1.1 यह क्या है?
डीरा एक गैर मामूली आनुवंशिक बीमारी है। इस बीमारी से प्रभावित बच्चों के हड्डियों एवं त्वचा में तीव्र सूजन पाई जाती है। शरीर के अन्य अंग जैसे फेफड़ों पर भी इसका प्रभाव हो सकता है। अगर ठीक इलाज न किया जाए तो मरीज़ में तीव्र विकलांगता हो सकती है और कुछ मरीज़ों की मौत भी हो सकती है ।
1.2 यह कितनी आम है?
डीरा बहुत ही गैर मामूली है। फिलहाल, पूरे विश्व मं केवल कुछ ही लोगों में यह बीमारी पाई गई है।
1.3 बीमारी के कारण क्या हैं?
डीरा एक आनुवंशिक बीमारी है । इसके उत्तरदायी अनुवंश का नाम आई एल वन आर ए (IL-1RA) है । यह अनुवंश IL-1RA नामक प्रोटीन का उत्पादन करता है जिसकी सूजन कम करने में मुख्य भूमिका होती है। IL-1RA हमारे शरीर में इंटरल्युकिन-1 (IL-1) नामक प्रोटीन को बेअसर करता है जिसकी मुख्य भूमिका मनुष्य के शरीर में तीव्र सूजन पैदा करना है। अगर IL-1RA अनुवंश परिवर्तित हो जाता है, जैसा कि डीरा में होता है, तो शरीर में IL-1RA का उत्पादन बंद हो जाता है। अतः IL-1RA का कोई विपक्षी नहीं रहता है और इस कारण वश मरीज़ के शरीर में सूजन होने लगती है।
1.4 क्या यह बीमारी विरासत से मिलती है?
हाँ, यह विरासत में मिलती है लेकिन इसका लिंग भेद से कोई संबंध नहीं है । इस तरह की विरासत का मतलब होता है कि डीरा होने के लिए व्यक्ति (मरीज़) को दो परिवर्तित अनुवंश मिलें ।
एक माता से तथा दूसरा पिता से प्राप्त हो अर्थात् रोगी नहीं बल्कि माता-पिता में इस बीमारी के अनुवंश होते हैं लेकिन प्रत्येक में एक-एक परिवर्तित अनुवंश होता है, बीमारी नहीं होती। जिन माता-पिता के एक बच्चे
को डीरा है, उसी माता-पिता के दूसरे बच्चे में यही बीमारी होने की संभावना लगभग 25% है। बच्चे के जन्म के पूर्व ही इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है।
1.5 मेरे बच्चे को यह बीमारी क्यों हुई? क्या इसे रोका जा सकता है?
बच्चे को यह बीमारी इसलिए हुई है क्योंकि वह डीरा पैदा करने वाले परिवर्तित अनुवंशों के साथ पैदा हुआ था।
1.6 क्या यह छूत से लगने वाली बीमारी है?
नहीं, ऐसा नहीं है ।
1.7 इसके मुख्य लक्षण क्या हैं?
इस बीमारी के मुख्य लक्षण त्वचा एवं हड्डियों में सूजन है। चर्म का लाल होना एवं उसपर दाने और फुंसियों का आना त्वचा रूपी सूचन की मुख्य विशेएताएँ हैं। यह शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकता है। त्वचा की बीमारी तो अनायास ही आ जाती हैं लेकिन स्थानीय चोट उसे तीव्र बनाने में बढ़ौती देने का काम करती है। मिसाल के तौर पर नसों द्वारा दवाई देने पर (चढ़ाने पर) उस स्थान पर सूजन होने की संभावना है। अगर हड्डियों में सूजन है तो उस जगह पर दर्दनीय फुलाव पाया जाता है । साथ ही में इस हड्डी के ऊपरी तहत की चमड़ी पर भी लालिमा होती है। कई बार उस जगह पर गर्मीं (हल्की) भी महसूस की जा सकती हैं ।
कई तरह की हड्डियाँ इस में शामिल हो सकती हैं जैसे कि हाथ और पाँव एवं पसलियाँ । सूजन ज़्यादतर हड्डियों के ऊपर पाई जाने वाली झिल्ली पर होती है। झिल्ली पर पीड़ा । दर्द का बहुत तेज़ असर होता है। इसलिए पीड़ित बच्चे अधिकतर रूप से चिड़चिड़े रहते हैं। इस वजह से उनके पोषण एवं विकास पर विपरीतार्थक असर होता है। जोड़ो में सूजन होना डीरा का लक्षण नहीं है। जिन मरीज़ों को डीरा है, उनके नाखून भी विकृत हो सकते हैं।
1.8 क्या हर बच्चे को एक जैसी बीमारी होती है?
सभी पीड़ित बच्चे गंभीरता से बीमार होते हैं । लेकिन हर बच्चे में यह बीमारी अलग-अलग रूप में पाई जाती है। एक ही परिवार में होने के बावजूद हर पीड़ित बच्चे की स्थिति अलग होगी है।
1.9 क्या बच्चों में यह बीमारी बड़ों से भिन्न होती है?
डीरा की पहचान केवल बच्चों में की गई है। अतीत में प्रभावी चिकित्सा मिलने के पूर्व बच्चे वयस्कता तक पहुँचने के पहले ही चल बसते थे । इसलिए वयस्कता में डीरा के असर के विषय में कुछ कहा नहीं जा सकता है ।
2.1 इसका पता कैसे लगाते हैं?
डॉक्टर को डीरा का संदेह मरीज़ को देखने पर पता चलता है । किंतु पूरी तरह से निश्चित होने के लिए मरीज़ का आनुवंशिक विश्लेषण जरुरी है। इस जाँच से इस बात का खुलासा हो जाता है कि मरीज़ दो परिवर्तित अनुवंशों का वाहक है। एक उसके माता से मिला है एवं एक उसके पिता से प्राप्त हुआ है। ऐसे आनुवंशिक विश्लेषण की सुविधा हर तृतीयक देखभाल केंद्र में उपल्ब्ध नहीं है ।
2.2 जाँच का क्या महत्व है?
रक्त परीक्षण जैसे ई एस आर, सी आर पी, संपूर्ण रक्त गणना एवं फाइब्रिनोजेन का कर ना अत्यंत आवश्यक है। इससे सूजन की तीव्रता एवं प्रदाह आदि का पता चलाया जा सकता है ।
जब बच्चा बीमारी के लक्षणों से मुक्त हो जाता है, तो वह यह परीक्षण फिर कराते है ताकि देखा जा सके कि नतीजा सामान्य या लगभग सामान्य निकलता है या नहीं।
रक्त की एक छोटी सी मात्रा आनुवंशिक विश्लेषण के लिए भी ली जाती है। जो बच्चे उपचार के लिए जीवन भर अनाकिन्रा का सेवन/प्रयोग करते हैं, उन्हें समय-समय पर अवलोकन के लिए मूत्र एवं रक्त का परीक्षण कराते रहना पड़ता है ।
2.3 तो फिर इलाज क्या है?
इस बीमारी का पूरी तरह से नाश नहीं किया जा सकता है। लेकिन जीवन भर अनाकिन्र का प्रयोग कर इसका इलाज किया जा सकता है ।
2.4 इलाज किस प्रकार किया जाता हैं ?
सिर्फ मामूली सूजन एवं प्रदाह दूर करने वाली दवाईयों से डीरा का पर्याप्त रूप से नियंत्रण नहीं किया जा सकता है। कॉरटिकोस्टेराईड़स की ज्यादा मात्रा में खुराक लेने पर बीमारी के लक्षण जरुर कम होते हैं लेकिन इससे कई अवांछित दुष्प्रभाव होते हैं। अनाकिन्रा का असर शुरु होने तक हड्डियों में दर्द कम करने के लिए दर्द निवारक औषधी का सेवन करना ज़रूरी होता है। डीरा के मरीज़ों में जिस IL-1RA प्रोटीन की कमी होती है। अनाकिन्रा उसी प्रोटीन से कृत्रिम रूप से तैयार किया जाता है इस तरह से मरीज़ के शरीर में स्वाभाविक रूप से होने वाली IL-1RA की कमी को ठीक कर बीमारी का नियंत्रण किया जा सकता है। बार-बार बीमारी के पुनरावृत्ति को रोका जा सकता है। मूल्यांकन के बाद बच्चे को रोज़ अनाकिन्रा का इंजेक्शन लेना पड़ेगा। अगर यह किया जाय तो अधिकतर मरीज़ों में सारे लक्षण गायब हो जाते हैं। किंतु कुछ मरीज़ों में आंशिक प्रतिक्रिया पाई गई है। डॉक्टर की सलाह लेने के पूर्व माता-पिता को दवाई की खुराक में कोई बदलाव नहीं करना चाहिए ।
अगर मरीज़ ने इंजेक्शन लेना बंद कर दिया, तो बीमारी वापस आ जाती है। क्योंकि यह बीमारी जान लेवा साबित हो सकती है; ऐसा करना ठीक नहीं होगा ।
2.5 इस दवा के सह प्रभाव क्या हैं?
इंजेक्शन के स्थल पर दर्द होना इस इलाज का सबसे कष्टप्रद सह प्रभाव है। खास तौर पर इलाज के पहले कुछ हफ्तों तक ये काफी कष्टदायी हो सकता है। डीरा के अलावा अन्य बीमारियों का इलाज अनाकिन्रा द्वारा किए जाने पर कुछ मरीज़ों में इन्फेक्शन (संक्रमण) दिखाई पड़ा है । ठीक उसी तरह कुछ बच्चों में वजन की अत्यधिक बढ़ौती देखी गई है। किन्तु इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है कि यही बात डीरा पर लागू है या नहीं। 21वी सदी के शुरुआत से ही बच्चों पर अनाकिन्रा का प्रयोग किया जा रहा है। इसलिए इसकी दीर्घकालिक सह प्रभाव के बारे में अभी ठीक से कुछ कहा नहीं जा सकता है।
2.6 यह इलाज कितने दिनों तक चलना चाहिए?
इलाज जीवन पर्यन्त चलेगा ।
2.7 किसी और गैर परमपरागत इलाज के बारे में क्या राय है?
ऐसे किसी भी गैर परम्परागत इलाज के विषय में कोई जानकारी नहीं है ।
2.8 समय समय पर किस तरह के परीक्षण ज़रूरी है?
जिन बच्चों का इलाज किया जा रहा है, उनके रक्त और मूत्र की जाँच, साल में काम से कम दो बार की जानी चाहिए।
2.9 यह बीमारी कितने दिन रहती है?
यह बीमारी पूरी ज़िंदगी रहती है ।
2.10 बहुत दिनों तक बीमारी रहने से क्या होता है?
अगर डीरा से पीड़ित बच्चों का
अनाकिन्रा द्वारा इलाज जल्द शुरु कर दिया गया हो और कई दिनों तक च लता रहे तो यह बच्चे सामान्य जीवन बिता सकते हैं। किन्तु यदि इलाज शुरु करने में देर हो जाए अथावा ठीक तरह से न हो तो प्रगतिशील रूप से बीमारी में वृद्धि हो सकती है। इसमें गंभीर रूप से हड्डियों में विकृति हो सकती है, विकलांगता हो सकती है चमड़े पर घाव पड़ सकते हैं और अंततः बच्चे की मौत भी हो सकती है।
2.11 क्या इस बीमारी से पूर्णतः ठीक हो पाना संभव हैं?
नहीं, क्योंकि यह एक आनुवंशिक बिमारी है। लेकिन आजीवन चिकित्सा कराने से मरीज बिना किसी प्रतिबंध के सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है ।
3.1 इस बीमारी से बच्चे एवं माता-पिता का दैनिक जीवन कैसे प्रभावित होता है?
बीमारी का पता लगने के पूर्व बच्चे और उसके माता-पिता को बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। लेकिन बीमारी का खुलासा होने के बाद एवं इलाज शुरु होने पर कई बच्चे लगभग सामान्य जीवन व्यतीत करने लगते हैं। कुछ बच्चों को विकलांगता का सामना करना पड़ता है जिससे उनके दैनिक जीवन में हस्तक्षेप हो सकता है। रोज इंजेक्शन लेना भी कष्टदाई हो सकता है। इसके अलावा प्रयाण/यात्रा के समय अनाकिन्र के भंडारण में भी तकलीफ हो सकती है।
आजीवन इलाज चलने के कारण कई बार यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या का रूप धारण कर लेती है। शैक्षणिक कार्यक्रमों के द्वारा मरीज़ों एवं उनके माता-पिता को इन सभी समस्याओं के विषय में जागृत किया जा सकता है।
3.2 स्कूल का क्या होगा?
अगर बमिारी की वजह से स्थायी विकालंगता न हुई हो और अनाकिन्रा इंजेक्शन द्वारा नियंत्रण में हो तो कोई पाबंदी नहीं है ।
3.3 खेल कूद के बारे में क्या राय है?
अगर बीमारी की वजह से स्थायी विकलांगता न हुई हो और अनाकिन्रा इंजेक्शन द्वारा नियंत्रण में हो तो कोई पाबंदी नहीं है । बीमारी से हुई हड्डियों में क्षति की वजह से कुछ हद तक खेल कूद पर प्रभाव पड़ सकता है लेकिन अतिरिक्त पाबंदियों की ज़रूरत नहीं है ।
3.4 क्या खान-पान पर कोई पाबंदी है?
नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है।
3.5 मौसम के कारण क्या रोग पर कोई प्रभाव पड़ता है?
नहीं, मौसम के कारण रोग पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
3.6 क्या बच्चे को टीके लगाए जा सकते हैं?
जी हाँ, बच्चे को टीके ज़रूर लगाए जा सकते हैं, जीवित तनु टीके देने से पहले चिकित्सक/डॉक्टर को बीमारी के बारे में जानकारी देना ज़रूरी है।
3.7 यौन जीवन, गर्भधारण और परिवार नियोजन के बारे में क्या किया जा सकता है?
अभी इस बात पर खुलासा नहीं हो पाया है कि अनाकिन्रा गर्भधारी स्त्रियों के लिए सुरक्षित है या नहीं।