1.1 य़ह क्य़ा है।
ब्लाउ सिंड्रोम एक आनुवंशिक बीमारी है। इस बीमारी के मरीजों को त्वचा में लाल चकत्ते, गठिया और आँखों की शिकायत होती है। अन्य अंग भी प्रभावित होते है, तथा रुक रुक कर बुखार हो सकता है। इस बीमारी के आनुवंशिक रूप को ब्लाउ सिंड्रोम नाम दिया गया है लेकिन स्पोरेदिक रूप भी हो सकते है जो की छोटी उम्र में होते है।
1.2 यह कितना आम है ?
इस रोग की आवृत्ति अज्ञात है। यह एक बहुत दुर्लभ बीमारी है जो अधिकतर ५ वर्ष से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है, तथा यदि उपचार न किया जाए तो बढ़ सकती है। बीमारी से जुड़े हुए जीन की खोज के बाद निदान अधिक बार संभव हुवा है, तथा बीमारी को गहराई और प्राकृतिक कोर्स का बेहतर अनुमान लगाया जा सकता है।
1.3 इस बीमारी के कारण क्या है ?
ब्लाउ सिंड्रोम एक आनुवंशिक बीमारी है। इसके जीन को NOD2 (समानार्थक CARD 15) कहते है, जो एक प्रतिरक्षा और प्रतिक्रिया को प्रभावित करने वाले प्रोटीन को कोड करता है। इस जीन के उत्परिवर्तन (जैसे ब्लाउ सिंड्रोम में) की वजह से प्रोटीन ठीक ढंग से काम नहीं करता है जिससे इन रोगियों के विभिन्न ऊतकों और अंगों में ग्रेन्युलोमा तथा लम्बे समय तक सूजन रहती है। सूजन पैदा करने वाली कोशिकाओं के लम्बे समय तक एक साथ समूह में रहने से ग्रेन्युलोमा बनते है जो कि शरीर के विभिन्न अंगों और ऊतकों की सामान्य संरचना तथा कामकाज को प्रभावित करता है।
1.4 क्या यह आनुवंशिक है ?
यह आनुवंशिक बीमारी होती है। (यह लिंग संबधित नहीं है तथा मातापिता में से कम से कम एक में इसके लक्षण होना चाहिए) इसका अर्थ है कि रोगी के माता पिता में एक ख़राब जीन होना चाहिए। Sporadic फॉर्म में उत्परिवर्तन (म्यूटेशन) स्वयं रोगी में होता है तथा मातापिता स्वस्थ होते है। यदि रोगी में जीन होता है तो वह इस बीमारी से प्रभावित होता है। यदि मातापिता में से किसी एक को ब्लाउ सिंड्रोम है तो बच्चे में बीमारी की संभावना ५०% होती है।
1.5 मेरे बच्चे में यह बीमारी क्यों है ? क्या इसे रोका जा सकता है?
बच्चे में इस बीमारी का जीन है जो ब्लाउ सिंड्रोम का कारण है। बीमारी को रोक नहीं जा सकता लेकिन इसके लक्षणों का इलाज किया जा सकता है।
1.6 क्या यह छूत की बीमारी है?
नहीं।
1.7 मुख्य लक्षण क्या है?
मुख्य लक्षण आर्थराइटिस (गठिया), डर्मेटाइटिस, यूवाइटिस त्वचा एवं आँखों की तकलीफ है। शुरुआती लक्षण, एक विशिष्ट प्रकार के दाने है जो की छोटे गोल हलके गुलाबी रंग से गहरे अथवा तीव्र लालपन की तरह हो सकते है कभी - कभी दाने कम या ज्यादा हो सकते है। गठिया सबसे आम लक्षण है, जो पहले दशक में शुरू हो जाता है। शुरुआत में जोड़ों में सूजन आती है पर चलने में तकलीफ नहीं होती। धीरे धीरे चलने फिरने में तकलीफ तथा विकृति बढ़ते जाते है। यूवाइटिस (आइरिस की सूजन), ज्यादा खतरनाक हो सकता है क्योंकि यह अक्सर जटिलताएं दर्शाता है (जैसे मोतियाबिंद, आखों के अंदर दबाव बढ़ना आदी ) तथा यदि उपचार न किया जाए तो दृष्टी कम हो सकती है।
इसके साथ ही ग्रेन्युलोमा भी दूसरे अंगो को प्रभावित करता है और अन्य लक्षण जैसे फेफड़े तथा गुर्दे की खराबी रक्त चाप का बढ़ना तथा बार बार बुखार का कारण होता है।
1.8 क्या यह रोग प्रत्येक बच्चे में समान होता है?
यह हर बच्चे में समान नहीं होता। बढ़ती उम्र के साथ इसके लक्षणों के प्रकार और गंभीरता बदल सकती है। यदि समय पर उपचार न किया जाए तो रोग और इसके लक्षणों में वृद्धि हो सकती है।
2.1 इसका निदान कैसे किया जाता है?
ब्लाउ सिंड्रोम का निदान सामान्यतः निम्न रूप से किया जाता है।
चिकित्सकीय शंका : जब बच्चों को संयुक्त रूप से (जोड़, त्वचा एवं आँख ) सभी लक्षण एक साथ आतें है तो ब्लाउ सिंड्रोम हो सकता है। ठीक तरह से पारिवारिक जानकारी लेना चाहिए क्योंकि यह बहुत दुर्लभ रोग है तथा ऑटोसोमल डोमिनेंट रूप में वंशानुगत होता है।
ग्रेन्युलोमा का प्रदर्शन : ब्लाउ सिंड्रोम के निदान के लिए प्रभावित अंगों में एक विशिष्ट ग्रेन्युलोमा की उपस्थिति आवश्यक होती है। त्वचा अथवा सूजे हुए जोड़ो की बायोप्सी में ग्रेन्युलोमा देखे जा सकते है। ग्रेन्युलोमे के अन्य कारण (जैसे टी. बी., वासक्युलाइटिस , इम्यून डेफिशिएन्सी ) को डॉक्टरी जाँच, खून की जाँच तथा इमेजिंग के द्वारा अलग कर लेना चाहिए।
जेनिटिक विष्लेषण : पिछले कुछ वर्षों में, ब्लाउ सिंड्रोम लिए जिम्मेदार जेनेटिक म्युटेशन विष्लेषण संभव हो गया है।
2.2 परिक्षण का क्या महत्व है ?
त्वचीय बायोप्सी: इस परिक्षण में त्वचा के एक छोटे टुकड़े को निकालकर जाँच की जाती है और यह बहुत आसान है। यदि त्वचा की बायोप्सी में ग्रेन्युलोमा पाया जाए तो यह ब्लाउ सिंड्रोम की पुष्टि करता है तथा अन्य सभी ग्रेनुलोमा के कारणों को अलग करता है ।
रक्त परीक्षण: रक्त परीक्षण ग्रेन्युलोमे के अन्य कारणों (जैसे क्रोन्स अथवा इम्यून डेफिशियेंसी ) को अलग करता है। यह सूजन के फैलाव तथा अन्य अंगों की भागीदारी (गुर्दा व लिवर) की जाँच करना महत्वपूर्ण है।
जेनेटिक परीक्षण : यह पूरी तरह से ब्लाउ सिंड्रोम की पुष्टि करता जो NOD2 जीन में खरबी दर्शाता है।
2.3 क्या इसका इलाज संभव है या इसे जड़ से मिटाया जा सकता है।
इसे पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता है लेकिन जोड़ों, आँखे तथा अन्य अंगों की सूजन को काबू करने वाली दवाओं से उपचार किया जा सकता है। दवाओं से लक्षणों को काबू में किया जा सकता है तथा बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है।
2.4 इलाज क्या है ?
वर्तमान में ब्लाउ सिंड्रोम के लिए कोई उपचार नहीं है। जोड़ संबधित लक्षणों को सूजन कम करने वाली दवाए जैसे
नोन स्टेरॉइडल दवाए तथा
मिथोट्रेक्सेट से ठीक किया जा सकता है। मेथोट्रेक्सेट जुवेनाइल इडियोपेथिक आर्थराइटिस में गठिया को काफी हद तक काबू करता है लेकिन ब्लाउ सिंड्रोम में यह अधिक फायदेमंद नहीं है। यूवाइटिस को काबू करना कठिन है। लोकल स्टेरोइडल आँख की दवा अथवा इंजेक्शन कई रोगियों के लिए पर्याप्त नहीं होता है। यूवाइटिस के नियंत्रण में मेथोट्रेक्सेट हमेशा फायदेमंद नहीं होता है तथा रोगियों को मुँह से corticosteroids की आवश्यकता पड़ती है।
कुछ रोगी जिनमें आँखों, जोड़ों तथा आतंरिक अंगों की सूजन काबू में नहीं होती है उन रोगियों में cytokine - inhibitors जैसे TNF - inhibitors (
Infliximab,
Adalimumab) प्रभावी होते है।
2.5 इन दवाओं के बुरे प्रभाव क्या है ?
मेथोट्रेक्सेट से होने वाले बुरे प्रभावों में मितली तथा पेट में दर्द सबसे आम है। खून की जाँच लिवर की कार्यक्षमता तथा सफ़ेद रक्त कणिकाओं की संख्या देखने के लिए की जाती है। corticosteroids से होने वाले संभावित बुरे प्रभाव वजन बढ़ना, चेहरे पर सूजन तथा मूड में उतार चढाव होते है। लंबे समय तक corticosterioid के उपयोग से अधिक रक्त चाप, डायबिटीज, कमजोर हड़डियाँ तथा शारीरिक विकास में रूकावट हो सकती है।
TNF- Inhibitors नयी दवाएं है - इनके उपयोग से इन्फेक्शन लगने का खतरा तथा T. B होने की संभावना बढ़ सकती है और दूसरे न्यूरोलॉजिकल व प्रतिरक्षा संबंधी रोगों की संभावना बढ़ सकती है। कैंसर संबंधी रोगों की संभावना देखी गयी है लेकिन अभी तक पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं है।
2.6 उपचार कितने लंबे समय तक चलता है ?
अभी तक उपचार का अधिकतम समय निर्धारित करने के लिए कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। जोड़, आँख तथा अन्य अंगो की खराबी रोकने के लिए सूजन को काबू करना आवश्यक है।
2.7 क्या अपरंपरागत या पूरक चिकित्सा का कोई उपयोग है।
इस तरह की चिकित्सा की ब्लाउ सिंड्रोम में कोई उपयोगिता नहीं है।
2.8 समय समय पर किन जांचो का होना जरुरी है?
बच्चों की नियमित रूप से पीडियाट्रिक Rheumatologist द्वारा जाँच (कम से कम साल में ३ बार) होना चाहिए जिससे बीमारी का नियंत्रण तथा मेडिकल उपचार ठीक तरह से किया जा सकता है ।आँखों के विशेषज्ञ का परामर्श नियमित रूप से लेना चाहिए। जो उपचार के अंतर्गत हैं उनका कम से कम वर्ष में दो बार खून तथा पेशाब की जाँच होना चाहिए।
2.9 यह बीमारी कितने लंबे समय तक रहती है?
यह जीवन भर रहनेवाली बीमारी है लेकिन समय के साथ कम ज्यादा हो सकती है।
2.10 लंबी अवधि में इस रोग का भविष्य में क्या परिणाम व कोर्स हो सकता है?
लंबी अवधि में इस रोग के निदान की जानकारी सीमित है। कुछ बच्चों को २० वर्षों तक निगरानी में रखा गया है और उनका शारीरिक व मानसिक विकास सामान्य होता है तथा अच्छे उपचार से सामान्य जीवन यापन करते हैं।
2.11 क्या पूरी तरह से ठीक होना संभव है?
नहीं, क्योंकि यह एक आनुवंशिक बीमारी है। फिर भी एक अच्छी डॉक्टरी जाँच तथा उपचार से एक अच्छा जीवन यापन किया जा सकता है। ब्लाउ सिंड्रोम के मरीजों में बीमारी का विकास तथा तीव्रता अलग अलग होती है, वर्तमान में प्रत्येक रोगी में बीमारी का कोर्स निर्धारित करना संभव नहीं है।
3.1 यह बीमारी रोगी और उसके परिवार पर क्या असर करती है ?
बीमारी के निदान के पूर्व कई समस्याओंका का सामना करना पड़ता है। एक बार बीमारी की पुष्टि होने पर रोगी को नियमित रूप से चिकित्सक (पीडियाट्रिक Rheumatologist तथा नेत्र रोग विशेषज्ञ) का परामर्श लेना चाहिए जिससे बीमारी की सक्रियता को मापा जा सके तथा उपचार को समायोजित किया जा सके। जोड़ों की बीमारी में फिजियोथेरेपी की आवश्यकता होती है।
3.2 क्या बच्चा स्कूल जा सकता है?
बीमारी के लंबे कोर्स की वजह से बच्चें की स्कूल में नियमितता प्रभावित हो सकती है। स्कूल में बीमारी की पूरी जानकारी होनी चाहिए जिससे इसके लक्षण आने पर क्या और कैसे करना है इसकी सलाह दी जा सकती है।
3.3 क्या खेलकूद में भाग ले सकते है ?
ब्लाउ सिंड्रोम के बच्चों को खेलकूद के लिए प्रेरित करना चाहिए, पर क्या और कितना निर्भर होता है।
3.4 भोजन कैसा होना चाहिए?
कोई विशिष्ट भोजन नहीं है। यदि बच्चा corticosteroids दवाओं पर हैं तब अतिरिक्त मीठा और नमकीन वर्जित है।
3.5 क्या मौसम का बीमारी के कोर्स पर कोई प्रभाव पड़ता है?
नहीं।
3.6 क्या बच्चे का टीकाकरण किया जा सकता है ?
टीकाकरण किया जा सकता है लेकिन जो रोगी corticosteroid, मेथोट्रेक्सेट व TNF Inhibitors पर हैं उन को जैविक टिके नहीं देना चाहिए।
3.7 यौन जीवन, गर्भावस्था तथा जन्म नियंत्रण पर प्रभाव?
ब्लाउ सिंड्रोम के मरीजों में बीमारी की वजह से प्रजनन की समस्या नहीं होती है। यदि वे मैथोट्रेक्सेट पर है तो जन्म नियंत्रण करना चाहिए क्योंकि यह दवा भ्रूण पर दुष्प्रभाव डालती है। TNF Inhibitors तथा गर्भवस्था के बारे में कोई सुरक्षा संबधित जानकारी उपलब्ध नहीं है इसलिए गर्भ धारण करने से पहले इन दवाओं को बंद कर देना चाहिए।