1.1 ये क्या है?
जुवेनाइल स्पा -इ आर ऐ के अंतर्गत वह बीमारियां आती हैं जिनमें लम्बे समय तक जोड़ों की सूजन होती है अतः हडि्डयों और मांसपेशियों को जोड़ने वाली टेन्डेनों की सूजन होती है (उस जगह पर जहॉ वे हड्डी से मिलती) हैं। यह अधिकतर पैरों में होती है पर कभी-कभी ये पीठ के जोड़ों मे भी हो सकती है। (निचली पीठ और कूल्हे के जोड़ों की सूजन अर्थात सेक्रोईलियाटिस से कूल्हे में दर्द होता है)।
जुवेनाइल स्पा -इ आर ऐ उन लोगों में ज्यादा होती है जिनमें HLA- बी27 जीन होता है। हैरानी की बात यह है कि HLA- बी27 जीन वाले कुछ ही लोगों में यह बीमारी होती है। अर्थात HLA- बी27 का होना बीमारी का एक माञ कारण नहीं है हमें यह पता नहीं है कि बी0 27 का इस बीमारी के होने में क्या योगदान है?
कभी-कभी ऑत या पेशाब की नली में संक्रमण से बीमारी के लक्षणों की शुरूआत हो सकती है जिसे रिएक्टिव आर्थराइटिस कहते हैं।
बच्चों में इस बीमारी के कुछ लक्षण और उनकी गंभीरता बडों से भिन्न हो सकती है। फिर भी ये बीमारी बड़ों में होने वाली स्पान्डिलोआर्थोपैथी (रीढ़ और जोड़ों की बीमारी) से मिलती जुलती है। बच्चों में होने वाली यह बीमारियां जिनमें जोड़ों की सूजन के साथ एन्थीसाइटिस होती हैं वे भी जुवेनाइल स्पान्डिलोआर्थोपैथी के अंतर्गत आती हैं।
1.2 किन बीमारियों को जुवेनाइल स्पा -इ आर ऐ कहते हैं?
जैसे कि ऊपर बताया गया है कि जुवेनाइल स्पान्डिलोआर्थोपैथी एक
बीमारी के समूह का नाम है जिनके लक्षण एक दूसरे से मेल खाते हैं जैसे रीढ की हड्डी व जोड़ों में प्रभाव। आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस, सोरिअटिक आर्थराइटिस, रिएक्टिव आर्थराइटिस जो ऑत की बीमारियों के साथ संम्बंन्धित है। एंथेसिटिस रिलेटेड आर्थराइटिस व सोरिअटिक आर्थराइटिस दो अलग बीमारियॉ हैं जो जुवेनाइल स्पा संम्बंन्धित है।
1.3 यह बीमारी कितनी प्रचलित है?
जुवेनाइल स्पा-इ आर ऐ बच्चों में होने वाली जोड़ो की बीमारियों में काफी प्रचलित है। यह लड़कों में लड़कियों की तुलना में ज्यादा पाई जाती है। दुनिया के कुछ भागों में यह बच्चों के गठिया रोग का 30% तक हो सकती है। अधिकतर इसके पहले लक्षण 6 साल की उम्र के आसपास शुरू होते हैं। चूंकि काफी जुवेनाइल स्पा-इ.आर.ऐ. के मरीज (करीब 85%) में HLA बी27 होता है इसलिये इसका प्रचलन जनता अथवा परिवार में HLA बी27 के प्रचलन पर निर्भर है।
1.4 इस बीमारी के क्या कारण हैं?
जुवेनाइल स्पा-इ.आर.ऐ का कारण पता नही है। इसमें हमारे जीन जैसे की HLA बी27 व कुछ और जीन बीमारी होने की संभावना को बढाते हैं। आज-कल यह समझा जाता है कि एच0एल0ए0 बी0-27 जो कि इस बीमारी से संम्बंन्धित है वह ठीक से बनता नहीं है (ऐसा 99% एच0एल0ए0 बी0-27 वाले स्वस्थ लोगों में लहीं होता है) और जब वह अन्य कणों व उनके द्वारा बनाये गये पदार्थों से मिलता है तो व बीमारी को शुरू करता है। पर यह बताना जरूरी है कि एच0एल0ए0 बी0-27 बीमारी का कारण नहीं है परन्तु उसमें उसका सहायक योगदान है।
1.5 क्या ये माता-पिता से बच्चों में आ सकती है?
एच0एल0ए0 बी0-27 जीन अन्य जीन किसी ब्यक्ति में जुवेनाइल स्पा-इ.आर.ऐ होने की संभावना को बढाते हैं। हम यह भी जानते हैं कि करीब 20% इस बीमारी के मरीजों में उनका कोई रिश्तेदार भी प्रभावित होता है। अतः यह बीमारी परिवार में कई लोगों को हो सकती है। पर यह वांशिक बीमारी नहीं है। यह सिर्फ 1% एच0एल0ए0 बी0-27 रखने वाले लोगों होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो 99% एच0एल0ए0 बी0-27 रखने वाले लोगों को जुवेनाइल स्पा-इ.आर.ऐ नहीं होता। अलग-अलग जातियों में अलग जीन पाये गये हैं।
1.6 क्या इसका बचाव संभव है?
इसका बचाव संभव नहीं है क्योंकि इसके कारण अज्ञात हैं। अगर मरीज के भाई बहनों में बीमारी के लक्षण नहीं हैं तो उनकी एच0एल0ए0 बी0 27 जॉच करने का कोई फायदा नहीं।
1.7 क्या ये सक्रमण की बीमारी है?
नही, ये सक्रमण की बीमारी नही है, उन लोगो में भी नहीं जिनमे सक्रमण से बीमारी शुरू होती है। यह भी है कि सब लोग जिनको एक समय पर एक ही बैक्टीरिया से सक्रमण होता है जुवेनाइल स्पा -ई आर ऐ से प्रभावित नहीं होते हैं ।
1.8 इसके प्रमुख लक्षण क्या है?
जुवेनाइल स्पा-इ आर ऐ के कुछ सामान्य लक्षण होते हैं।
जोड़ों में दर्द
इसके प्रमुख लक्षण हैं :जोड़ों में दर्द और सूजन और जोड़ों को पूरी तरह से हिला न पाना।
बहुत बच्चो मे टांग के कुछ जोड़ो में प्रभाव होता हे। ओलिगोआर्थरिटिस का मतलब है 4 या 4 से कम जोड़ो में प्रभाव होना। लंबे दौरान वाली बीमारी वाले बच्चो में पोल्यार्थरिटिस हो सकता है। पोल्यार्थरिटिस का मतलब होता है 4 से अधिक जोड़ प्रभावित होना। जोड़ो की सूजन अधिकतर घुटने, एड़ी, तलवे के बीच का हिस्सा ओर कूल्हा; कभी-कभी पैर के छोटे-छोटे भी जोड़ भी प्रभावित हो सकते हैं।
कुछ बच्चों में हाथ के जोडो़ं में सूजन हो सकती है खासकर कंधों में।
एन्थीसाइटिस
एन्थीसाइटिस, इसका मतलब है उस जगह में सूजन जहॉ टेन्डेन या लिगमेन्ट हड्डी से जुड़ती है। यह स्पा-इ आर ऐ का दूसरा लक्षण है यह खासकर एड़ी में, तलवे के बीच में और घुटने के चारों तरफ पाई जाती है। जिसमें इन जगहों में दर्द होता है। लम्बे समय तक सूजन से हड्डी में बढत हो सकती है खासकर एड़ी में जिससे एड़ी में दर्द होता है।
सेक्रोईलियाटिस
इसका मतलब है कि कमर ओर कूल्हे के पीछे के जोड़ में सूजन। बीमारी की शुरूआत में इसके होने की संभावना कम है। यह बीमारी की शुरूआत के 5 से 10 साल बाद होता है।
कूल्हे में दर्द इसका प्रमुख लक्षण है।
कमर में दर्द, स्पान्डिलाइटिस
रीढ की हड्डी की सूजन शुरूआत में बहुत कम लोगों में होती है। ये बीमारी में कुछ समय बाद हो सकती है। प्रमुख लक्षण है: कमर दर्द, सुबह-सुबह जोड़ों में अकड़न ओर जोड़ों को हिलाने में कठिनाई। कमर में दर्द के साथ गर्दन ओर छाती में भी दर्द हो सकता है। रीढ की हड्डी में लम्बी बीमारी से कभी-कभी हड्डियों के बीच में पुल बन जाते हैं (वैम्वू स्पाइन)। लेकिन ये सिर्फ कुछ ही मरीजों में ओर लम्बी बीमारी के बाद ही मिलता है। इसलिये ये सामान्यतः बच्चों में नहीं पाया जाता है।
ऑख का प्रभाव
एक्यूट एंटीरियर उवेइटिस आँख की झिली की सूजन को कहते है। यह एक असाधारण लक्षण है और यह एक तिहाई मरीजों क एक बार या बार बार बार हो सकता है। एक्यूट एंटीरियर उवेइटिस आँख में दर्द,लाली, व दुँधलापन कर सकता है जो कई हफ्ते रहता है। अधिकतर एक समय पर यह एक आँख को प्रभावित करता है पर बार बार ह सकता है। इसका उसी समय आँख के डॉक्टर से इलाज़ करना जरुरी है। यह ओलिगोआर्थरिटिस व एनए के साथ, लड़कियों में पाये जाने वाले उवेइटिस से भिन्न है।
चमड़ी पर प्रभाव
जुवेनाइल स्पा-इ आर ऐ मैं कुछ बच्चों को या तो पहले से ही सोरिऑसिस होता है या उनहें बाद मे हो जाता है। इन मरीजों को इ आर ऐ नहीं कहते व उनहें सोरिअटिक आर्थराइटिस कहा जाता है। ये एक लम्बे दौरान की चमड़ी की बीमारी है जिसमें चमड़ी उधडनें लगती है खासकर कोहनी और घुटनों पर। कुछ बच्चों में चमड़ी की बीमारी, जोड़ों की सूजन से बहुत पहले आ जाती है और कुछ में बहुत बाद में।
आँत पर प्रभाव
कुछ बच्चों में आँत की बीमारियां जैसे क्रोहन्स डिजीज व अल्सरेटिव कोलिटिस के साथ स्पोन्डयलोअर्थरोपैथी हो सकती है। इ आर ऐ में आंत का प्रज्जवलन शामिल नहीं है। पर कुछ बच्चो में आंत में सूजन ह सकती है (बिना किसी लक्षण के) और जोड़ो का दर्द ही ज्यादा होता है, जिस के लिए दवा लेनी पड़ती है।
1.9 क्या ये बीमारी हर बच्चे में एक सी होती है?
यह बीमारी के अनेक रूप है। कुछ बच्चो में यह बहुत हलकी व थोड़े समय के लिया होती है और कुछ बच्चो में यह लम्बे दौरान के लिए व गंभीर होती है। अतः यह संभव है कि बहुत बच्चो में यह सिर्फ एक जोड़ को कुछ हफ्तों के लिए प्रभावित करे और दोबारा कभी न हो।
1.10 क्या ये बीमारी बच्चों में बडों से अलग होती है?
जुवेनाइल स्पा -ई आर ऐ के प्रारंभिक लक्षण बड़ों में हिने वाले स्पा से अलग होते है , पर वो दोनों सामान प्रकार की बीमारियां है। बीमारी की शुरूआत में बच्चों में हाथ और पैर के जोडो़ं पर प्रभाव ज्यादा होता है जबकि बडों में रीढ की हड्डी पर प्रभाव ज्यादा होता है। बीमारी की गंभीरता बच्चो में ज्यादा होती है
2.1 इस बीमारी को पहचाना कैसे जाये?
डाक्टर कहते हैं कि अगर बीमारी की शुरूआत 16 साल की उम्र से पहले हो, जोड़ों की सूजन 6 हफ्ते से ज्यादा चले और बीमारी के लक्षण ऊपर बताये गये (परिभाषा व लक्षण देखे ) लक्षणों से मेल खाते हों तो ये जुवेनाइल स्पा-ई आर ऐ है। किस विशेष प्रकार का जुवेनाइल-स्पा (एन्कलाइजिंग स्पान्डिलाइटिस, रिएक्टिव आर्थराइटिस वगैरह) को पहचानने के लिये उनके खास लक्षणों और एक्स-रे की जरूरत होती है। इन मरीजों को बाल संधिवात विशेषज्ञ या बड़ों के संधिवात विशेषज्ञ जो बच्चो के जोड़ो की बीमारियो के इलाज़ में माहिर हो को दिखाना चहिये।
2.2 विभिन्न जॉचों के क्या लाभ है?
HLA बी 27 का होना जुवेनाइल स्पा -ई आर ऐ के डायग्नोसिस में मदद करता है। खासकर उन बच्चो में जिन्हें कम लक्षण होते है। यह जानना बहुत जरुरी है कि HLA बी 27 वाले लोगो में से सिर्फ 1 % लोगों को ही स्पा होता है और यह 12 % तक आम जनता में पाया जा सकता है। यह भी जानना जरुरी है कि अधिकतर बच्चे कुछ न कुछ ऐसे कार्यों व खेलकूद में भाग लेते है और चोट के कारण जुवेनाइल स्पा-ई आर ऐ के प्रारंभिक लक्षण जैसे लक्षण हो सकते है। इसलिए सिर्फ HLA बी 27 के होने से नहीं पर उसके साथ स्पा-ई आर ऐ के लक्षण भी होने चाहिये।
जॉच जैसे एरिथ्रोसाइट सेडीमेन्टेशन रेट(इ एस आर) और सी-रिएक्टिव प्रोटीन(सी आर पी) हमें शरीर में होने वाली सूजन और इस तरह से बीमारी के बारे में जानकारी देते हैं यह इलाज में कुछ हद तक मदद करते हैं। इन जॉचों से इलाज या दवाइयों के बुरे असर के बारे में भी जाना जा सकता है (खून, जिगर, और गुर्दे की जॉच)।
एक्स-रे से बीमारी का विकास व जोड़ों की खराबी को पहचाना जा सकता है। परन्तु एक्स-रे स्पा-ई आर ऐ के बच्चों में ज्यादा मददगार नहीं है क्योकि बहुत बच्चों में एक्स-रे ठीक निकलते है। जोड़ो के अल्ट्रासाउंड व एम आर आई से बीमारी के प्रज्वलन के बारे में पता चल सकता है। एम आर आई से सक्रोइलिएक व /और रीढ़ की हड्डी के प्रज्वलन के बारे में पता चल सकता है। जोड़ो के अल्ट्रासाउंड से एंथेसिटिस व जोड़ो में प्रभाव और उसमे प्रज्वलन के बारे में पता चल सकता है।
2.3 क्या इसका इलाज संभव है?
यह दुःख की बात है कि स्पा-ई आर ऐ की बीमारी को पूरी तरह से ठीक करना संभव नहीं है क्योकि इसके कारण अज्ञात हैं। मगर इलाज से इसे बहुत हद तक बीमारी को ठीक किया जा सकता है और जोडों को ख़राब होना रोक जा सकता है।
2.4 इसका क्या इलाज है?
इलाज अधिकतर दवाइयॉ और व्यायाम पर निर्भर हैं जो जोड़ों की सक्षमता बनाये रखने व जोड़ो को टेढ़ा होने से रोकते है। यह जानना जरुरी है कि दवा का प्रयोग हर देश के नियमो के अनुसार ही किया जा सकता है।
सूजन कम करने वाली गैर स्टेरायडल दवाइयॉ (एन0एस0ए0आइ0डी0)
ये सूजन और बुखार को कम करने वाली दवाइयॉ हैं। ये उन लक्षणों को कम करती हैं जो प्रज्वलन की वजह से हैं। बच्चों में सबसे ज्यादा प्रयोग में आने वाली दवाइयॉ हैं – नैप्रोसिन, डिक्लोफेनक और आईबूप्रोफेन। ज्यादातर यह दवाएं कुछ कष्ट नहीं देतीं और इनके बुरे असर जैसे पेट में दर्द बच्चों में कभी कभार ही होता है। अगर एक दवा काम नहीं करे तो दूसरी दी जा सकती है।
कार्टिकोस्टेरायड
यह गंभीर रूप से बीमार मरीजों में कुछ समय तक दी जाती है। ऑख में ड़ालने वाली स्टेरायड "एक्यूट एन्टीरियर यूविआइटिस" में देते हैं। गंभीर रूप से बीमार मरीजों में स्टेरायड का इंजेक्शन, पेरीवल्वर (ऑख के बगल में) या नस में दिया जाता है। कर्टिकोस्टेरॉइड को जोड़ो के दर्द व एंथेसिटिस के देने के पहले, यह ध्यान रखना चाहिए कि स्पा -ई आर ऐ के बच्चो में इनके कारगार होने के सबूत नहीं है सिर्फ विशेषयज्ञ की राय ही है।
अन्य उपचार (रोग संशोधित करने की दवाइयॉ)
सल्फासेलजाइन
ये उन बच्चों में देते हैं जिनमें हाथ-पैर के जोड़ो की बीमारी एन एस ए आइ डी या कॉर्टिकोस्टेरायड इंजेक्शन जड़ो में लगाने के बावजूद बीमारी ठीक नहीं होती है। पहले से चल रही एनएसएआइडी दवा के साथ ही इसे दिया जाता है। इस दवाई का असर कई हफ्तों या महीनों के इलाज के बाद ही आता है। तथापि सल्फासलाज़िन के कारगार होने के थोड़े ही सबूत है। इसी समय मेथोट्रेक्सेट, लेफ़्लुनोमिडे व मलेरिया वाली दवाइयाँ के लगातार जुवेनाइल स्पा-ई आर ऐ में प्रयोग के बावजूद उनसे फायदा होने के बारे में जानकारी सिमित है।
बायोलॉजिक्स
एन्टी-ट्यूमर नेकोसिस फैक्टर (टी0एन0एफ0) दवाइयाँ बीमारी के शुरआती सालो में दी जानी चाहिए क्योकि वह प्रज्वलन को ठीक करने में काफी कारगर है। इन पर किये गए शोधकार्य से इनके कारगर व सुरक्षित होने के प्रमाण है तथा इन्हे गंभीर जुवेनाइल स्पा-ई आर ऐ के मरीजों में प्रयोग किया जा सकता है। इन शोधकार्यों को स्वास्थ्य विभाग में स्वकृति के लिए भेजा गया है जिससे इन्हे स्पा-ई आर ऐ में प्रयोग किया जा सके।
जोड़ों में सुई लगाना
यह उस वक्त करते हैं जब एक या बहुत कम जोड़ों पर प्रभाव हो या फिर जब जोड़ों पर प्रभाव से विकलांगता का खतरा हो। यह सिफारिश की जाती है की इसे के लिए मरीज को वार्ड में भर्ती किया जाये और मरीज़ को सुलाने की दवा दी जाये जिससे की यह प्रक्रिया उत्तम प्रकार से की जा सके।
जोड़ो की शल्य चिकित्सा
गंभीर रूप से प्रभावित जोड़ो, खासकर कूल्हे में नकली जोड़ लगाने पड़ सकते हैं। कारगर दवाओँ के कारन शल्य चिकित्सा की जरुरत काम होती जा रही है।
व्यायाम
व्यायाम इलाज़ का अहम भाग है। यह जल्दी शुरू करना चाहिये और नियम से करते रहना चाहिये जिससे जोड़ों की गति और मॉसपेशियों की ताकत बनी रहे और जिससे जोड़ों की अकड़न व विकलांगता रोंकी व ठीक की जा सके। अगर रीढ की हड्डी प्रभावित है तो उसकी गतिशीलता बनाये रखनी चाहिये और श्वांस के ब्यायाम किये जाने चाहिये।
2.5 दवा के दुष्प्रभाव क्या हैं?
जो दवायें जुवेनाइल स्पा-इ.आर.ऐ इलाज में प्रयोग होती हैं, उनके ज्यादा दुष्प्रभाव नहीं हैं।
एन0एस0ए0आइ0डी0 से होने वाली पेट में जलन (अतः इसे खाने के साथ लेना चाहिये), बच्चों में बड़ों के मुकाबले कम होती है। यह जिगर के एन्जाइम की मात्रा खून में बढा सकती है मगर ये खासकर एस्प्रिन से ही होता है।
सल्फासलाज़िन अच्छी तरह सहन की जाती है : उसके सामान्तया दुष्प्रभाव है पेट में जलन, जिगर के एन्जाइम का बढना, खून के कण कम हो जाना और चमड़ी में चक्कते पड़ना। दुष्प्रभाव जानने के लिए समय-समय पर जॉच कराते रहना जरुरी है।
स्टेरायड को लम्बे समय तक ज्यादा मात्रा में देने से कई बुरे असर हो सकते हैं, जैसे लम्बाई में कमी और हड्डियों में कमजोरी। स्टेरायड की ज्यादा मात्रा भूंख को बढा देती है जिससे मोटापा होता है। इसलिये इन बच्चों को वह चीजें खिलानी चाहिये जिससे भूंख तो मिटती हो मगर चर्बी न बढे।
बओलोजिक दवाओ के इलाज़ (टी एन एफ को रोकने वाली दवाएं) संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। टी बी की जाँच करना अनिवार्य है। आज तक इन दवाओ से कैंसर का खतरा बढ़ने के कोई आभास नहीं है।
2.6 इलाज की अवधि क्या होनी चाहिये?
इलाज तब तक होना चाहिये जब तक बीमारी के ल्रक्षण हों या बीमारी की प्रक्रिया चालू हो । बीमारी की अवधि बताना तो मुश्किल है। कुछ मरीजों में एन एस ए आइ डी दवाओ से अच्छा आराम होता है इनमे इलाज जल्दी (कुछ महीनों में) रोंका जा सकता है। गंभीर और लम्बी बीमारी से ग्रसित मरीजों में सल्फासेलजाइन या दूसरी दवाइयॉ सालों तक चलती हैं। लम्बे समय तक बीमारी के पूरी तरह से ठीक रहने पर ही इलाज को रोका जा सकता है।
2.7 क्या किसी अन्य इलाज से कोई फायदा है?
ऐसे बहुत प्रकार के इलाज प्रचलित हैं जो मरीज व उसके परिवार को भ्रमित कर सकते हैं। इस तरह के इलाज लेने से पहले उनके फायदे व नुकसान को अच्छी तरह समझ लें क्योकि उनमें समय, पैसा इत्यादि लगता है और उनके कारगर होने का कोई अच्छा प्रमाण नहीं है। यदि आप उन्हें लेना चाहते हैं तो अपने चिकित्सक से परामर्श करें। बहुत से चिकित्सक इसका विरोध नहीं करेंगे यदि आप उसके साथ अपनी दवा लेते रहेंगे, दवा बंद करना खतरनाक हो सकता है, दवा के बारे में अपने बच्चे के डाक्टर से बात करें।
2.8 यह बीमारी कब तक चलती है? समय के साथ इसका क्या होता है?
बीमारी की दशा अलग-अलग मरीज में अलग-अलग होती है। कुछ में यह थोडे से इलाज से ही ठीक हो जाती है (कुछ महीनों में) जबकि कुछ में ये घटती बढती रहती है। इसके अलावा कुछ में ये ठीक हो ही नहीं पाती है। ज्यादातर मरीजों में बीमारी के लक्षण जोड़ों और ऐन्थीसीस तक सीमित रहते हैं। समय के साथ-साथ कुछ में कमर और कूल्हे की जोड़ों में तथा रीढ की हड्डी में प्रभाव हो जाता है। इनमें तथा लम्बी बीमारी के दौरान तक जोड़ों की सूजन रहने वाले मरीजों में जोड़ों में अक्षमता या विकलांगता हो सकती है। बीमारी के शुरू में उसके लम्बे समय तक होने वाले प्रभाव को बताना मुश्किल है। ठीक इलाज बीमारी की गति व उसके परिणाम को बदल सकता है।
3.1 बीमारी से बच्चे और परिवार की दिनचर्या पर क्या असर पड़ता है?
जब बीमारी जोरों पर होती है तो बच्चा अपनी रोजमर्रा के कार्यों में कठिनाई महसूस करता है। चूँकि यह पैरों को ज्यादा प्रभावित करती है इसलिये चलने और खेलकूद पर ज्यादा प्रभाव होता है। मॉ-बाप को चाहिये कि व बच्चे में बीमारी के बावजूद सक्षमता की भावना जगायें जिससे बच्चे को बीमारी से उबरने मे आसानी हो। वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके और उसका मानसिक विकास भी अच्छा हो। अगर परिवार बीमारी का बोझ न उठा सके या उसके साथ अच्छा जीवन जी सके तो मानसिक सहायता की जरूरत होती है। माता-पिता को बच्चे की शारीरिक व्यायाम व दवा लेने को प्रोत्साहित करना चाहिये।
3.2 स्कूल के बारे में?
स्कूल जाने में कुछ परेशानियॉ हो सकती हैं जैसे चलने में तकलीफ जोडों में अकडन, दर्द या थकान। इसलिये अध्यापकों को बच्चे की जरूरतों के बारे बताना जरूरी है जैसे ढंग की मेज, स्कूल के दौरान बच्चे की गतिशीलता बनाये रखना जिससे जोडों में अकडन न हो। बच्चे के लिये व्यायाम की कक्षा भी जरूरी है। व्यायाम व खेलकूद के बारे में जो नीचे लिखा है उसका ध्यान रखना चाहिये। जब बीमारी ठीक हो जाती है तब बच्चा अन्य बच्चों की तरह हर प्रकार की गतिविधियों में भाग लेने में कोई कठिनाई नहीं महसूस करता है।
स्कूल एक ऐसी जगह है जहॉ बच्चे का पूर्ण विकास होता है और वह सक्षमता का पाठ सीखता है। माता-पिता और अध्यापकों को चाहिये कि वे बीमार बच्चों को आम बच्चों की तरह ही स्कूल की गतिविधियों में भाग लेने के लिये प्रेरित करें जिससे न कि पढाई में कामयाबी हो बल्कि दोस्त व बडे उन्हें समझ सकें और उन्हें अपना सकें।
3.3 खेलकूद के बारे में?
खेलकूद बच्चे की दिनचर्या का एक अहम हिस्सा है। हमें उन खेलकूदों पर ज्यादा जोर देना चाहिये जिनमें जोडों पर ज्यादा असर न हो जैसे तैराकी और साइकिल चलाना।
3.4 भोजन के बारे में?
भोजन से बीमारी पर कोई प्रभाव नहीं होता। बच्चे को संतुलित आहार लेना चाहिये। स्टेरायड लेने वाले बच्चों को कम खाना चाहिये क्योंकि स्टेरायड भूख बढा देती है।
3.5 क्या मौसम बीमारी पर प्रभाव डाल सकता है?
ऐसे किसी प्रभाव की कोई पुष्टि नहीं हुई है।
3.6 क्या बच्चे को टीके दिये जा सकते हैं?
चूँकि अधिकतर मरीजों को एन एस ए आइ डी या सल्फासेलजाइन देते हैं, इसलिये टीके दिये जा सकते हैं। अगर मरीज को शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को कम करने वाली दवायें दी जा रही हैं जैसे स्टेरायड¸ मेथोट्रेक्सेट¸ एन्टीबाडीज इत्यादि तो जीवित वाइरस के टीके जैसे रूबेला, मीजल्स, पैरोटाइटिस¸ पोलियो (सबीन) को कुछ समय के लिये रोकना पडता है नहीं तो संक्रमण का खतरा रहता है। जिन टीकों में जीवित वाइरस नहीं होते हैं जैसे टेटनस डिप्थीरिया, पोलियो (साक) हेपटाइटिस बी¸ परट्यूसिस, न्यूमोकोकस, हिमोफिल्स, मेनिन्गोकोकस उन्हें दिया जा सकता है। शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर करने वाली दवायें टीके का असर कम कर सकती हैं।
3.7 पति पत्नी के बीच के रिश्ते और पेट में पल रहे बच्चे पर पभाव?
ऐसे किसी दुष्प्रभाव की कोई जानकारी नहीं है। फिर भी दवाओं से पेट में पल रहे बच्चे पर होने वाले दुष्प्रभाव से सतर्क रहना चाहिये। ऐसी स्थिति में भी परिवार बढाने में कोई मनाही नहीं है। यह बीमारी प्राणघातक नहीं है और अगर परिवार के दूसरे बच्चों में जीन आ भी जाये तो भी उनमें यह बीमारी न होने की संभावना है।
3.8 क्या बच्चा एक आम जिन्दगी जी सकेगा?
हमारे इलाज का यही लक्ष्य है और ज्यादातर बच्चों में इलाज से यह संभव है। इस तरह की बीमारी के इलाज पिछले सालों में बहुत वेहतर हुये हैं। दवाओं और व्यायाम से अधिकतर मरीजों में जोडों की अक्षमता और विकलांगता को रोका जा सकता है।