1.1 यह क्या है?
माजीद सिंड्रोम एक बहुत ही कम होनेवाली आनुवंशिक बीमारी है| इस बीमारी से पीड़ीत बच्चों को क्रॉनिक मल्टीफोकल ऑस्टियोमायलिटिस (सीआरएमओ), कानजिनाईटल डिसेरिथ्रोपॉयटिक अनिमिया (सीडीए) और इनफ्लामेटोरी डर्माटोसिस का सामना करना पड़ता है| सरल शब्दों में कहा जाए तो मरीज़ को खून की कमी हो सकती है और साथ ही हड्डी जोड़ों आदि में दर्द होता है और इसके साथ चर्म संबंधी रोग भी हो सकते हैं|
1.2 यह कितनी आम है?
यह बीमारी बहुत ही कम देखी जाती है| यह केवल मध्य पूर्व क्षेत्र की नस्ल के लोगों में (तुर्कों, जोरदान के रहने वाले) / परिवारों में पाई जाती है| ऐसा अनुमान लगाया गया है कि वास्तविक रूप में यह बीमारी दस लाख बच्चों में से एक से कम बच्चे में पाई जाती है|
1.3 बीमारी के कारण क्या हैं?
इस बीमारी के अंतरगत एल.पी.आई.एन-२ नामक अनुवंश में कुछ परिवर्तन होते हैं| इसका असर १८पी गुणसूत्र (chromosome 18p) पर पड़ता है जो लिपिन २ नामक प्रोटीन के संकेत लिपि के लिए जिम्मेदार है| अनुसंधान कर्ताओं का यह मानना है कि इस प्रोटीन का शरीर के चर्बी रूपी चयापचय में मुख्य योगदान है| लेकिन माजीद से पीड़ित लोगों के लिपिड़ (चर्बी जैसा) में कोई भी असामान्यताएँ नहीं पाई गई हैं|
लिपिन-२ का संबंध सूजन, प्रदाह आदि कम करने में एवं कोशिका विभाजन में भी हो सकता है|
एल पी आई एन - २ अनुवंश के परिवर्तन से लिपिन-२ की संरचना (बनावट) और कार्यों में बदलाव आता है| लेकिन इस बात का पूरी तरह से खुलासा नहीं हो पाया है कि इस अनुवंशिक परिवर्तन से माजीद से पीड़ित मरीज़ों में, हड्डियों की बीमारी, खून की कमी एवं त्वचा संबंधित बीमारियॉं (बीमारी के लक्षण), प्रदाह, सूजन आदि कैसे होते हैं।
1.4 क्या यह बीमारी माता-पिता से मिलती है ?
‘‘हॉं, यह विरासत में मिलती है, लेकिन इसका लिंग भेद से कोई संबंध नहीं है| इस तरह की विरासत का मतलब होता है कि माजीद होने के लिए व्यक्ति (मरीज़) को दो परिवर्तित अनुवंश मिलें| एक माता से तथा दूसरा पिता से प्राप्त हो अर्थात् रोगी नहीं बल्कि माता-पिता में इस बीमारी के अनुवंश होते हैं लेकिन प्रत्येक में एक-एक परिवर्तित अनुवंश होता है, बीमारी नहीं होती| आम तौर पर देखा गया है कि माजीद से पीड़ित बच्चों के माता-पिता में बीमारी के कोई लक्षण नज़र नहीं आते हैं किन्तु कुछ माता-पिता में सोरियासिस (अपरस) नामक चर्म रोग नज़र आता है| जिन माता-पिता के एक बच्चे को माजीद है; उसी माता-पिता के दूसरे बच्चे में यही बीमारी होने की संभावना लगभग २५% है| बच्चे के जन्म के पूर्व ही इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है|
1.5 मेरे बच्चे को यह बीमारी क्यों हुई? क्या इसे रोका जा सकता है?
बच्चे को यह बीमारी ऐसे परिवर्तित अनुवंशों से हुर्इ है, जो माजीद सिंड्रोम पैदा करते हैं|
1.6 क्या यह छूत से लगने वाली बीमारी है?
नहीं, ऐसा नहीं है|
1.7 इसके मुख्य लक्षण क्या हैं?
इस बीमारी से पीड़ित बच्चों को क्रॉनिक मल्टीफोकल ऑस्टियोमायलिटिस (सीआर एमओ) कानजिनाईटल डिसेरिथ्रोपायटिक अनीमिया (सीडीए) और इनफ्लामेटोरी डर्माटोसिस का सामना करना पड़ता है| इस बीमारी से जुड़ा हुआ (सीआरएमओ), पृथक (सीआरएमओ) से अलग है क्योंकि इसकी शुरुवात बचपन में ही हो जाती है| इसके अलावा इन लक्षणों का बारबार प्रकट होना और यह यथार्थता कि यह आजन्म/आजीवन रह सकता है जिसके अतिरिक्त मंद विकास एवं जोड़ों में तकलीफ हो सकती है; इसे अलग करता है| सी डी ए के मुख्य लक्षण हैं गौण एवं हड्डी मज्जा संबंधित माइक्रोसाइटोसिस| अलग अलग मरीज़ों में इसकी तीव्रता अलग हो सकती है| कुछ मरीज़ों को इससे थोड़ी र्कत की कमी (रक्तालप्ता) हो जाती है तो कुछ को रक्त-आधान की ज़रूरत पड़ती है| चर्म संबंधी लक्षण ज्यादातर कम तीव्र ही होते हैं किंतु कुछ मरीज़ों में इसकी तीव्रता अधिक भी हो सकती है|
1.8 इस बीमारी की संभावित जटिलताएँ क्या हो सकती है?
सी आर एम ओ से मंद विकास एवं जोड़ों मे विकृति होने की संभावना है| इसकी वजह से कुछ जोड़ों के चलने फिरने में बाधा पड़ सकती है| रक्त की कमी से मरीज़ को थकान, कमज़ोरी और सांस फूलने की तकलीफों का सामना करना पड़ सकता है| सीडीए की जटिलताएँ सौम्य से लेकर गंभीर तक कोई भी रूप धारण कर सकती हैं|
1.9 क्या हर बच्चे को एक जैसी बीमारी होती है?
क्योंकि यह बीमारी बहुत ही गैर मामूली है, इस विषय पर बहुत ही कम जानकारी प्राप्त है| लेकिन यह देखा गया है कि कुछ बच्चों में बीमारी के लक्षणों की तीव्रता साधारण होती है और कुछ बच्चों में गंभीर|
1.10 क्या बच्चों में यह बीमारी बड़ों से भिन्न होती है?
वयस्कों में इस बीमारी के बारे में बहुत कम जानकारी प्राप्त है| लेकिन यह पाया गया है कि वयस्कों में जटिलताओं की वजह से विकलांगता ज्यादा हो जाती है|
2.1 इसका पता कैसे लगाते हैं ?
डॉक्टर को इस बीमारी का संदेह मरीज़ को देखने पर पता चलता है| किन्तु पूरी तरह से निश्चित होने के लिए मरीज़ का आनुवंशिक विश्लेषण ज़रूरी है| इस जॉंच/विश्लेषण से इस बात का खुलासा हो जाता है कि मरीज़ दो परिवर्तित अनुवंशों का वाहक है; एक उसके माता से मिला है एवं एक उसके पिता से प्राप्त हुआ है| ऐसे आनुवंशिक विश्लेषण (जॉंच पड़ताल) की सुविधा हर बडे अस्पताल में उपलब्ध नहीं है|
2.2 रक्त जॉंच का क्या महत्व है?
रक्त परीक्षण जैसे इ एस आर, सी आर पी, संपूर्ण रक्त गणना एवं फाइब्रिनोजेन का कराना अत्यंत आवश्यक है| इससे खून की कमी की तीव्रता तथा सूजन, प्रदाह आदि की मात्रा का भी पता चल जाता है|
समय समय पर यह परीक्षण फिर कराते हैं ताकि देखा जा सके कि नतीजा सामान्य या लगभग सामान्य निकलता है या नहीं| आनुवंशिक परीक्षण के लिए भी कुछ मात्रा में रक्त की ज़रूरत होती है|
2.3 तो फिर इलाज क्या है?
माजीद सिंड्रोम का इलाज कुछ दवाइयों से किया जा सकता है| लेकिन इसका पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है|
2.4 इलाज किस प्रकार किया जाता है ?
इसी बीमारी के इलाज के लिए कोर्इ मानकीकृत चिकित्सीय विधि नहीं है| सी आर एम ओ का इलाज ज्यादातर (
एन एस एड्स) से किया जाता है| मांसपेशियों एवं हड्डियों के अपक्षय को रोकने या कम करने के लिए थेरापी की ज़रूरत पड़ती है| अगर ऐसा प्रतीत हो कि एन एस एड्स का सेवन करने के बाद भी सीआरएमओ की प्रतिक्रिया ठीक नहीं है तो कॉरटिकोस्टेराइड्स का उपयोग भी किया जा सकता है| लंबे समय तक कॉरटिकोस्टेराईड्स का उपयोग करने पर होने वाली जटिलताओं को मद्दे नज़र रखते हुए बच्चों में इसके प्रयोग को सीमित किया जाता है| हाल ही में दो बच्चों में एंटी आई एल १ दवाइयों की अच्छी प्रतिक्रिया देखी गई है| ज़रूरत पड़ने पर सी डी ए का इलाज/उपचार रक्त-आधान से किया जाता है|
2.5 इस दवा के सह-प्रभाव क्या है?
कॉरटीकोस्टेराइड्स के कुछ सह-प्रभाव हैं जैसे वज़न का बढ़ना, चेहरे पर सूजन आना और मिज़ाज में बार बार परिवर्तन आना| अगर इन स्टेराइड्स का सेवन लंबे समय तक किया जाता है, तो इसकी वजह से बच्चे/मरीज़ का विकास कम हो सकता है और उन्हें ऑस्टियोपोरोसिस, मधुमेह एवं रक्त-चाप भी हो सकता है|
अनाकिन्रा का सबसे कष्टप्रद दुष्प्रभाव यह है कि इंजेक्शन दिए गए जगह पर बहुत दर्द होता है| कभी-कभी यह दर्द एक कीड़े के डंक जैसा लगता है| विशेषतः इलाज के पहले हफ्तों में दर्द काफी ज़्यादा प्रतीत होता है| माजीद के अलावा किसी और बीमारी का इलाज अनाकिन्रा और
कानाकिनुमाब से करने पर मरीज़ों में इनफेक्शन/संक्रमण भी पाया गया है|
2.6 यह इलाज कितने दिनों तक चलना चाहिए ?
इलाज जीवन पर्यन्त चलता है|
2.7 किसी और गैर परम्परागत इलाज के बारे में क्या राय है?
ऐसे किसी भी गैर परम्परागत इलाज के विषय में कोई जानकारी नहीं है|
2.8 समय-समय पर किस तरह के परीक्षण ज़रूरी है?
जिन बच्चों को यह बीमारी है, उन्हें इस बीमारी के विशेषज्ञ (डॉक्टर) से साल में कम से कम ३ बार मिलने की ज़रूरत है| ऐसा करने पर बीमारी पर नियंत्रण रखने और दवाइयों की मात्रा तय करने में आसानी होगी| समय-समय पर पूर्ण रक्त गणना की जॉंच कराने की ज़रूरत भी पड़ती है| ऐसा करने पर यह पता लगाना आसान हो जाता है कि मरीज़/बच्चे को रक्त-आधान की ज़रूरत है या नहीं| इससे सूजन प्रदाह आदि के नियंत्रण का मूल्यांकन भी किया जा सकता है|
2.9 यह बीमारी कितने दिन रहती है|
हालाकि यह बीमारी पूरी ज़िंदगी रहती है, लेकिन समय के साथ-साथ इसकी तीव्रता में उतार-चढ़ाव होते रहते हैं|
2.10 बहुत दिनों तक बीमारी रहने से क्या होता है ?
बहुत दिनों तक बीमारी के रहने से मरीज़ को कई तकलीफों का सामना करना पड़ता है| लेकिन यह लक्षणों की तीव्रता पर भी निर्भर करता है| अगर इस बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो इसका असर जीवन की गुणवत्ता पर पड़ता है| ऐसे मरीज़ों को अत्यधिक दर्द सहना पड़ता है, इसके साथ उनमें रक्त की कमी रहती हैं और हड्डियों और मांसपेशियों का शोष होता है|
2.11 क्या इस बीमारी से पूर्णतः ठीक हो पाना सम्भव है?
नहीं, क्योंकि यह एक आनुवंशिक बीमारी है|
3.1 इस बीमारी से बच्चे एवं माता-पिता का दैनिक जीवन कैसे प्रभावित होता है?
बीमारी का पता लगने के पूर्व ही बच्चे और उसके माता-पिता को बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है|
कुछ बच्चों को हड्डी से संबंधित विकृतियों का सामना करना पड़ता है जिससे उनकी दिनचर्या में विघ्न/बाधा पड़ती है| आजीवन इलाज चलने के कारण कई बार यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या का रूप धारण कर लेती है | शैक्षणिक कार्यक्रमों के द्वारा मरीज़ों एवं उनके माता पिता को इन सभी समस्याओं के विषय में जागृत किया जा सकता है|
3.2 स्कूल का क्या होगा ?
बीमार बच्चों का स्कूल जाना बंद नहीं करना चाहिए| ऐसा हो सकता है कि बार बार बीमार पड़ने की वजह से बच्चे को स्कूल जाने में समस्या हो | इसलिए यह ज़रूरी है कि बच्चे के शिक्षकों को इस बीमारी की पूरी जानकारी हो| ऐसा करने पर वे बच्चे की सारी ज़रूरतों पर ध्यान दे सकेंगे| इससे बच्चे की पढ़ाई पर विपरीत असर नहीं होगा और वह अपने मित्रों और वयस्कों द्वारा स्वीकारा और सराहा जाएगा| पेशेवर दुनिया में भविष्य में एकीकरण करने के लिए ऐसा करना बहुत ज़रूरी है|
3.3 खेल-कूद के बारे में क्या राय है?
खेल-कूद हर बच्चे के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है| इस चिकित्सा विधान का उद्देश्य यह है कि बच्चे अपनी जिंदगी जहॉं तक हो सके, सामान्य रूप से जिएँ और अपने-आप को दूसरे बच्चों से अलग न समझें| इसलिए सहनशीलता के अनुसार सभी कार्यकलाप किए जा सकते हैं| लेकिन, बीमारी के दौरान शारीरिक गतिविधि को सीमित रखना होगा या आराम करना होगा|
3.4 क्या खान-पान पर कोई पाबंदी है?
नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है|
3.5 मौसम के कारण क्या रोग पर कोई प्रभाव पड़ता है?
नहीं, मौसम के कारण रोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है|
3.6 क्या बच्चे को टीके लगाए जा सकते हैं?
जी हॉं, बच्चे को टीके ज़रूर लगाए जा सकते हैं, जैविक टीके देने से पहले चिकित्सक/डॉक्टर को बीमारी के बारे में जानकारी देना ज़रूरी है|
3.7 यौन जीवन, गर्भधारण और परिवार नियोजन के बारे में क्या किया जा सकता है?
इस विषय पर आजतक कोई लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है| लेकिन, सामान्य नियमानुसार अन्य बीमारीयों की तरह गर्भधारण के पूर्व ही इन दवाइयों के भ्रूण पर होने वाले असर के बारे में सोच लेना उत्तम है|