1.1 यह क्या होता है?
पापा का प्रयोग तब किया जाता है जब एक साथ कुछ बिमारियों का समूह पाया जाता है,जैसे पायोजेनिक आर्थराइटिस,पायोडरमा गैन्ग्रीनओसम|पापा सिंड्रोम एक अनुवांशिक तौर से निर्धारित रोग है| यह एक असामान्य रोग है जो आमतौर से नहीं देखा जाता|इस बीमारी में तीन प्रकार की तकलीफों का समूह देखा जाता है|इसमें पुनरावत्त गठिया,त्वचा का एक विशेष प्रकार का अलसर,जिसे पायोडरमा गैंग्रीनओसम कहा जाता है व् एक विशेष प्रकार के सिस्टिक मुहांसे देखे जाते हैं|
1.2 यह कितनी आम बीमारी है?
पापा सिंड्रोम एक दुर्लभ बीमारी है इस बीमारी के काफी कम मामलों का वर्णन किया गया है हो सकता है कि इस बीमारी के मामलों का मूल्यांकन कम किया गया हो यह तकलीफ महिलाओं व पुरूषों में सामान्य रूप से पाई जाती है| आमतौर से यह बीमारी बालावस्था में आरम्भ हो जाती है|
1.3 यह बीमारी किन कारणों से होती है?
यह एक अनुवांशिक बीमारी है जिसमे एक जीन ,पीएसटीपीआईपी१,में उत्परिवर्तन के कारन होती है|इस उत्परिवर्तन से इस जीन के द्वारा बनाये जाने वाले प्रोटीन का कार्य परिवर्तित
हो जाता है|वह प्रोटीन प्रज्ज्वलन उत्त्पन्न करता है|
1.4 क्या यह रोग अनुवांशिक है?
पापा सिंड्रोम एक आटोसॉमल डोमिनेंट अनुवांशिक बीमारी है| इसका अर्थ है कि यह लिंग से जुड़ा नहीं है। इसका भी अर्थ यह है कि एक माता पिता कम से कम रोग के कुछ लक्षण दिखाता है और आम तौर पर एक से अधिक प्रभावित व्यक्ति को एक परिवार में देखा जा सकता है| पीड़ित परिवार की प्रत्येक पीढ़ी में इस तकलीफ से पीड़ित व्यक्ति पाए जाते हैं|इस सिंड्रोम से प्रभावित व्यक्ति यदि परिवार नियोजन करता है तब इस सिंड्रोम से प्रभावित शिशु होने की ५०% संभावना होती है|
1.5 मेरे शिशु को यह बीमारी कैसे हो गयी?क्या इस बीमारी की रोकथाम की जा सकती है?
बच्चे में यह बीमारी अनुवांशिक तौर से आती है,माता पिता में किसी एक अथवा दोनों में उत्परिवर्तित जीन के होने की वजह से यह बच्चे में आ जाती है|ऐसा संभव है की माता पिता में इस जीन के उत्परिवर्तन के बाद भी इस बीमारी के कोई भी लक्षण ना हों अथवा कुछ ही लक्षण हों|इस बीमारी की रोकथाम नहीं की जा सकती परंतु इसके लक्षणों की निवारण किया जा सकता है|
1.6 क्या यह संक्रामक रोग है?
पापा सिंड्रोम संक्रामक नहीं है|
1.7 इस रोग के प्रमुख लक्षण क्या हैं?
गठिया,सिस्टिक एक्ने व् पायोडरमा गैंग्रीनओसम इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं|कदाचित ही यह तीनों लक्षण एक ही रोगी में एक साथ एक ही समय पर पाए जाते हैं|आमतौर से सबसे पहले गठिया रोग आरम्भ होता है व् अधिकतर एक समय पर एक की जोड़ की तकलीफ आरम्भ होती है(यह १-१० वर्ष तक की आयु में आरंभ हो सकता है) प्रभावित जोड़ में लाली व् सूजन आ जाती है और जोड़ दुखने लगता है|ऐसा प्रतीत होता है जैसे सेप्टिक गठिया हो(ऐसा गठिया जो जोड़ में कीटाणु के कारण होता है)|पापा सिंड्रोम में गठिया के कारण जोड़ की झिल्ली(कारटीलेज) व् जोड़ के पास की हड्डी में खराबी आ सकती है|त्वचा के अलसर,जिन्हें पायोडरमा गैंग्रीनओसम कहते हैं,आमतौर से पैरों पर होते हैं व् १० वर्ष की आयु के बाद देखै जाते हैं|सिस्टिक एक्ने आमतौर से किशोरावस्था में होते हैं व् वयस्क होने पर भी रह सकते हैं|यह अधिकतर चेहरे व् देह पर देखे जाते हैं|
1.8 क्या प्रत्येक बच्चे में एक सी बीमारी देखी जाती है?
नहीं,हर बच्चे की बीमारी अलग तरह से दिखाई देती है|बीमारी की तीव्रता इस पर निर्भर करती है की बच्चे की जीन में कितनी उत्परिवर्तता आई है|किसी में बीमारी के लक्षण बहुत तीव्र होते हैं,व् किसी में बहुत साधारण लक्षण देखे जाते हैं(ऐसा वेरिएबल पेनेट्रेन्स के कारण होता है|
2.1 इस बीमारी का निदान कैसे किया जाता है?
जिन बच्चों को सेप्टिक गठिया जैसी सूजन जोड़ों में बार बार आती है जिसमे एंटीबायोटिक दवाई असर नहीं करती उनमें इस बीमारी के बारे में सोचा जाता है|गठिया व् त्वचा की तकलीफ आमतौर से एक साथ नहीं देखी जाती व् कभी कभी एक ही मरीज में भी नहीं देखी जाती|चूंकि यह बीमारी ऑटोसोमल डोमिनेंट है,इसलिए विस्तार से परिवार के अन्य सदस्यों में इसी तरह के लक्षणों के विषय में भी जानकारी प्राप्त करनी चाहिए|इस बीमारी का निदान सिर्फ अनुवांशिक विश्लेषण के ज़रिये किया जा सकता है|
2.2 इस बीमारी में जांचों का क्या महत्व है?
रक्त की जांच: ईएसआर,सीआरपी व् रक्त कण की गणना,यह अधिकतर गठिया के दौरान असामान्य होते हैं|इन जाचों से प्रज्ज्वलन के होने के विषय में जानकारी मिलती है|पर यह इस बीमारी के लिए विशिष्ट नहीं होती|
जोड़ के द्रव्य का विश्लेषण:गठिया के दौरान,जोड़ में से तरल पदार्थ(साइनोवियल फ्लूइड)की जाँच की जाती है|पापा सिंड्रोम के मरीजों में यह पदार्थ पस की तरह पीला व् गाड़ा दिखाई देता है,व् इसमें अधिक सफ़ेद रक्त कण (नयूयूट्रोफिल्स)पाए जाते हैं|यह सेप्टिक गठिया जैसा ही होता है परंतु कीटाणु नहीं पाया जता|
अनुवांशिक जांच: पीएसटीपीआईपी१ नमक जीन में उत्परिवर्तन का पाया जाना ही यह एक अकेले ऐसी जांच है जो इस बीमारी का ठोस निदान कर सकती है|यह जांच थोड़े से रक्त पर की जा सकती है|
2.3 क्या इस बीमारी का इलाज अथवा उन्मूलन किया जा सकता है?
चूंकि यह एक अनुवांशिक बीमारी है इस लिए इसे ठीक नहीं किया जा सकता|
पर जोड़ों में प्रज्ज्वलन काम करने की दवाओं के ज़रिये जोड़ की खराबी की रोकथाम की जा सकती है|त्वचा के अलसर का इलाज भी ऐसे ही किया जाता है,पर उन्हें ठीक होने में अधिक समय लग सकता है|
2.4 इस बीमारी के लिए क्या इलाज उपलब्धद हैं?
पापा सिंड्रोम का इलाज रोगी में पाए जाने वाले प्रमुख लक्षण को देख कर किया जाता है|मुख से अथवा जोड़ के अंदर
स्टेरॉइड्स से गठिया में जल्दी सुधर हो जाता है|कभ कभी इनका प्रभाव संतोषजनक नहीं होता व् मरीज़ को बार बार गठिया हो सकता है,ऐसी स्तिथि में लंबे समय के लिए स्टेरॉइड्स का उपयोग करना पड़ सकता है जिनके कुछ दुष्प्रभाव भी पड़ सकते हैं|पायोडरमा गैंग्रीनओसम स्टेरॉइड्स से कुछ काम हो जाता है व् त्वचा पर लगाए जाने वाले मलहम से प्रज्ज्वलन की रोकथाम करने वाली दवाओं से कम हो जाता है|त्वचा की प्रतिक्रिया धीमी होती है व् अधिक तकलीफ दे सकती है|
आजकल,किसी किसी मरीज़ को नयी
बिओलोगिक दवाई जो की आई एल -१ या टी एन एफ को रोकती हैं,का प्रयोग किया जाता है|यह दवाएं पायोडरमा के इलाज व् गठिया के इलाज व् रोकथाम में सहायक हो सकती हैं|चुकी यह रोग अत्यंत दुर्लभ है इसलिए इस इलाज का कोई ठोस वैज्ञानिक सबूत नहीं है|
2.5 दवाओं के दुष्प्रभाव क्या हैं?
स्टेरॉइड्स देने से वज़न बढ़ना,चेहरे पर सूजन आना व् मनोदशा में बदलाव आना|लंबे समय तक इन दवाओं के प्रयोग से शारीरिक विकास में रूकावट आती है व् हड्डियों में पतलापन आ सकता है|
2.6 इस का इलाज कब तक किया जाता है?
इस का इलाज एक साथ लंबे समय तक नहीं किया जाता|इलाज का मुख्य उद्देश्य बार बार हो रहे गठिया व् त्वचा की तकलीफ को रोकना है|
2.7 क्या अपरंपरागत व् अन्य तरह के इलाज किये जा सकते हैं?
इस तरह के इलाज के विषय में कोई साहित्य उबलब्ध नहीं है|
2.8 यह बीमारी कब तक रहती है?
उम्र के साथ इस बीमारी के लक्षण काम हो जाते हैं व् कभी कभी पूरी तरह से ख़तम भी हो सकते हैं|हालाँकि यह सभी मरीजों में नहीं देखा गया है|
2.9 लंबे दौर में इस बीमारी को क्या होता है?
उम्र के साथ इस बीमारी के लक्षण काम हो जाते हैं.क्योंकि यह एक दुर्लभ बीमारी है इसलिए इसके लंबे समय तक का पूर्वानुमान लगा पाना कठिन है|
3.1 इस बीमारी का बच्चे व् परिवार ऊपर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
जब गठिया का प्रकरण तीव्र होता है तब सामान्य जीवन की गतिविधियां करने में तकलीफ होती है|हालाँकि अगर इनका सही प्रकार से तुरंत इलाज कर दिया जाये तो यह जल्दी ठीक हो जाती है|पायोडरमा को ठीक होने में थोड़ा अधिक समय लगता है व् यह अत्यंत दुखदाई हो सकता है|जब यह त्वचा में ऐसी जगह पर दीखता है जो बाहर से दिखाई देते हैं(जैसे चेहरा) तब यह मरीजों व् माता पिता के लिए अधिक पीड़ाजनक होता है|
३.३.क्या बच्चा खेलकूद में हिस्सा ले सकता है?
बच्चा अपनी सामर्थ्य अनुसार सभी गतिविधियों में हिस्सा ले सकता है|इसलिए बच्चा सभी गतिविधियों में भाग ले सकता है पर यदि कोई जोड़ दुखे तब उसे गतिविधि बंद करनी पड़ सकती है|खेल शिक्षक खेल से हो सकने वाली चोट का बचाव बच्चे को सीखा सकते हैं,खासकर किशोरों को|खेल के दौरान लगने वाली चोट के कारण जोड़ व् त्वचा का प्रज्ज्वलन बढ़ सकता है पर इनका तुरंत इलाज किया जा सकता है व् इनकी वजह से होने वाली चोट अधिकतर सीमित होती है|पर यदि बच्चे को खेल कूद में बीजमारी की वजह से भाग ही न लेने दिया जाये तब उसकी मनोदशा पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है|
3.2 क्या बच्चा विद्यालय जा सकता है?
लंबी अवधि तक चलने वाली बीमारियों में बच्चों का पढाई पूरा करना अत्यंत महत्वपूर्ण है|कुछ कारणों से बच्चे को विद्यालय रोज़ जाने में तकलीफ हो सकती है इसलिए यह आवश्यक है की शिक्षक को इस बीमारी व् उससे होने वाली तकलीफ से अवगत करा दिया जाये|अभिभावकों व् शिक्षकों को जितना बन पड़े उतना बच्चे की मदद करनी चाहिए जिससे बच्चा विद्यालय में हो रही गतिविधियों में भाग ले सके|इससे न सिर्फ बच्चा अपने पाठ्यक्रम में अच्छा करेगा बल्कि उसके मित्र व् अन्य सदस्य उसको बीमारी के बावज़ूद स्वीकार पाएंगे|भविष्य में कामकाज करना इस युवा रोगी के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है व् लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों से पीड़ित बच्चों की देखभाल का एक महत्वपूर्ण उद्द्येश्य है|
3.3 क्या बच्चा खेलकूद में हिस्सा ले सकता है?
बच्चा अपनी सामर्थ्य अनुसार सभी गतिविधियों में हिस्सा ले सकता है|इसलिए बच्चा सभी गतिविधियों में भाग ले सकता है पर यदि कोई जोड़ दुखे तब उसे गतिविधि बंद करनी पड़ सकती है|खेल शिक्षक खेल से हो सकने वाली चोट का बचाव बच्चे को सीखा सकते हैं,खासकर किशोरों को|खेल के दौरान लगने वाली चोट के कारण जोड़ व् त्वचा का प्रज्ज्वलन बढ़ सकता है पर इनका तुरंत इलाज किया जा सकता है व् इनकी वजह से होने वाली चोट अधिकतर सीमित होती है|पर यदि बच्चे को खेल कूद में बीमारी की वजह से भाग ही न लेने दिया जाये तब उसकी मनोदशा पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है|
3.4 खानपान में क्या करना चाहिए?
इस बीमारी के लिए किसी विशेष खान पान की आवश्यकता नहीं है|आमतौर से बच्चे को उसकी उम्र के अनुसार सामान्य खान पान लेना चाहिए|बच्चे के लिए स्वच्छ संतुलित आहार जिसमें कैल्शियम,प्रोटीन व् विटामिन बढ़ते बच्चे के लिए पर्याप्त मात्रा में हों दिए जाने चाहिए|स्टेरॉइड्स की वजह से भूक अधिक बढ़ जाती है पर इस दौरान बहुत अधिक मात्रा में खाना नहीं खाना चाहिए|
3.5 क्या वातावरण का इस बीमारी पर कोई प्रभाव पड़ता है?
नहीं
3.6 क्या बच्चे का टीकाकरण किया जाना चाहिए?
हाँ,बच्चे का टीकाकरण किया जा सकता है व् करना चाहिए,हलकनि चिकित्सक को जीवित एटेनुएटेड टीके लगाने के पहले जानकारी होनी चाहिए जिससे वह बच्चे की तकलीफ के अनुसार टीकाकरण के विषेय में बता सके|
3.7 यौन जीवन,गर्भावस्था व् परिवार नियोजन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अभी तक साहित्य में बीमारी के इस पेहलु पर कुछ नहीं पाया गया है|आमतौर से देखा जाये तो किस भी अन्य ऑटो इंफ्लेमेटरी बीमारी की तरह इस में भी परिवार नियोजन किया जाना चाहिए व् गर्भ धारण नियोजित रूप से करना चाहिए जिससे होनी वाले शिशु को दवाओं के दुष्प्रभाव से बचाया जा सकता है|