1.1 यह क्या है?
एन एल आर पी-१२ से संबंधित आवर्तक बुखार एक आनुवंशिक बीमारी है| इस बीमारी का कारण एन एल आर पी-१२ (या एन ए एल पी-१२) नामक अनुवंश है| मरीज़ों में आवर्तक बुखार के साथ-साथ सरदर्द, जोड़ों में दर्द तथा सूजन और त्वचा के लाल (दाने) चकत्ते के लक्षण भी दिखाई देते है| हालाकि यह बीमारी जानलेवा नहीं है किंतु इलाज न कराने पर मरीज़ को अत्यधिक कमज़ोरी महसूस होती है|
1.2 यह कितनी आम है?
यह बीमारी बहुत ही गैर मामूली है| आज, पूरे विश्व में १० से कम व्यक्ति इस बीमारी का शिकार हुए हैं|
1.3 बीमारी के कारण क्या हैं ?
एन एल आर पी-१२ से संबंधित आवर्तक बुखार एक आनुवंशिक बीमारी है| इस बीमारी का कारण एन एल आर पी०१२ (या एन एल ए पी-१२) नामक अनुवंश है| यह अनुवंश शरीर की सूजन संबंधी प्रतिक्रिया के खराबी के लिए जिम्मेदार है| इसकी खराबी की क्रियाविधि पर शोध कार्य अभी जारी है|
1.4 क्या यह बीमारी माता-पता से मिलती है?
हॉं, यह बीमारी विरासत में मिलती है| इसका अर्थ-यह है कि रोगी के माता या पिता में से कोई एक व्यक्ति इस बीमारी से प्रभावित है| कभी कभी ऐसा भी होता है कि परिवार का कोई अन्य सदस्य आवर्तक ज्वर से पीड़ित नहीं होता है| इसके दो कारण हो सकते हैं| या तो गर्भ धारण के समय ही यह अनुवंश क्षतिग्रस्त हो जाता है या फिर माता या पिता जो इस बीमारी से पीड़ित है, वे इस बीमारी से संबंधित लक्षण बहुत कम प्रदर्शित करते हैं|
1.5 मेरे बच्चे को यह बीमारी क्यों हुई है? क्या इसे रोका जा सकता है?
बच्चों को यह बीमारी माता या पिता से विरासत में मिली है| माता या पिता में से किसी एक में एन एल आर पी-१२ नामक परिवर्तित अनुवंश होता हैं| परंतु यह जरूरी नहीं है कि परिवर्तित अनुवंश का वाहक इस बीमारी के लक्षण प्रदर्शित करें| फिलहाल इस बीमारी को रोकने के लिए कोई साधन/दवाइयॉं नहीं है|
1.6 क्या यह छूत से लगने वाली बीमारी है?
नहीं, ऐसा नहीं है| केवल आनुवंशिक परिवर्तन से पीड़ित लोग ही इस बीमारी का शिकार होते हैं|
1.7 इसके मुख्य लक्षण क्या हैं?
बीमारी का मुख्य लक्षण बुखार है| बुखार ५-१० दिनों तक रहता है और कुछ हफ्तों और महीनों के अंतराल में बार-बार आता है बुखार के साथ-साथ कई बार सरदर्द, जोड़ों में सूजन तथा दर्द, त्वचा के लाल चकत्ते तथा वात-रोग के लक्षण भी नज़र आते हैं| एक परिवार में केवल तंत्रिका संबंधी बहरापन देखा गया था|
1.8 क्या हर बच्चे को एक जैसी बीमारी होती है?
यह बीमारी हर बच्चे में एक जैसी नहीं होती| यही नहीं, उसी बच्चे में इस बीमारी की किस्म, अवधि और गंभीरता भी अलग-अलग हो सकती हैं|
1.9 क्या बच्चों में यह बीमारी बड़ों से भिन्न होती है?
मरीज़ों के बड़े होने के साथ-साथ बुखार का आना कम हो जाता है| लेकिन यह पाया गया है कि अधिकतम मरीज़ों में बीमारी की कुछ न कुछ सक्रियता हमेशा रहती है|
2.1 इसका पता कैसे लगाते हैं ?
चिकित्सा (डॉक्टर) विशेषज्ञ को इस बीमारी का संदेह मरीज़ के शारीरिक जॉंच के समय बताए गए लक्षण एवं उसके परिवार के चिकित्सा इतिहास से पता चलता है|
बीमारी के दौरान कई बार रक्त जॉंच करने के बाद सूजन का पता चलता है| लेकिन आनुवंशिक विश्लेषण के बाद ही इस बात की पुष्टि की जा सकती है कि मरीज़ को यह बीमारी है यह ज़रूरी है क्योंकि कई अन्य बीमारियों में भी आवर्तक बुखार देखा जाता है खास कर सायरोपायरिन संबंधित आवधिक रोग में अनेक लक्षणों का समावेश|
2.2 परीक्षण का क्या महत्व है?
जैसे कि बताया जा चुका है प्रयोगशाला परीक्षण से एन एल आर पी-१२ से संबंधित आवर्तक बुखार का पता लगाना महत्वपूर्ण है| सी आर पी, पूर्ण रक्त गणना एवं सीरम एमाइलोइड ए प्रोटीन (एसएए) परीक्षण कराने से हमले से सूजन की तीव्रता का पता लगाया जा सकता है|
बच्चों के लक्षण मुक्त हो जाने के बाद भी यह परीक्षण फिर कराते हैं ताकि देखा जा सके कि नतीजा सामान्य या लगभग सामान्य निकलता है या नहीं| आनुवंशिक परीक्षण के लिए भी कुछ मात्रा में रक्त की ज़रूरत होती है|
2.3 क्या इसका इलाज संभव है?
एन एल आर पी-१२ से संबंधित आवर्तक बुखार का कोई इलाज नहीं है| बीमारी के हमले को रोकने के लिए भी कोई इलाज नहीं है| लेकिन बीमारी के लक्षणों का इलाज करने से सूजन और दर्द को काफी हद तक दूर किया जा सकता है| सूजन घटाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली कुछ नई दवाइयों पर भी जॉंच पड़ताल जारी है|
2.4 तो फिर इलाज क्या है ?
एन एल आर पी-१२ से संबंधित आवर्तक बुखार का इलाज कुछ
एन एस ए आई डी से किया जा सकता है जैसे
इंडोमेथासिन,
कारटिकोस्टेराइड्स जैसे प्रडनिसलोन और कुछ जगहों पर
अनाकिन्रा इन में से कोई भी दवाई बीमारी का पूर्ण रूप से इलाज करने में सार्थक नहीं हुई है लेकिन इनका सेवन करने से मरीज़ की हालत में कुछ सुधार अवश्य हुआ है|
2.5 इस दवा के सह-प्रभाव क्या हैं?
हर दवाई का मरीज़ पर बुरा प्रभाव अलग अलग होता है| एन एस ए आई डी से मरीज़ को सरदर्द पेट में छाले होना एवं गुर्दा क्षति होने की संभावना रहती है| कारटीकोस्टेराइड्स लेने से इनफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है (कई गुना) इसके अलावा कारटीकोस्टेराइड्स के शरीर पर कई और दुष्प्रभाव हो सकते हैं|
2.6 यह इलाज कितने दिनों तक चलना चाहिए?
इलाज का जीवन पर्यन्त चलना ज़रूरी है| आम तौर पर पाया गया है कि मरीज़ के बढ़ते उम्र के साथ उसकी सामान्य प्रवृत्ति में सुधार आता है| जब बीमारी के सभी लक्षण पूरी तरह से खत्म हो जाएँ, उस समय इलाज को रोका जा सकता है|
2.7 किसी और गैर परम्परागत इलाज के बारे में क्या राय है?
ऐसे किसी किस्म के गैर परम्परागत इलाज के विषय पर कोई प्रकाशित रिपोर्ट नहीं है|
2.8 समय-समय पर किस तरह के परीक्षण जरूरी हैं?
जो बच्चे इस बीमारी से पीड़ित है, उन्हें वर्ष में दो बार अपने रक्त तथा मूत्र की जॉंच जरूर करानी चाहिए|
2.9 यह बीमारी कितने दिन रहती है?
हालाकि यह बीमारी पूरी ज़िंदगी रहती है, लेकिन समय के साथ-साथ इसके लक्षणों की तीव्रता कम होती जाती है|
2.10 बहुत दिनों तक बीमारी रहने से क्या होता है?
एन एल आर पी-१२ से संबंधित आवर्तक बुखार आजीवन चलने वाली बीमारी है लेकिन बढ़ती उम्र के साथ इसके लक्षणों की तीव्रता में कमी पाई गई है| क्योंकि यह बीमारी बहुत ही कम लोगों में पाई जाती है, इसके दीर्घकालिक निदान के विषय में कुछ कहा नहीं गया है|
3.1 इस बीमारी से माता-पिता का दैनिक जीवन कैसे प्रभावित होता है?
बार-बार बुखार आने की वजह से बच्चे और माता-पिता के दैनिक जीवन पर असर पड़ सकता है| कई बार बीमारी का पता चलने के लिए काफी समय लग जाता है जिसकी वजह से यह समस्या मनोवैज्ञानिक हो जाती है| कई बार बच्चों पर कई तरह की चिकित्सा प्रक्रिया बेवजह होती है|
3.2 स्कूल का क्या होगा?
बीमार बच्चों का स्कूल जाना बंद नहीं करना चाहिए| ऐसा हो सकता है कि बार बार बीमारी का दौरा पड़ने से बच्चे को स्कूल जाने में समस्या हो| इसलिए यह ज़रूरी है कि बच्चे के शिक्षकों को इस बीमारी की पूरी जानकारी हो | ऐसा करने पर वे बच्चे की सारी ज़रूरतों पर ध्यान दे सकेंगे| इससे बच्चे की पढ़ाई पर विपरीत असर नहीं होगा और वह अपने मित्रों एवं वयस्कों द्वारा स्वीकारा और सराहा जाएगा| पेशेवर दुनिया में भविष्य में एकीकरण करने के लिए ऐसा करना बहुत जरूरी है|
3.3 खेल-कूद के बारे में क्या राय है?
खेल-कूद हर बच्चे के जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है| इस चिकित्साविधान का उद्देश्य यह है कि बच्चे अपनी ज़िंदगी जहॉं तक हो सके, सामान्य रूप से जिएँ और अपने आप को दूसरे बच्चों से अलग न समझें| इसलिए सहनशीलता के अनुसार सभी कार्यकलाप किए जा सकते है| लेकिन, बीमारी के दौरान शारीरिक गतिविधि को सीमित रखना होगा और समय-समय पर आराम भी करना होगा|
3.4 क्या खान-पान पर कोई पाबंदी है?
खान-पान पर कोई खास पाबंदी या परहेज नहीं है| बच्चे के आयु के अनुसार पौष्टिक आहार खाना ज़रूरी है| खाने में उचित मात्रा में प्रोटीन, कैल्शियम और विटामिन का होना भी आवश्यक है| ज़रूरत से ज़्यादा खाना नहीं खाना चाहिए क्योंकि यह देखा गया है कि कॉरटीकोस्टेराइड्स लेने वाले मरीज़ों को दवाई की वजह से ज़्यादा भूख लगती है|
3.5 मौसम के कारण क्या रोग पर कोई प्रभाव पड़ता है?
ठंडी या जाड़े से बीमारी के लक्षण शुरु हो सकते हैं|
3.6 क्या बच्चे को टीके लगाए जा सकते हैं?
जी हॉं, बच्चे को टीके ज़रूर लगाए जा सकते हैं| लेकिन जीवित तनु टीके देने के पहले चिकित्सक/डॉकटर को बीमारी के बारे में जानकारी देनी होगी क्योंकि एसे टीके चिकित्सा विधान से असंगत हो सकते हैं|
3.7 यौन जीवन, गर्भधारण और परिवार नियोजन के बारे में क्या किया जा सकता है?
इस विषय पर आज तक कोई लिखित जानकारी उपलब्ध नहीं है| लेकिन, सामान्य नियमानुसार अन्य बीमारियों की तरह गर्भधारण के पूर्व ही इन दवाइयों के भ्रूण पर होनेवाले असर के बारे में सोच लेना उत्तम है|