर प्रो. हुलिसि द्वारा सन 1936 में दिया गया |

1.2 क्या यह आम बीमारी है ?
बी.डी दुनिया के कुछ हिस्सों में आम है | बी.डी कि भौगोलिक वितरण ऐतिहासिक सिल्क रूट के साथ मेल खाता है |यह मुख्य रूप से सुदूर पूर्व ( जैसे जापान, कोरिया, चीन), मध्य पूर्व (ईरान) और भूमध्य बेसिन (तुर्की, ट्युनिसिया, मोरक्को) अजिसे देशों में पाया जाता है| इसका प्रचलित दर (जनसँख्या में कितने अंक )इस प्रकार है – वयस्क – १००- ३००/ १,००,००० जनसँख्या तुर्की में, १/ १०,००० जापान में, और ०.३११,००,००० उत्तरी यूरोप में| सन २००७ के एक शोध पत्र के तहत ईरान में बी.डी की संख्या ६८/१,००,००० जनसँख्या है जो तुर्की से दुसरे स्थान पर है | अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में भी बी.डी के कुछ मामले पाए गए हैं |
उच्च जोखिम आबादी वाले क्षेत्रों में भी बच्चों में बी.डी दुर्लभ है | नैदानिक मापदंडों के अनुसार १८ वर्ष उम्र तक बी.डी के रोगियों की संख्या लगभग ३-८ प्रतिशत होती है | इस रोग की शुरुवात लगभग २०-३५ वर्ष की उम्र में होती है | यह बीमारी महिलाओं और पुरूषों दोनों में समान रूप से पाई जाती है लेकिन पुरूषों में यह बीमारी अधिक गंभीर होती |

1.3 इस बीमारी के क्या लक्षण है ?
इस बीमारी के कारण अज्ञात हैं | हाल के रोगीओं की एक बड़ी संख्या में किये गए शोध से पता चला है कि बी.डी के विकास में अनुवांशिक संवेदनशीलता की कुछ भूमिका हो सकती है | इसका कोई मुख्य कारण नहीं है | अनुसन्धान क कई केन्द्रों में इस बीमारी के कारणों और उपचार के ऊपर शोध किया जा रहा है |

1.4 क्या यह विरासत में मिली है ?
बी.डी की विरासत का कोई सुसंगत पैटर्न नहीं है, हालांकि कुछ अनुवांशिक संवेदनशीलता का संदेह है, विशेष रूप से जल्द शुरू होने वाले मामलों में |यह सिंड्रोम एक अनुवांशिक गड़बड़ी (एच.एल.ए.—बी.5) के साथ जुड़ा हुआ है, विशेष रूप से यह रोग भू मध्य बेसिन और सुदूर पूर्व के रोगियों में होता है| इस रोग से पीड़ित कुछ परिवारों कि रिपोर्ट ज्ञात है |

1.5 क्यों यह बीमारी मेरे बच्चे में है ? क्या इसे रोका जा सकता है ?
बी.डी को रोका नही जा सकता है और इसके कारण अज्ञात है| बी. डी से ग्रसित बच्चों की रोकथाम करना हमारे बस में नहीं है | इसमें किसी की गलती नहीं है |

1.6 क्या यह संक्रामक है ?
नहीं यह संक्रामक नहीं है |

1.7 इसके मुख्य लक्षण क्या है ?
मौखिक अल्सर : यह लक्षण लगभग हमेशा मौजूद होता है | 2/3 बच्चों में मौखिक अल्सर इस बीमारी का सबसे पहला लक्षण होता है | अधिकांश बच्चों में विभिन्न छोटे मौखिक अलसर दिखाई देते हैं जो सामान्य रूप से होने वाले मौखिक अल्सर जैसे ही होते हैं | बड़े अलसर दुर्लभ होते हैं और इनका इलाज बहुत कठिन हो सकता है |
लैंगिक अलसर : लड़कों में, यह अलसर अधिकतर लिंग पर अंडकोष की थैली पर मुख्य रूप से स्थित होते हैं | व्यस्क पुरुष रोगियों में, यह हमेशा एक निशान छोड़ देते हैं, लड़कियों में, बाह्य जननांग मुख्य रूप से प्रभावित होते हैं | यह अलसर मौखिक अलसर जैसे लगते हैं| बच्चों क व्यस्क होने से पहले लैंगिक अलसर कम होते हैं | लड़कों में अंडकोष की सुजन बार-बार हो सकती है |
त्वचा पर प्रभाव : त्वचा में घाव विभिन्न हो सकते हैं | वयस्कों में यह मुहांसों के घावों जैसा मौजूद होता है |आमतौर पर यह पैरों के नीचे की त्वचा पर लाल –लाल डेन, पीड़ायुक्त, गांठदार घाव जैसे स्थित होते हैं |यह घाव व्यस्क होने से पहले बच्चों में अधिक पाया जाता है |
पैथेरजी प्रतिक्रिया : पैथेरजी एक प्रतिक्रिया है जो बी.डी के रोगीयों की त्वचा में सुई चुभोने के बाद होती है | यह प्रतिक्रिया बी.डी में एक नैदानिक परीक्षण के रूप में प्रयोग की जाती है | बांह की कलाई पर विसंक्रमित सुई के साथ त्वचा में छेड़ करने कके बाद २४- ४८ घन्टों के अंतर्गत एक गोलाकार लाल चकत्ता या फोड़े जैसा दिखाई पड़ता है |
आँख में प्रभाव : आँखों में प्रभाव इस बीमारी का सबसे गंभीर लक्षण है| इसका कुल प्रसार लगभग 5० प्रतिशत है लेकिन लड़कों में यह 70 प्रतिशत तक बढ़ जाता है | लड़कियों की आँखों पर यह कम प्रभाव डालता है |अधिकतम मामलों में दोनों आँखे प्रभावित होती है | लेकिन आमतौर पर यह बीमारी शुरू होने क तीन साल के अन्दर आँखों पर परभाव डालती है | नेत्र रोग के पाठ्यक्रम स्तःयी है और सूजन के हर प्रकरण के साथ धीरे- धीरे दृष्टि हानि के कुछ परिणाम पाए जाते हैं | इसका उपचार सुजन को नियंत्रित करने, फ्लयेर्स को रोकने और बचाने या दृष्टि हानि को कम करने पर केन्द्रित है |
जोड़ो पर प्रभाव : बी.डी वाले बच्चों में जोड़ों पर प्रभाव 30 -50 प्रतिशत तक शामिल है | यह चार जोड़ों को प्रभावित करता है | आमतौर पर यह टखने, घुटने, कलाई और कोहनी को प्रभावित करता है| यह जोड़ों की सूजन, दर्द, जकड़न, और गति को रोकने के कारण हो सकता है | संयोग से आमतौर पर इनका प्रभाव केवल कुछ हफ़्तों के लिये होता है और यह जोड़ स्वयं पुनः ठीक हो जाते हैं | यह सुजन आमतौर पर जोड़ों को नुकसान नहीं पहुचती है |
मस्तिष्क पर प्रभाव : कभी- कभी बी.डी का प्रभाव बच्चों क मस्तिष्क पर भी हो सकता है | इसके मुख्य लक्षण झटके, मष्तिष्क के पानी के दबाव में बढ़त के साथ सिरदर्द व चाल्ने में लड़खड़ाना हो सकते हैं | पुरुषों में सबसे गंभीर रूप देखा जाता है | कुछ रोगियों में मानसिक समस्याओं का विकास हो सकता है |
संवहनी पर प्रभाव : बी.डी के बच्चों में संवहनी पर प्रभाव 12 – 30 प्रतिशत पाया जाता है और यह खराब नतीजे का प्रमाण अहि | किसी भी रक्तवाहिनी पर प्रभाव हो सकता है इसलिये इसे वेरिएबल वेसल साइज वेस्कुलाईटिस कहते हैं | पिंडली की मांसपेशी की रक्त वाहिनियाँ सबसे अधिक प्रभावित होती है जिससे सूजन एवं दर्द होता है |
जठरांत्र (आंत) पर प्रभाव : यह विशेष रूप से सुदूर पूर्व के रोगियों में आम है | आंत का परीक्षण करने पर अलसर का पता चलता है |

1.8 क्या यह रोग हर बच्चे में समान होता है ?
नहीं ऐसा नहीं है | कुछ बच्चों में मौखिक अलसर एवं मामूली त्वचा के घाव की बीमारी हो सकती है जबकि अन्य बच्चों में आँख या तंत्रिका तंत्र में विकार उत्पन्न हो सकते हैं | लडकों और लड़कियों क बीच कुछ अंतर है | आमतौर पर लडकों को लड़कियों की तुलना में ज्यादा गंभीर आँख और संवहनी की बीमारी हो सकती है | रोग के विभिन्न भौगोलिक वितरण के अलावा, इसकी नैदानिक अभिव्यक्तियाँ नही दुनिया भर में भिन्न हो सकती हैं |

1.9 क्या बच्चों में यह रोग व्यस्क में होने वाली बीमारी से भिन्न है ?
बी.डी से व्यस्क की तुलना में बच्चों में दुर्लभ है, लेकिन व्यस्क कि तुलना में बी.डी वाले बच्चों के पारिवारिक मामले अधिक है| यौवन के बाद सामान्यतः रोग की अभिव्यक्तियां वयस्कों के समान होती है, कुछ विविधताओं क बावजूद, बच्चों में बी.डी वयस्कों में होने वाले रोग से मेल खाती है |

2. निदान और चिकित्सा

2.1 इसका निदान कैसे होता है ?
निदान मुख्य रूप से नैदानिक है | बी.डी क लिये वर्णित अंतर्राष्ट्रीय मानदंडो के अनुसार पहले बच्चे को परिपूर्ण करने में एक से पांच साल लग सकते हैं | इन मानदंडों के अनुसार मौखिक अलसर के साथ निम्नलिखित कोई भी दो लक्षण होना जरूरी है :- जननांग अलसर, त्वचा के घाव, सकरात्मक प्रतिक्रिया और आँखों पर प्रभाव | इस रोग के निदान में आमतौर पर तीन वर्ष लगते हैं |
बी.डी के लिय कोई विशिष्ट प्रयोगशाला नहीं है | आमतौर पर 50 प्रतिशत बी.डी के बच्चों में अनुवांशिक मार्कर ए.एल.ए बी. 5 पाया जाता है और यह बीमारी के गंभीर स्वरुप का संकेत है |
जैसा की उपर वर्णित है लगभग 60 से 70 प्रतिशत रोगियों में त्वचा परिक्षण सकरात्मक पाया जाता है | हालाँकि कुछ जातीय समूह में इसकी आवृति कम है | संवहनी और मस्तिष्क पर प्रभाव जानने के लिये कुछ विशेष जांच करना जरुरी होता है |
बी.डी एक बहु- प्रणाली की बीमारी है, आँखों के उपचार (नेत्र- रोग विशेषज्ञ ), त्वचा के उपचार (त्वचा रोग विशेषज्ञ ) और तंत्रिका तंत्र (न्यूरोलॉजिस्ट) के उपचार में विशेषज्ञ का सहयोग आवश्यक है |

2.2 परीक्षण का क्या महत्व है ?
इसके निदान के लिये त्वचा परिक्षण महत्वपूर्ण है | बेह्सेट्स रोग के लिये अंतर्राष्ट्रीय अद्ध्यायाँ समुह वर्गीकरण मानदंड शामिल है | विसंक्रमित सुई से हाथ के अन्दर की तरफ तीन छेद किये जाते हैं| दर्द बहुत कम होता है और प्रतिक्रिया को 24-48 घंटो के बाद देखा जाता है | त्वचा की उत्तेजित प्रतिक्रिया अन्य घाव जैसे आपरेशन या खून निकाले जाने की जगह भी दिखाई देती है | इसलियें बी.डी के रोगियों में अनावश्यक परीक्षण नही करना चाहिये |
कुछ रक्त परीक्षण विभेदक निदान के लिये किया जाता है, लेकिन बी.डी के लिय कोई विशेष प्रयोगशाला परीक्षण नही है | सामान्यतौर पर परिक्षण से सूजन की मात्रा का पता चलता है | मध्यम श्रेणी के अनेमिया और सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि का पता लगाया जा सकता है | जब तक रोगी की देखभाल और दवाओं के दुष्प्रभावों के लिये जरूरी नहीं हो तब तक इन परीक्षणों को दोहराने की कोई आवश्यकता नही है |
कई इमेजिंग तकनीकों का उपयोग संवहनी और न्यूरोलॉजिकल प्रभाव वाले बच्चों में किया जाता है |

2.3 क्या इसका कोई इलाज है या इसको ठीक किया जा सकता है ?
इस बीमारी में उतार चढाव हो सकते हैं | इसे नियंत्रित किये जा सकता है लेकिन ठीक नही किया जा सकता |

2.4 इसका उपचार क्या है ?
इसका कोई विशेष उपचार नहीं है क्योंकि बी.डी के होने का कोई कारण ज्ञात नहीं है | विभिन्न अंग की की भागीदारी के लिए अलग उपचार दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है | स्पेक्ट्रम के एक छोर पर बी.डी. वाले रोगी होते है, जिन्हें किसी भी चिकित्सक की आवश्यकता नहीं होती हैं | दूसरी ओर, आँख, केन्द्रीय तंत्रिक तंत्र और संवहनी रोग के रोगियों के उपचार के संयोजन की आवश्यकता हो सकती है | बी.डी. के उपचार पर लगभग सभी उपलब्ध आंकड़े वयस्क के अध्ययन से आते है | मुख्य दवाओं को नीचे सूचीबद्ध किया गया है :
कोल्चिसिन: यह औषधि बी.डी. के लगभग प्रत्येक अभिव्यक्ति के लिए निर्धारित होती थी, लेकिन हाल के एक अध्ययन में यह जोड़ों की समस्याओं और लाल गठान के इलाज में और भलेश्म अल्सर घटाने में अधिक प्रभावी साबित हुई है |
कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स सूजन को नियंत्रण करने में बहुत प्रभावी है | कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स मुख्यत: आँख, केन्द्रीय केन्द्रीय तंत्रिक तंत्र और संवहनी रोग के बच्चों के लिए बड़ी मात्रा में मौखिक खुराक (1-2 मिलीग्राम/किलो/दिन) में शामिल होता है | अवश्यक होने पर, तत्काल प्रतिक्रिया प्राप्त करने के लिए उन्हें उच्च खुराक (30 मिलीग्राम/किलो/दिन, एक दिन छोड़ कर दिया जा सकता है) | मौखिक अल्सर और आँख की बीमारी (आँखों के रूप में उत्तरार्ध्द के लिए) के उपचार के लिए सामयिक (स्थानीय स्तर पर प्रशासित) कॉर्टिकॉस्टिरॉइड्स का उपयोग किया जाता है |
इम्युनोस्प्रेसिव दवाइयाँ : गंभीर रूप से बीमारी वाले बच्चों को इस समूह की ड्रग्स दी जाती है विशेष रूप से आँख, और प्रमुख अंग या संवहनी प्रभावित बच्चों के लिए दिए जाता है | इसमें अजैथिआन्प्रिन, सैक्लोस्पोरिन ए और सैक्लोफ़ोस्फ़माइद शामिल है |
Antiaggregant और अनतिकोयगुलेंत थेरेपी : संवहनी के प्रभाव वाले कुछ मामलों में दोनों विकल्पों का उपयोग किया जाता है | अधिकांश रोगियों में, एस्पिरिन शायद इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त है |
एन्टी टी.एन.एफ. चिकित्सा : दवाओं का यह समूह बीमारी के कुछ लक्षणों में फायदेमंद हो सकता है |
थैलिदोमाइद : इस औसधीय को कुछ केन्द्रों में मौखिक अल्सर के इलाज में लिया जाता है |
मौखिक और लैंगिक अल्सर के लिए स्थानीय उपचार बहुत महत्वपूर्ण है | बी.डी. रोगियों के उपचार और अनुवर्ती कार्यवाही के लिए टीम के दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है | एक बाल चिकित्सक संधिशोध के अलावा, एक नेत्र रोग विशेषज्ञ और एक हिमेटोलोगिस्ट को टीम में शामिल किया जाता है | परिवार और रोगी को हमेशा चिकित्सक या इलाज के लिए जिम्मेदार केंद्र के संपर्क में होना चाहिए |

2.5 ड्रग थैरेपी के दुष्प्रभाव क्या है ?
कोल्चिसिन दवा से दस्त होने की संभावना होती है | कुछ रोगियों में इस दवाइयों के कारण सफेद रक्त कोशिकाएं और प्लेटलेट्स कम होने की संभावना रहती है | यह दवाई शुक्राणु की मात्रा को कम कर सकती है लेकिन ईलाज में दी जाने वाली दवाई की मात्रा से यह होने कि संभावना कम है | दवाई की मात्रा घटाने या बंद करने से शुक्राणु की मात्रा सामन्य हो जाती है |
संवहनी की सूजन कम करने में कर्तिकोस्तिरिदे एक बेहतर दवाई है किन्तु daibitis, उच्च रक्तचाप, हड्डियों की गलन, मोतियाबिंद, शारीरिक विकास में बाधा जैसे दुष्प्रभाव कम होता है | लम्बे ईलाज वाले बच्चों में इसके साथ कैल्शियम भी देना चाहिए |
इम्युनोस्प्रेसिवे दवाईयों में अजैथिआन्प्रिन का दुष्प्रभाव लिवर सम्बंधित, रक्त कोशिकाएं कम होना और संक्रमण में वृद्धि होना हो सकता है | साइक्लोस्पोरिन ए किडनी के लिए हानिकारक है और इसके कारण उच्च रक्तचाप, शरीर पर अधिक बाल और मसूड़ों में खराबी भी हो सकती है | साइक्लोफ़स्फ़्माइद का दुष्प्रभाव मंजतन्तु एवं मूत्राशय पर हो सकता है | इसका लम्बे समय तक उपयोग महावारी पर असर करता है और यह बांझपन का कारण बन सकता है | इम्युनोस्प्रेसिवे ईलाज लेने वाले बच्चों की निरंतर निगरानी एवं हर एक से दो महीने में खून पेशाब की जांच करना आवश्यक है |
कठिन बीमारी वाले बच्चों में एन्टी टी.न.फ. दवाइयाँ और बायोलोजिक दवाइयों को उपयोग प्रचलन में है | इन दवाइयों से संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है |

2.6 यह ईलाज कितने समय तक चलता है ?
इस प्रश्न का सही जवाब हमें अभी पता नहीं है | संन्य रूप से कम से कम दो वर्श या बीमारी के लक्षण दो वर्श तक शांत रहने के पश्चात् इम्युनोस्प्रेसिवे दवाइयाँ बंद कर दी जाती है | किन्तु संवहनी और आँख पर प्रभाव वाले बच्चों में बीमारी का इलाज लम्बे समय तक चल सकता है | बीमारी के परिणाम स्वरूप के अनुसार कम या ज्यादा किया जाता है |

2.7 क्या कोई अपरम्परागत अथवा पुरक इलाज संभव है ?
कई प्रकार के अपरम्परागत एवं पुरक इलाज उपलब्ध है और यह मरीज और उनके परिवार को भ्रमित कर सकते है | पूरी एवं उपयुक्त जानकारी के अभाव में इस तरह का इलाज करना अनुचित है और इससे किमती समय एवं पैसा बरबाद हो सकता है | इस प्रकार का इलाज लेने से पहले अपने चिकित्सक से सलाह जरुर लेवे | इस प्रकार का इलाज परंपरागत दिए जाने वाले इलाज में बाधा बन सकता है | चिकित्सकीय सलाह अनुसार इस प्रकार का इलाज करने से किसी प्रकार के दुष्प्रभाव से बचा जा सकता है | परंपरागत ईलाज कतही बंद न करे | बंद करने से बीमारी का फिर से उभारना संभावित है | हर प्रकार के इलाज के सम्बन्ध में अपने चिकित्सक से परामर्श जरुर करना चाहिए |

2.8 समयानुसार किस तरह की जांचे आवश्यक है ?
बीमारी में उतार – चढ़ाव एवं इलाज का असर देखने हेतु समयानुसार चिकित्सकीय सलाह लेना आवश्यक है, विशेष रूप से आँखों पर प्रभाव वाले बच्चों के लिए | आँखों की सुजन में पारंगत नेत्र रोग विशेषज्ञ से ही आँखों की जांच करना उचित है | बीमारी का प्रमाण और दी जाने वाली औसधी चिकित्सकीय सलाह की आवृत्ति तय करता है |

2.9 यह बीमारी कितने समय तक चलेगी ?
इस बीमारी में उतार – चढ़ाव दिखाई पड़ता है | किन्तु समय के साथ बीमारी का प्रमाण कम होता नजर आता है |

2.10 बीमारी की लम्बी अवधि के रोग का निदान (भविष्यवाणी पाठ्यक्रम और परिणाम) क्या है ?
बच्चों में बी.डी. बीमारी सम्बंधित डाटा अभी अपर्याप्त है | उपलब्ध डाटा के अनुसार अनेक बच्चों में इलाज की कोई जरुरत नहीं होती है किन्तु जिन बच्चों में आँख, तंत्रिका तंत्र एवं संवहनी पर प्रभाव होता है, इन्हें विशिष्ट इलाज एवं समयानुसार जांच की आवश्यकता होती है | कुछ दुर्लभ मामलों में बी.डी. बीमारी घातक हो सकती है | इसकी वजह प्रमुखता से संवहनी का फूटना, तंत्रिका तंत्र की संवहनी का फूटना और आंत में अल्सर का फूटना हो सकता है | विशेष रूप से यह जापानी लोगों में देखा जाता है | आँखों पर प्रभाव कमजोर दृष्टि का मुख्य कारण है | कर्तिस्तेरोइद्स दवाइयाँ बच्चों के शारीरिक विकास में रुकावट ला सकती है |

2.11 क्या इसे पूरी तरह से ठीक कर पाना संभव है ?
बच्चे में मामूली बीमारी हो तो वह ठीक हो सकती है लेकिन अधिकतम बच्चों में यह बीमारी लम्बे समय तक शांत रहने के पश्चात् फिर से उभर सकती है |


3. दैनिक दिनचर्या

3.1 यह रोग बच्चे और उसके परिवार के दैनिक जीवन को कैसे प्रभावित कर सकता है ?
किसी भी अन्य जीर्ण बीमारी की तरह बी.डी. बच्चों और उनके परिवार के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है | आम तौर पर रोग हलका हो तो आँख और प्रमुख अंग लिप्त नहीं होते है, बच्चे और उनका परिवार सामान्य जीवन व्यतीत कर सकते है | सबसे आम समस्या बारबार होने वाले मौखिक अल्सर है जो कई बच्चों के लिए कस्ट्प्रद होती है | यह घाव दर्दनाक हो सकती है और खाने और पीने में दखल दे सकती है | आँखों की भागीदारी भी परिवार के लिए गंभीर हो सकती है |

3.2 स्कूल के बारे में क्या ?
जिन बच्चों में स्थाई रोग होता है उन्हें अपनी शिक्षा को जारी रखना चाहिए | जब तक बी.डी. से आँखों और अन्य प्रमुख अंग प्रभावित नहीं होते है तब तक बच्चों को नियमित रूप से स्कूल में शामिल होना चाहिए | दृश्य हनी में विशेष शैक्षिक कार्यक्रम की आवश्यकता होती है |

3.3 खेल क बारे में ?
जिन बच्चे में केवल त्वचा एवं म्युकोसा लिप्त है, वे सामन्य खेलकूद गतिविधियों में भाग ले सकते है | जोड़ो के सुजन के दौरान खेलों से बचना चाहिए | बी.डी. में गठिया अल्पकालिक और पुनः पूरी तरह से ठीक हो जाता है | मरीज पुनः खेल खेलना शुरू कर सकता है जब सुजन पूरी तरह से ख़त्म हो जाती है | हालाकि बच्चों में पाव की संवहनी की समस्या हो तो उन्हें लम्बे समय तक खड़े रहने से बचना चाहिए |

3.4 आहार के बारे में ?
भोजन के सेवन पर कोई प्रतिबन्ध नहीं होता है | सामान्य तौर पर बच्चों को उनकी उम्र के हिसाब से सामन्य व संतुलित भोजन करना चाहिए | बढ़ते हुए बच्चों के लिए संतुलित और स्वस्थ आहार में पर्याप्त प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन से भरपूर होना चाहिए | कर्तिकोस्तेरोइद लेने वाले बच्चों को भूख ज्यादा लगती है किन्तु इन्हें अधिक खान – पान से बचना चाहिए |

3.5 क्या जलवायु से यह बीमारी प्रभावित हो सकती है |
नहीं, जलवायु से बी.डी. की अभिव्यक्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है |

3.6 क्या इन बच्चों का टीकाकरण किया जा सकता है ?
चिकित्सक ही फैसला करता है की बच्चे को कोनसा टीका लगा सकते है | इम्युनोसप्रेसिव दावा (साइक्लोस्पोरिन ए, साइक्लोफोस्फमाइड, एंटी-टी.एन.एफ. इत्यादि), से ईलाज लेने वाले बच्चों को निम्नलिखित टीकाकरण (एंटी रूबेला, एंटी मिसल्स, एंटी मम्प्स, एंटी पोलियो सबिन) ईलाज के कुछ समय पश्चात दिया जाता है | यह इसलिए क्योंकि इनमे जीवित वायरस होते है |
वह टिके जिनमे जीवित वायरस नहीं है जैसे (एंटी टिटनेस, एंटी डिफथेरिया, एंटी पोलिआ साल्क, एंटी हेपेटाईटिस बी. एंटी परटूसीस, न्युमोकोकस, हेमोफिलस, मेनिंगोकाकास, इन्फ्लुएंजा), इन बच्चो को दिए जा सकते है |

3.7 यौन जीवन, गर्भावास्ता, और जन्म नियंत्रण के बारे में ?
लैंगिग अल्सर का विकसित होना यौन जीवन को प्रभावित कर सकता है | इन अल्सर में दर्द होने से सम्भोग में बाधा आ सकती है | बी.डी. वाली महिलाओं में यह रोग हल्के रूप में होता है और उनको सामान्य गर्भावस्था का अनुभव होना चाहिए | इम्यूनोस्प्रेसिव दवाओं का उपयोग चलते समय जन्म नियंत्रण साधन पर ध्यान रखना आवश्यक है | मरीज को गर्भावस्था और जन्म नियंत्रण के समय चिकित्सक की सलाह जरुर लेना चाहिए |


 
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