रयूमैटिक बुखार एवं स्ट्रेप्टोकोकल रिऐक्टिव गठिया 


के संस्करण 2016
diagnosis
treatment
causes
Rheumatic Fever And Post-streptococcal Reactive Arthritis
रयूमैटिक बुखार एवं स्ट्रेप्टोकोकल रिऐक्टिव गठिया
रयूमैटिक बुखार गलें के स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया से ़संक्रमण के कारण शुरु होता है। स्ट्रेप्टोकोकस बेक्टीरिया की अनेक प्रजातियों में से केवल ग्रुप ए ही इस बीमारी का कारक है। गले में स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण स्कूल पढ़ने वाले बच्चो में आम बात है किन्तु यह जरूरी नहीं की हर बच्चे को रयूमेटिक बुखार की बीमारी हो। इस बीमारी में हृदय में सुजन से वह स्थायी रुप से क्षतिग्रस्त हो सकता है। सर्वप्रथम बच्चे को जोड़ो में आंशिक दर्द एवं सूजन महसूस होती है, तत्पश्चात कार्डआईटिस(हृदय में सूजन) एवं मस्तिष्की सूजन से असामान्य अनैच्छिक गती विकार(कोरिया) जैसी समस्या हो सकती है। इसके अतिरिक्त त्वचा पर चकत्ते व गांठे पड़ सकती है। यह कितनी प्रचलित है? पिछले वर्षो में एंेटीबायोटिक दवाईयों के अभाव में गर्म प्रदेशो में यह बीमारी अधिक प्रचलित पाई जाती थी। एंेटीबायोटिक उपलब्ध होने से फैरिनजाइटिस के उपचार के पश्चात इस बीमारी की संख्या में कमतरता देखी गई, परन्तु इस समय भी दुनिया भर के 5 से 15 वर्ष आयु के बच्चोे मे यह बीमारी अभी भी पाई जाती है एवं उनमे से कुछ बच्चों को हृदय विकार का कारण बनती है। जोड़ो पर प्रभाव के हेतु इस बीमारी को बच्चों के गठिया रोग में सम्मिलीत किया गया है। रयूमेटिक बुखार कि समस्या विभिन्न देशों के अन्तर्गत असमान मात्रा में पाई जाती है। कई देशों में इस बीमारी का एक भी मरीज नही पाया गया और अन्य कई देशों में इसकी मात्रा मध्यम से अधिक प्रतिशत देखी गई है(प्रति वर्ष 1,00,000 व्यक्तियों के प्रति 40 से अधिक व्यक्ति)। दुनिया भर में रयुमेटिक हृदय विकार के 15 मीलीयन मरीज अनुमानित है जिसमें से प्रति वर्ष 2,82,000 नये है और 2,33,000 मृत है। इस बीमारी के क्या कारण है? गले के ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के प्रति असामान्य प्रतिक्षण प्रणाली के कारण यह बीमारी निर्मित होती है। गले में संक्रमण के पश्चात और रयूमेटिक बुखार के लक्षण निर्मित होने से पहले व्यक्ति कई दिनों तक सामान्य रह सकता है। गलें के संक्रमण के उपचार हेतु, प्रतिक्षाप्रणाली की उत्तेजना को कम करने एवं नये संक्रमण को रोकने में एंटीबायोटिक दवाईयों की जरूरत पड़ती है। हर नये संक्रमण से इस बीमारी का नया चक्र शुरू हो सकता है। इस प्रकार के नये चक्र की जोखिम रयूमेटिक बुखार के पश्चात पहले 3 वर्ष मे सर्वाअधिक होती है। क्या यह आनुवंशिक बीमारी है\ नही, यह आनुवंशिक बीमारी नही है क्योंकि यह माता-पिता से सीधे बच्चों में नही होती किन्तु एक ही परिवार के अनेक सदस्य इस बीमारी से ग्रसीत हो सकते है। इसका कारण स्ट्रेप्टोकोकल इनफैैकंशन के प्रति लड़ने की क्षमता का अनुवांशिक होना है। स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण थुक एवं श्वसन स्त्राव द्वारा फेलता है। मेरे ही बच्चे को बीमारी क्यांे हुई? क्या इसकी रोकथाम की जा सकती है? पर्यावरण व स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया इस बीमारी के प्रमुख कारण हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह बताना मुश्किल हो जाता है कि किसकों यह बीमारी होगी। बीमारी एक असामान्य प्रतिक्रिया है जिसमें प्रतिरक्षण प्रणाली स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया के साथ-साथ मनुष्य की कोशिकाओं (विशेषतः जोड़ो एवं हृदय की) पर भी प्रहार करती है। सट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया के कुछ खास प्रकार अतिसंवेदनशील व्यक्ति में रयूमैटिक बुखार को निर्मित करते है। भीड़, संक्रमण के फैलाव का मुख्य पर्यावरण कारण है। रयूमैटिक बुखार से बचाव के लिये सट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया द्वारा गले के संक्रमण को जल्दी पहचान कर पेनिसीलीन जैसे एंटिबायोटिक इलाज से करना चाहिये। क्या यह छुआ-छुत की बीमारी है? र्यूमैटिक बुखार छुआ-छुत की बीमारी नहीं है परन्तु स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति तक आसानी से फैल सकता है। यह फैलाव भीड़-भाड़ वाले वातावरण जैसे घर, स्कूल व सेना के कैम्प इत्यादि में ज्यादा होता है। इस फैलाव को रोकने में कुछ सावधानियाँ जैसे हाथ धोना एवं संक्रमित व्यक्ति से दुर रहना आवश्यक होती है। बीमारी के मुख्य लक्षण क्या है? रयूमैटिक बुखार में विभिन्न लक्षण हर मीरीज में अलग होते है। यह बीमारी स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया से गले में संक्रमण का इलाज न करने व अधूरा इलाज करने के कुछ दिन बाद होती है। गले में संक्रमण के दौरान बुखार, गले व टांसिल में लाली और गर्दन में लिम्फनोड बड़े व दर्दनाक हो सकते है किन्तु यह लक्षण बच्चों व किषोरों में कभी-कभी बहुत हल्के या नहीं भी हो सकते है। शुरूआती संक्रमण के पश्चात बच्चा 2 से 3 हफ्ते सामान्य रहता है। तत्पश्चात बच्चा बुखार व निम्नलिखित लक्षणों के साथ चिकित्सक के पास आ सकता है। गठिया इस रोग में गठिया कई जोड़ो को कुछ समय के लिये प्रभावित करता है (घुटने, कोहनी, एडी व कंधे)। प्रदाह एक जोड़ से दूसरे जोड़ की तरफ जाता रहता है किन्तु गर्दन व हाथ के जोड़ कभी-कभार ही प्रभावित होते है। जोड़ो का दर्द असहनीय हो सकता है किन्तु सूजन कम होती है। यह जानना जरुरी है कि दर्द ऐस्प्रिन या दर्द निवारक दवाओं से बहुत जल्दी ठीक हो जाता है। कार्डाइटिज मतलब है दिल में प्रदाह या सूजन। यह सबसे गंभीर लक्षण है। दिल की हृदयगति का आराम करते समय या सोते समय ज्यादा होना इसके लक्षण हैं। हृदय की धड़कन सुनकर हृदय पर प्रभाव का असर देखा जा सकता है। यह खराबी धीमें से तेज ध्वनि वाले मरमर के रुप में होती है तथा वाल्व की सूजन को दर्षित करती है जिसे एन्डोकार्डिटिस भी कहा जाता है। यदि हृदय की झिल्ली में सूजन आ जाये और पानी भर जाये तो उसे ‘पेरीकार्डिटिस‘ कहा जाता है। यह पानी धीरे-धीरे सूख जाता है और अधिकतर कोई लक्षण पैदा नहीं करता है। गंभीर स्थिति में हृदय की कार्यशक्ति कमजोर हो सकती है जिसे इन लक्षणों से पहचाना जा सकता है जैसे खांसी, छाती में दर्द, हृदयगति तेज होना और साॅस जल्दी-जल्दी आना। ऐसी स्थिति में जाॅच व हृदय रोग विषेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिये। पहला रयुमैटिक बुखार भी हृदय के वाल्व क्षतिग्रस्त कर सकता है लेकिन अधिकतर यह समस्या लगातार रयुमैटिक बुखार के होने से होती है जिससे बढ़ती उम्र के साथ वाल्व खराब होने की संभावना बनती है। इससे बचाव करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। कोरिया कोरिया एक यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है नृत्य। इसमें दिमाग मंे अंगो(ग्रीक) की क्रियाओं का नियंत्रण करने वाली जगह पर सूजन आ जाती है। रयुमैटिक बुखार के 10 से 30 प्रतिशत मरीजों में यह लक्षण देखा जाता है। गठिया एवं रयुमैटिक हृदय विकार से विपरीत, बीमारी के बढ़ने पर ही कोरिया के लक्षण सामने आते है। 1 से 6 माह के बीच में गले में संक्रमण के बाद यह लक्षण प्रकट होता है। गंदी लिखावट, कपड़े पहनने में दिक्कत, चलने, खाने में दिक्कत प्रारम्भिक लक्षण है। लक्षण का प्रभाव कम ज्यादा होता रहता है। साने के समय कम हो जाता है। लंबी थकावट होने पर लक्षण बढ़ जाता है। छात्रों में यह बीमारी पढ़ाई पर प्रभाव डालती है। एकाग्रता में कमी व उलझन होती है। सोम्य स्वरूप में यह लक्षण आसानी से नजरअंदाज हो सकते है। यह लक्षण आत्म सीमीत होता है लेकिन इसे सहायक ईलाज एवं समयानुरूप जांच कि अवश्यकता होती है। त्वचा के चकत्ते रयूमैटिक बुखार के लक्षण में त्वचा पर चकत्ते, धब्बा, गांठ हो सकती है। यह चकत्ते लाल रंग के गोलकार में होते है और दर्द हीन गाठ जोड़ो के आसपास पाई जाति है। त्वचा के लक्षण 5 प्रतिषत से भी कम लोगों में पाया जाता है। त्वचा के लक्षण हृदय के प्रदाह के साथ ही पाये जाते है। बुखार, थकान, काम में कमी, भूख में कमी, खून की कमी, पेट में दर्द, नाक से रक्तस्त्राव जैसे अन्य लक्षण पालकांे को पारम्भिक लक्षणों में नजर आ सकते है। क्या बीमारी सभी बच्चों में एक समान होती है? हृदय की असामान्य धड़कन सुनाई देना, गठिया व बुखार वाले बच्चों में सामान्य लक्षण है। छोटी उम्र के बच्चों मे कार्डीटाइटिस होती है लेकिन जोड़ो में दर्द कमं होता है। कुछ मरीजों में कोरिया या तो अकेले या कार्डीटाइटिस के साथ होता है और इसकी समयानुरूप हृदयरोग विशेषज्ञ द्वारा जांच करना आवश्यक है। क्या बच्चों की बीमारी बड़ो से अलग है? रयूमैटिक बुखार स्कूल के बच्चों या 25 साल से कम उम्र के लोगों की बीमारी है। 3 साल से कम उम्र के बच्चों में बहुत कम पाई जाती है। देखा गया है कि 80 प्रतिषत मरीज 5 से 19 साल के बीच होते है। यदि बचाव के लिये पूरी दवा न ली गयी हो तो यह बीमारी वयस्कों में भी हो सकती है। निदान एवं इलाज बीमारी की पहचान कैसे की जाती है? इस बीमारी का कोई खास परीक्षण नही है इसलिये बीमारी के सारे लक्षणों का ध्यानपूर्वक विष्लेषण करना चाहिये। बीमारी के लक्षण जैसे गठिया, हृदय प्रदाह, कोरिया, त्वचा पर चकत्ते, बुखर एवं स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का असामान्य परिक्षण, ई0सी0जी0 मे असामान्य हृदयगती इस बीमारी की पहचान करने में मद्द करते है। बीमारी की पहचान करने में स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का प्रमाण होना आवश्यक होता है। रयूमैटिक बुखार जैसी और कौन सी बीमारीयाँ है? स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के बाद होने वाला एक प्रकार का गठिया जिसे पोस्ट स्ट्रेप्टोकोकल रिएक्टिव अर्थराइटिस कहते है। यह भी स्ट्रेप्टोकोकल इनफैक्शन के पश्चात होता है किन्तु यह गठिया लम्बे समय तक चलता है व इसमें हृदय प्रदाह की सम्भावना नही के बराबर होती है। बचाव के लिये एंटिबायोटिक की आवश्यकता हो सकती है। किशोर अज्ञातहेतुक गठिया भी रयूमैटिक बुखार के समान बीमारी है लेकिन इसमें गठिया 6 हफ्ते से लम्बे समय तक चलता है। लाईम बीमारी, लुकीमीया, अन्य बैक्टीरिया एवं वायरस से होने वाले रियक्टिव आर्थटीस मेें भी रयूमैटिक बूखार जैसे लक्षण मिल सकते है। रयूमैटिक बुखार की पहचान को सामान्य हृदय में पाये जाने वाले मरमर, जन्मतः होने वाली हृदय बनावट की खराबी और प्राप्त हृदय विकार से अलग परखना जरूरी है। परिक्षण का क्या महत्व है? कुछ परीक्षण बीमारी का पता लगाने व इलाज के लिये जरुरी है। रक्त परीक्षण बीमारी की पहचान के लिये जरुरी है। दूसरी संधिवातीय बीमारी की तरह इस बीमारी में भी प्रदहन का प्रभाव जाँच पर देखा जा सकता है सिवाय उस स्थिती में जब कोरीया एकमात्र लक्षण हो। स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का पता लगाना जरुरी है। अधिकतर बच्चों में रयूमैटिक बुखार होने के समय गले का स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण खत्म हो चुका होता है और प्रतिरक्षण प्रणाली इस बैक्टीरिया हो गले से निकाल चुकी होती है। इसके लिये गले के नमूने का स्ट्रेप्टोकोकल कल्चर परीक्षण करना चाहिये। संक्रमण की पुष्टि के लिये स्ट्रेप्टोकोकल एंटीबाॅडी की बढ़ी मात्रा बताती है कि जल्दी है कि बैक्टीरिया का संक्रमण हुआ है। ए0एस0ओ0 और डी0एन0एस0 बी(एंटी स्ट्रेप्टोकोकल टाइटर) असामान्य मात्रा बताती है कि बैक्टीरिया का संक्रमण हुआ जिसके खिलाफ एंटीबाडी बनने के लिये प्रतिरक्षा प्रणाली प्रेरित हुई है। 2 से 4 हफ्ते के अंतराल में इन टेस्ट में एंटीबाॅडी की बढ़ी हुई मात्रा संक्रमण की पुष्टी करती है। किन्तु एंटीबाॅडी की मात्रा का रयूमैटिक बुखार की तीव्रता से कोई सम्बन्ध नही है। रयूमैटिक कोरिया से पीडि़त बच्चों में यह टेस्ट सामान्य परिणाम दर्शाती है जिससे बीमारी की पहचान कठिन हो सकती है। असामान्य मात्रा में बढे हुए ए0एस0ओ0 एवं डी0एन0एस0बी परिणाम केवल यह दर्शाते है कि स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से प्रतिरक्षण प्रणाली उत्तेजीत हुई है और रयूमैटिक बुखार के लक्षण के अभाव में इनका बीमारी के निदान में कोई महत्व नही है। इस लिये इस स्थिती मे एंटीबायोटिक ईलाज की भी आवश्यकता नही हैै। कार्डीटाइटिस का पता कैसे लगता है? दिल धड़कने की नयी आवाज, हृदय मे सूजन का मुख्य लक्षण है और इसे आला लगाकर विशेषज्ञ द्वारा पता किया जा सकता है। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी में दिल की धड़कन को कागज की पट्टी पर दर्षित किया जाता है और इससे दिल पर प्रभाव की मात्रा जानी जा सकती है। छाती के एक्स-रे से दिल का बड़ा होना दिखाई पड़ता है। इकोकार्डियोग्राफी, दिल का उल्ट्रासाण्उड है जो दिल पर प्रभाव जानने का बहुत अच्छा तरीका है किन्तु बिना शारीरिक लक्षण के इस बीमारी की पहचान में मदद के लिये नही प्रयोग में लाना चाहिये। यह परिक्षण में बच्चे को किसी प्रकार का दर्द महसूस नही होता किन्तु जांच के समय उसे कुछ समय के लिये शांत रहना जरूरी है। क्या इस बीमारी से बचाव या इसका ईलाज सम्भव है? यह बीमारी संसार के कई क्षंेत्रो में एक महत्वपूर्ण समस्या है जिसका बचाव स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के शूरूआती ईलाज से संभव है(प्राथमिक रोकथाम)। संक्रमण के पश्चात 9 दिनों के भीतर एंटिबायोटिक से ईलाज शूरू करने से रयूमैटिक बुखार के प्रभाव को रोका जा सकता है। रयूमैटिक बुखार के लक्षण का ईलाज नाॅन-स्टेरोईडल एण्टी-इनफ्लामेंटरी दवाईयों से किया जाता है। टीके पर शोध जारी है जो संक्रमण से बचा कर रयूमैटिक बुखार से बच्चों को बचायेगा। शूरूआती स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से बचाव करने से प्रतिरक्षण प्रणाली पर रोकथाम लगाई जा सकती है। यह दृष्टीकोण रयूमैटिक बुखार की रोकथाम में एक महत्व पूर्ण भूमिका साबित हो सकता है। किस प्रकार के ईलाज उपलब्ध है? पिछले कई वर्षों में इस बीमारी के ईलाज में कोई नई प्रकार की अनुशंसा नही हुई है। एसप्रीन ही इसकी मुख्य दवाई है किन्तु यह किस प्रकार असर करती है यह अभी तय नही है। शायद एसप्रीन के एण्टी-ईन्फ्लामेंट्री प्रभाव से यह सम्भव है। अन्य नाॅन-स्टेरोईडल एंटी-ईन्फ्लामेंट्री दवाइयाँ भी रयूमेटिक बुखार के गठिया मेें 6 से 8 हफ्ते या गठिया ठिक होने तक दी जाती है। तीव्र हृदय प्रदाह में समपूर्ण आराम और कई बच्चों मेे कोर्टीजोन जैसी दवाईयाँ 2 से 3 हफ्ते देने की आवश्यकता है। बीमारी के लक्षण कम होने पर और खून की जांच सामान्य की तरफ दिखाई पड़ने पर यह दवाई क्रमीक मात्रा में कम करके बंद की जा सकती है। कोरिया से पीड़ीत बच्चों में शारिरीक देख भाल एवं स्कूली कार्य में पालकों का सहयोग जरूरी है। कोरिया के संचलन की रोकथाम कोर्टीजोन, हैलोपेरीडोल और वैलप्रोईक एसीड जैसी दवाईयों से किया जाता है। इनके साईड ईफेक्ट पर विशेष ध्यान रखना जरूरी है। सामान्यतः अधिक नींद आना और थर्रथराहट इन दवाईयों के साईड ईफेक्टस है जिसे दवाई की मात्रा कम करने से नियंत्रीत कीया जा सकता है। कुछ बच्चों में उचीत ईलाज करने पर भी कोरिया का संचलन कई महीनों तक दिखाई पड़ सकता है। रयूमेटिक बुखार का निदान तय होने के पश्चात इसके पुनः पुनः अटैक से बचाव के लिये लम्बे समय तक एंटीबायोटिक देना आवश्यक है। दवा के कुप्रभाव क्या है? कुछ समय तक दी जाने वाली दर्द निवारक दवाओं का कोई विषेष कुप्रभाव नहीं है। पैनीसीलीन इन्जैक्शन से एलर्जी की जोखीम काफी कम बच्चों में होती है परन्तु पहले इन्जैकशन के समय इन पर विशेष ध्यान देना जरूरी हैै। इन्जैक्शन से असहनीय दर्द बच्चें को इन्जैक्शन से दूर रहने का कारण बनता है। इसलिये बीमारी संबंधीत पूर्ण जानकारी, स्थानीय दर्द निवारक दवा एवं इन्जैक्शन पूर्व विश्राम से मरीज को अवगत कराना जरूरी है। फिर से बीमारी न हो इसके लिये क्या करना चाहिये? देखा गया है कि दोबारा बीमारी 3 से 5 साल के अंतरगत होती है। हृदय को क्षति इस दौरान ज्यादा हो सकती है। इन कारणों से जिनमे एक बार रयूमैटिक बुखार हो चुका है उनमे बैक्टीरिया संक्रमण रोकना चाहिये, बिना यह देखें कि पहले लक्षण कम थे या ज्यादा। अधिकतर विशेषज्ञों की राय में एंटीबायोटीक से बचाव रयूमैटिक बुखार के आखरी अटैक के पश्चात 5 साल या बच्चा 21 साल का होने तक जारी रखना जरूरी है। एक बार हृदय प्रदाह से पीड़ीत होने पर माध्यमीक रोकथाम के लिये एंटीबायोटीक कम से कम 10 वर्ष या बच्चा 21 साल का होने तक (इनमे से जो ज्यादा हो) जारी रखना जरूरी है। यदी हृदय के वाल्व क्षतिग्रस्त है तो एंटीबायोटीक 10 वर्ष या मरीज के 40 वर्ष होने तक या वाल्व बदलने की स्थिती में इससे भी अधिक समय तक दी जाती है। हृदय के वाल्व के क्षतिग्रस्त होने पर मरीज को संक्रमण रोकने के लिये दांत साफ कराने से पहले और शल्य चिकित्सा के पहले ऐंटीबायोटिक दवा अवष्य लेना चाहिये। संक्रमण रोकना जरुरी इसलिये है कि बैक्टीरिया दांत, नाक, मुह आदि अंगों से आकर हृदय को संक्रमित कर सकता है। क्या इस बीमारी में कोई अपरंपरागत/पूरक ईलाज सम्भव है? इस बीमारी के लिये कई पूरक एवं वैकल्पिक ईलाज उपलब्ध है जिससे मरीज व उनके परिजन गुमराह हो सकते है। किन्तु उन्हे इस प्रकार के ईलाज संबंधीत फायदें एवं नुकसान की जानकारी होना जरूरी है और कभी-कभी यह समय, बीमारी की तीव्रता एवं पैसे से नुकसान दायक साबीत हो सकते है। यदि कोई वैकल्पिक/पूरक ईलाज करना चाहे तो उन्हें बच्चोें के गठिया रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिएं। दोनो ईलाज परसपर एक दुसरे पर विपरीत प्रभाव डाल सकते है। विशेषज्ञ की सलाह अनुसार वैकल्पिक उपचार करने में नुकसान से बचा जा सकता है। वैकल्पिक उपचार के चलते गठिया रोग विशेषज्ञ द्वारा दी गयी दवाईयाँ जारी रखना अत्यावश्यक है। कोर्टिजोन जैसी दवाई को एक दम बंद करना बीमारी के लिये हानीकारक हो सकता है। दवाई के बारे में हर जानकारी अपने विशेषज्ञ से जानना अत्यावश्यक है। मरीज का कब-कब परिक्षण कराना चाहिये? मरीज को लगातार चिकित्सक की देखरेख मे रहना चाहिये। बीमारी के दोबारा होने पर शारीरिक जाँच व परिक्षण जरुरी है। कार्डीटाइटिस व कोरिया होने पर मरिज को जल्दी-जल्दी चिकित्सक का परामर्ष लेते रहना चाहिये। लक्षण समाप्त होने के पश्चात, बचाव के लिये दवा और ठीक से समय-समय पर चिकित्सक से परामर्श जरुरी है जिससे कि हृदय की क्षति का पता लग सके। यह बीमारी कितने समय तक रहेगी? बीमारी के तत्काल लक्षण कुछ ही दिन या हफ्तों मे ठिक हो जाते है किन्तु रयूमैटिक बुखार दोबारा होने की सम्भावना बनी रहती है, जिससे हृदय क्षतिग्रस्त हो सकता है और लम्बे समय तक लक्षण बने रह सकते है। गले के स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से बचाव के लिये कई वर्षो तक एंटीबायोटीक ईलाज लेना जरूरी है। इस बीमारी का भवीष्यफल किस प्रकार है? लक्षणों का पलटना या उनकी तीव्रता का पूर्वानुमान लगाना कठीन है। सर्वप्रथम आने वाले रयूमैटिक बुखार अटैक में यदि हृदय प्रदाह होता है तो हृदय क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना अधिक होती है किन्तु कई मरीजों में यह हृदय प्रदाह पहली बार में ही पूरी तरह से ठीक हो सकता है। क्षतिग्रस्त हृदय वाल्व के लिये शल्यचिकित्सा द्वारा बदलना जरूरी होता है। बीमारी पूर्ण इलाज संभव है? हाँ, बीमारी का पूर्ण इलाज संभाव है सिवाय उन व्यक्तियों में जिनके हृदयके वाल्व क्षतिग्रस्त हो गये है। दैनिक दिनचर्या रोजमर्रा की जिंदगी कैसी होगी? कार्डीटाइटिस व कोरिया के मरीजों को परिवार का सहयोग मिलना चाहिये। मुख्य लक्षण कम होने पर यदि हृदय में क्षति नहीं है तो रोजमर्रा के कामकाज पर प्रभाव नही पड़ता। मुख्य चिंता का विषय एंटीबायोटिक दवाओं की रोकथाम के साथ लम्बी अवधि के अनुपालन का है। प्रथिमक देखभाल सेवाओं को शामिल किया जाना चाहिए और शिक्षा के लिये विशेष रूप से किशोरों के लिये, उपचार के साथ अनुपालन में सुधार करने की जरूरत है। क्या यह बच्चे स्कूल जा सकते है? यदि समय-समय पर परामर्श से हृदय की गती सामान्य पाई जाती है तो यह बच्चें सामान्य बच्चों की तरह स्कूल एवं उनकी दैनिक गतिविधियां कर सकते है। बच्चें को सामान्य गतिविधियां करने में पालक एवं शिक्षकों का पूर्ण सहयोग होना चाहिएं जिससे बच्चे की पढ़ाई में सफलता बनी रहे और वह अपने समवयस्कों मे घुलमिलकर रहे। रयूमैटिक कोरिया के संचलन के चलते स्कूली पढ़ाई में कुछ दिनों की रूकावट आना अनिवार्य है और शिक्षक एवं पालक को 1 से 6 माह तक इसमें सहयोग करना आवश्यक है। खेलक्रंीडा सम्भव है? बच्चो की सामान्य दिनचर्या में खेलक्रींडा का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। बीमारी के ईलाज का एक महत्वपूर्ण अंग यह भी है कि बच्चें को सामान्य दिनचर्या उपलब्ध कराई जाये, जिससे वह अपने समवयस्कों से अलग ना हो। बच्चे की क्षमता अनुसार वह खेलक्रींडा मे भाग ले सकता है। केवल बीमारी के तीव्र लक्षणों के समय बच्चें को सम्पूर्ण आराम एवं प्रतिबंधित शारिरीक गतिविधि करना आवश्यक है। खानपान कैसा होना चाहिये? खानापान से इस बीमारी पर प्रभाव का कोई प्रमाण नहीं है। बच्चों को अन्य सामान्य बच्चों की तरह पूर्ण पोषित आहार मिलना चाहिये। बढ़ती उम्र वाले बच्चों को आहार में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कैलश्यिम और विटामीन मिलना चाहिये। कोर्टिजोन लेने वाले बच्चों को भूख अधिक लगती है किन्तु इन्हे अधिक खाने से दूर रहना चाहिये। मोसम का इस बीमारी पर क्या असर होता है? मोसम का इस बीमारी पर प्रभाव होने को कोई अनुमान नही है क्या टीकाकरण किया जा सकता है? हर बच्चें के जरूरत अनुसार विशेषज्ञ टीकाकरण समय सारणी तय कर सकते है। टीकाकरण का इस बीमारी पर कोई सीधा प्रभाव नही पड़ता। प्रतिरक्षण प्रणालि को दबाने वाली दवाई लेने वाले बच्चों को वह टीके जो जीवित बैक्टीरिया/वायरस से बने है उनसे वंचित रखना जरूरी है, क्योंकि ऐसे बच्चों कों तीव्र स्वरूप के इन्फैक्शन होने की सम्भावना होती है। इन बच्चों में मृत बैक्टीरिया/वायरस से बने टीके लगाना सुरक्षीत माना जाता है। ऐसे बच्चे जिनका प्रतिरक्षण प्रणाली पर दबाव वाली दवाईयों से ईलाज चल रहा हो, विशेषज्ञ को इनका टीकाकरण के पश्चात उससे संबंधीत एंटीबाॅडी की मा़त्रा को नापने वाली जांच कराने की सलाह देनी चाहिये। यौन जीवन, गर्भधारण और जन्म नियंत्रण में कोई समस्या? इस बीमारी का यौन जीवन और गर्भधारण पर कोई सीधा प्रभाव नही पड़ता। फिर भी बीमारी के ईलाज में ली जाने वाली दवाईयों का गर्भस्थ शिशु पर असर होने कि सम्भावना का विशेष ध्यान रखना चाहिएं। जन्म नियंत्रण एवं गर्भधारण की सम्पूर्ण जानकारी अपने विशेषज्ञ से प्राप्त करनी चाहियें। स्ट्रेप्टोकोकल से जुड़ा रिऐक्टिव अर्थराइटिस क्या है? बच्चों एवं वयस्को में स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से जुड़ा अर्थराईटिस का वर्णन किया गया है। इसे पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस कहा जाता है। पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस 8 से 14 वर्ष आयु के बच्चों एवं 21 से 27 वर्ष के युवा वयस्कों में पाया जाता है। गले के संक्रमण के पश्चात 10 दिन के अंतर्गत मे इसके लक्षण पाये जाते है। इस बीमारी में बड़े जोड़ांे के अलावा, हाथ के छोटे जोड़ एवं रीढ़ की हड्डी पर भी असर होता है। रयूमैटिक बुखार वाले आर्थराईटिस के मुकाबले यह अर्थराईटिस 2 महिनें या अधिक समय तक चलता है। इसके साथ हल्का सा बुखार एवं प्रदाह दर्शाने वाली जांच जैसे (सी0आर0पी, ई0एस0आर0) में खराबी आ सकती है। किन्तु इनकी मात्रा रयुमैटिक बुखार की तूलना में कम होती है। अर्थराईटिस, नव स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का प्रमाण, असामान्य स्ट्रेप्टोकोकल एंटीबाॅडी जांच ( ए0एस0ओ0 डी0एन0एस0बी) एवं 'जोन्स क्रायटेरिया' के लक्षणों का अभाव ही पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस के निदान का आधार है। पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस एवं रयूमैटिक बुखार दो विभीन्न बीमारीयाँ है। पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस वाले मरीज में हृदय प्रदाह नही होता है। रोकथाम के लिये अमैरीकन र्हाट असोसियेशन ने लक्षण के शुरूआत के पश्चात एक साल तक एंटीबायोटीक देने की सलाह दी हैै। इन मरीजों में हृदय प्रदाह का परिक्षण एवं एकोकार्डीयोग्राफी जांच से ध्यान रखना जरूरी है। हृदय प्रदाह पाये जाने पर इनका ईलाज रयूमैटिक बुखार के जैसा करना चाहिये। 1 वर्ष तक हृदय प्रदाह न होने पर एंटीबायोटीक दवाइयां बंद की जा सकती हैै। हृदयरोग विशेषज्ञ के सम्पर्क मे रहना आवश्यक है।
evidence-based
consensus opinion
2016
PRINTO PReS
रूमेटिक बुखार क्या है?
निदान एवं इलाज
दैनिक दिनचर्या
स्ट्रेप्टोकोकल से जुड़ा रिऐक्टिव अर्थराइटिस



रूमेटिक बुखार क्या है?

यह क्या है?
रयूमैटिक बुखार गलें के स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया से ़संक्रमण के कारण शुरु होता है। स्ट्रेप्टोकोकस बेक्टीरिया की अनेक प्रजातियों में से केवल ग्रुप ए ही इस बीमारी का कारक है। गले में स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण स्कूल पढ़ने वाले बच्चो में आम बात है किन्तु यह जरूरी नहीं की हर बच्चे को रयूमेटिक बुखार की बीमारी हो। इस बीमारी में हृदय में सुजन से वह स्थायी रुप से क्षतिग्रस्त हो सकता है। सर्वप्रथम बच्चे को जोड़ो में आंशिक दर्द एवं सूजन महसूस होती है, तत्पश्चात कार्डआईटिस(हृदय में सूजन) एवं मस्तिष्की सूजन से असामान्य अनैच्छिक गती विकार(कोरिया) जैसी समस्या हो सकती है। इसके अतिरिक्त त्वचा पर चकत्ते व गांठे पड़ सकती है।

यह कितनी प्रचलित है?
पिछले वर्षो में एंेटीबायोटिक दवाईयों के अभाव में गर्म प्रदेशो में यह बीमारी अधिक प्रचलित पाई जाती थी। एंेटीबायोटिक उपलब्ध होने से फैरिनजाइटिस के उपचार के पश्चात इस बीमारी की संख्या में कमतरता देखी गई, परन्तु इस समय भी दुनिया भर के 5 से 15 वर्ष आयु के बच्चोे मे यह बीमारी अभी भी पाई जाती है एवं उनमे से कुछ बच्चों को हृदय विकार का कारण बनती है। जोड़ो पर प्रभाव के हेतु इस बीमारी को बच्चों के गठिया रोग में सम्मिलीत किया गया है। रयूमेटिक बुखार कि समस्या विभिन्न देशों के अन्तर्गत असमान मात्रा में पाई जाती है।
कई देशों में इस बीमारी का एक भी मरीज नही पाया गया और अन्य कई देशों में इसकी मात्रा मध्यम से अधिक प्रतिशत देखी गई है(प्रति वर्ष 1,00,000 व्यक्तियों के प्रति 40 से अधिक व्यक्ति)। दुनिया भर में रयुमेटिक हृदय विकार के 15 मीलीयन मरीज अनुमानित है जिसमें से प्रति वर्ष 2,82,000 नये है और 2,33,000 मृत है।

इस बीमारी के क्या कारण है?
गले के ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के प्रति असामान्य प्रतिक्षण प्रणाली के कारण यह बीमारी निर्मित होती है। गले में संक्रमण के पश्चात और रयूमेटिक बुखार के लक्षण निर्मित होने से पहले व्यक्ति कई दिनों तक सामान्य रह सकता है।
गलें के संक्रमण के उपचार हेतु, प्रतिक्षाप्रणाली की उत्तेजना को कम करने एवं नये संक्रमण को रोकने में एंटीबायोटिक दवाईयों की जरूरत पड़ती है। हर नये संक्रमण से इस बीमारी का नया चक्र शुरू हो सकता है। इस प्रकार के नये चक्र की जोखिम रयूमेटिक बुखार के पश्चात पहले 3 वर्ष मे सर्वाअधिक होती है।

क्या यह आनुवंशिक बीमारी है\
नही, यह आनुवंशिक बीमारी नही है क्योंकि यह माता-पिता से सीधे बच्चों में नही होती किन्तु एक ही परिवार के अनेक सदस्य इस बीमारी से ग्रसीत हो सकते है। इसका कारण स्ट्रेप्टोकोकल इनफैैकंशन के प्रति लड़ने की क्षमता का अनुवांशिक होना है। स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण थुक एवं श्वसन स्त्राव द्वारा फेलता है।

मेरे ही बच्चे को बीमारी क्यांे हुई? क्या इसकी रोकथाम की जा सकती है?
पर्यावरण व स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया इस बीमारी के प्रमुख कारण हैं लेकिन व्यावहारिक तौर पर यह बताना मुश्किल हो जाता है कि किसकों यह बीमारी होगी। बीमारी एक असामान्य प्रतिक्रिया है जिसमें प्रतिरक्षण प्रणाली स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया के साथ-साथ मनुष्य की कोशिकाओं (विशेषतः जोड़ो एवं हृदय की) पर भी प्रहार करती है। सट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया के कुछ खास प्रकार अतिसंवेदनशील व्यक्ति में रयूमैटिक बुखार को निर्मित करते है। भीड़, संक्रमण के फैलाव का मुख्य पर्यावरण कारण है। रयूमैटिक बुखार से बचाव के लिये सट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया द्वारा गले के संक्रमण को जल्दी पहचान कर पेनिसीलीन जैसे एंटिबायोटिक इलाज से करना चाहिये।

क्या यह छुआ-छुत की बीमारी है?
र्यूमैटिक बुखार छुआ-छुत की बीमारी नहीं है परन्तु स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण एक व्यक्ति से दुसरे व्यक्ति तक आसानी से फैल सकता है। यह फैलाव भीड़-भाड़ वाले वातावरण जैसे घर, स्कूल व सेना के कैम्प इत्यादि में ज्यादा होता है। इस फैलाव को रोकने में कुछ सावधानियाँ जैसे हाथ धोना एवं संक्रमित व्यक्ति से दुर रहना आवश्यक होती है।

बीमारी के मुख्य लक्षण क्या है?
रयूमैटिक बुखार में विभिन्न लक्षण हर मीरीज में अलग होते है। यह बीमारी स्ट्रेप्टोकोकल बैक्टीरिया से गले में संक्रमण का इलाज न करने व अधूरा इलाज करने के कुछ दिन बाद होती है।
गले में संक्रमण के दौरान बुखार, गले व टांसिल में लाली और गर्दन में लिम्फनोड बड़े व दर्दनाक हो सकते है किन्तु यह लक्षण बच्चों व किषोरों में कभी-कभी बहुत हल्के या नहीं भी हो सकते है। शुरूआती संक्रमण के पश्चात बच्चा 2 से 3 हफ्ते सामान्य रहता है। तत्पश्चात बच्चा बुखार व निम्नलिखित लक्षणों के साथ चिकित्सक के पास आ सकता है।

गठिया
इस रोग में गठिया कई जोड़ो को कुछ समय के लिये प्रभावित करता है (घुटने, कोहनी, एडी व कंधे)। प्रदाह एक जोड़ से दूसरे जोड़ की तरफ जाता रहता है किन्तु गर्दन व हाथ के जोड़ कभी-कभार ही प्रभावित होते है। जोड़ो का दर्द असहनीय हो सकता है किन्तु सूजन कम होती है। यह जानना जरुरी है कि दर्द ऐस्प्रिन या दर्द निवारक दवाओं से बहुत जल्दी ठीक हो जाता है।

कार्डाइटिज
मतलब है दिल में प्रदाह या सूजन। यह सबसे गंभीर लक्षण है। दिल की हृदयगति का आराम करते समय या सोते समय ज्यादा होना इसके लक्षण हैं। हृदय की धड़कन सुनकर हृदय पर प्रभाव का असर देखा जा सकता है। यह खराबी धीमें से तेज ध्वनि वाले मरमर के रुप में होती है तथा वाल्व की सूजन को दर्षित करती है जिसे एन्डोकार्डिटिस भी कहा जाता है। यदि हृदय की झिल्ली में सूजन आ जाये और पानी भर जाये तो उसे ‘पेरीकार्डिटिस‘ कहा जाता है। यह पानी धीरे-धीरे सूख जाता है और अधिकतर कोई लक्षण पैदा नहीं करता है। गंभीर स्थिति में हृदय की कार्यशक्ति कमजोर हो सकती है जिसे इन लक्षणों से पहचाना जा सकता है जैसे खांसी, छाती में दर्द, हृदयगति तेज होना और साॅस जल्दी-जल्दी आना। ऐसी स्थिति में जाॅच व हृदय रोग विषेषज्ञ से सम्पर्क करना चाहिये। पहला रयुमैटिक बुखार भी हृदय के वाल्व क्षतिग्रस्त कर सकता है लेकिन अधिकतर यह समस्या लगातार रयुमैटिक बुखार के होने से होती है जिससे बढ़ती उम्र के साथ वाल्व खराब होने की संभावना बनती है। इससे बचाव करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।

कोरिया
कोरिया एक यूनानी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है नृत्य। इसमें दिमाग मंे अंगो(ग्रीक) की क्रियाओं का नियंत्रण करने वाली जगह पर सूजन आ जाती है। रयुमैटिक बुखार के 10 से 30 प्रतिशत मरीजों में यह लक्षण देखा जाता है। गठिया एवं रयुमैटिक हृदय विकार से विपरीत, बीमारी के बढ़ने पर ही कोरिया के लक्षण सामने आते है। 1 से 6 माह के बीच में गले में संक्रमण के बाद यह लक्षण प्रकट होता है। गंदी लिखावट, कपड़े पहनने में दिक्कत, चलने, खाने में दिक्कत प्रारम्भिक लक्षण है। लक्षण का प्रभाव कम ज्यादा होता रहता है। साने के समय कम हो जाता है। लंबी थकावट होने पर लक्षण बढ़ जाता है। छात्रों में यह बीमारी पढ़ाई पर प्रभाव डालती है। एकाग्रता में कमी व उलझन होती है। सोम्य स्वरूप में यह लक्षण आसानी से नजरअंदाज हो सकते है। यह लक्षण आत्म सीमीत होता है लेकिन इसे सहायक ईलाज एवं समयानुरूप जांच कि अवश्यकता होती है।

त्वचा के चकत्ते
रयूमैटिक बुखार के लक्षण में त्वचा पर चकत्ते, धब्बा, गांठ हो सकती है। यह चकत्ते लाल रंग के गोलकार में होते है और दर्द हीन गाठ जोड़ो के आसपास पाई जाति है। त्वचा के लक्षण 5 प्रतिषत से भी कम लोगों में पाया जाता है। त्वचा के लक्षण हृदय के प्रदाह के साथ ही पाये जाते है। बुखार, थकान, काम में कमी, भूख में कमी, खून की कमी, पेट में दर्द, नाक से रक्तस्त्राव जैसे अन्य लक्षण पालकांे को पारम्भिक लक्षणों में नजर आ सकते है।

क्या बीमारी सभी बच्चों में एक समान होती है?
हृदय की असामान्य धड़कन सुनाई देना, गठिया व बुखार वाले बच्चों में सामान्य लक्षण है। छोटी उम्र के बच्चों मे कार्डीटाइटिस होती है लेकिन जोड़ो में दर्द कमं होता है।
कुछ मरीजों में कोरिया या तो अकेले या कार्डीटाइटिस के साथ होता है और इसकी समयानुरूप हृदयरोग विशेषज्ञ द्वारा जांच करना आवश्यक है।

क्या बच्चों की बीमारी बड़ो से अलग है?
रयूमैटिक बुखार स्कूल के बच्चों या 25 साल से कम उम्र के लोगों की बीमारी है। 3 साल से कम उम्र के बच्चों में बहुत कम पाई जाती है। देखा गया है कि 80 प्रतिषत मरीज 5 से 19 साल के बीच होते है। यदि बचाव के लिये पूरी दवा न ली गयी हो तो यह बीमारी वयस्कों में भी हो सकती है।


निदान एवं इलाज

बीमारी की पहचान कैसे की जाती है?
इस बीमारी का कोई खास परीक्षण नही है इसलिये बीमारी के सारे लक्षणों का ध्यानपूर्वक विष्लेषण करना चाहिये। बीमारी के लक्षण जैसे गठिया, हृदय प्रदाह, कोरिया, त्वचा पर चकत्ते, बुखर एवं स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का असामान्य परिक्षण, ई0सी0जी0 मे असामान्य हृदयगती इस बीमारी की पहचान करने में मद्द करते है। बीमारी की पहचान करने में स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का प्रमाण होना आवश्यक होता है।

रयूमैटिक बुखार जैसी और कौन सी बीमारीयाँ है?
स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के बाद होने वाला एक प्रकार का गठिया जिसे पोस्ट स्ट्रेप्टोकोकल रिएक्टिव अर्थराइटिस कहते है। यह भी स्ट्रेप्टोकोकल इनफैक्शन के पश्चात होता है किन्तु यह गठिया लम्बे समय तक चलता है व इसमें हृदय प्रदाह की सम्भावना नही के बराबर होती है। बचाव के लिये एंटिबायोटिक की आवश्यकता हो सकती है। किशोर अज्ञातहेतुक गठिया भी रयूमैटिक बुखार के समान बीमारी है लेकिन इसमें गठिया 6 हफ्ते से लम्बे समय तक चलता है। लाईम बीमारी, लुकीमीया, अन्य बैक्टीरिया एवं वायरस से होने वाले रियक्टिव आर्थटीस मेें भी रयूमैटिक बूखार जैसे लक्षण मिल सकते है। रयूमैटिक बुखार की पहचान को सामान्य हृदय में पाये जाने वाले मरमर, जन्मतः होने वाली हृदय बनावट की खराबी और प्राप्त हृदय विकार से अलग परखना जरूरी है।

परिक्षण का क्या महत्व है?
कुछ परीक्षण बीमारी का पता लगाने व इलाज के लिये जरुरी है। रक्त परीक्षण बीमारी की पहचान के लिये जरुरी है।
दूसरी संधिवातीय बीमारी की तरह इस बीमारी में भी प्रदहन का प्रभाव जाँच पर देखा जा सकता है सिवाय उस स्थिती में जब कोरीया एकमात्र लक्षण हो। स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का पता लगाना जरुरी है। अधिकतर बच्चों में रयूमैटिक बुखार होने के समय गले का स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण खत्म हो चुका होता है और प्रतिरक्षण प्रणाली इस बैक्टीरिया हो गले से निकाल चुकी होती है। इसके लिये गले के नमूने का स्ट्रेप्टोकोकल कल्चर परीक्षण करना चाहिये। संक्रमण की पुष्टि के लिये स्ट्रेप्टोकोकल एंटीबाॅडी की बढ़ी मात्रा बताती है कि जल्दी है कि बैक्टीरिया का संक्रमण हुआ है। ए0एस0ओ0 और डी0एन0एस0 बी(एंटी स्ट्रेप्टोकोकल टाइटर) असामान्य मात्रा बताती है कि बैक्टीरिया का संक्रमण हुआ जिसके खिलाफ एंटीबाडी बनने के लिये प्रतिरक्षा प्रणाली प्रेरित हुई है। 2 से 4 हफ्ते के अंतराल में इन टेस्ट में एंटीबाॅडी की बढ़ी हुई मात्रा संक्रमण की पुष्टी करती है। किन्तु एंटीबाॅडी की मात्रा का रयूमैटिक बुखार की तीव्रता से कोई सम्बन्ध नही है। रयूमैटिक कोरिया से पीडि़त बच्चों में यह टेस्ट सामान्य परिणाम दर्शाती है जिससे बीमारी की पहचान कठिन हो सकती है।
असामान्य मात्रा में बढे हुए ए0एस0ओ0 एवं डी0एन0एस0बी परिणाम केवल यह दर्शाते है कि स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से प्रतिरक्षण प्रणाली उत्तेजीत हुई है और रयूमैटिक बुखार के लक्षण के अभाव में इनका बीमारी के निदान में कोई महत्व नही है। इस लिये इस स्थिती मे एंटीबायोटिक ईलाज की भी आवश्यकता नही हैै।

कार्डीटाइटिस का पता कैसे लगता है?
दिल धड़कने की नयी आवाज, हृदय मे सूजन का मुख्य लक्षण है और इसे आला लगाकर विशेषज्ञ द्वारा पता किया जा सकता है। इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफी में दिल की धड़कन को कागज की पट्टी पर दर्षित किया जाता है और इससे दिल पर प्रभाव की मात्रा जानी जा सकती है। छाती के एक्स-रे से दिल का बड़ा होना दिखाई पड़ता है।
इकोकार्डियोग्राफी, दिल का उल्ट्रासाण्उड है जो दिल पर प्रभाव जानने का बहुत अच्छा तरीका है किन्तु बिना शारीरिक लक्षण के इस बीमारी की पहचान में मदद के लिये नही प्रयोग में लाना चाहिये। यह परिक्षण में बच्चे को किसी प्रकार का दर्द महसूस नही होता किन्तु जांच के समय उसे कुछ समय के लिये शांत रहना जरूरी है।

क्या इस बीमारी से बचाव या इसका ईलाज सम्भव है?
यह बीमारी संसार के कई क्षंेत्रो में एक महत्वपूर्ण समस्या है जिसका बचाव स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण के शूरूआती ईलाज से संभव है(प्राथमिक रोकथाम)। संक्रमण के पश्चात 9 दिनों के भीतर एंटिबायोटिक से ईलाज शूरू करने से रयूमैटिक बुखार के प्रभाव को रोका जा सकता है। रयूमैटिक बुखार के लक्षण का ईलाज नाॅन-स्टेरोईडल एण्टी-इनफ्लामेंटरी दवाईयों से किया जाता है।
टीके पर शोध जारी है जो संक्रमण से बचा कर रयूमैटिक बुखार से बच्चों को बचायेगा। शूरूआती स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से बचाव करने से प्रतिरक्षण प्रणाली पर रोकथाम लगाई जा सकती है। यह दृष्टीकोण रयूमैटिक बुखार की रोकथाम में एक महत्व पूर्ण भूमिका साबित हो सकता है।

किस प्रकार के ईलाज उपलब्ध है?
पिछले कई वर्षों में इस बीमारी के ईलाज में कोई नई प्रकार की अनुशंसा नही हुई है। एसप्रीन ही इसकी मुख्य दवाई है किन्तु यह किस प्रकार असर करती है यह अभी तय नही है। शायद एसप्रीन के एण्टी-ईन्फ्लामेंट्री प्रभाव से यह सम्भव है। अन्य नाॅन-स्टेरोईडल एंटी-ईन्फ्लामेंट्री दवाइयाँ भी रयूमेटिक बुखार के गठिया मेें 6 से 8 हफ्ते या गठिया ठिक होने तक दी जाती है।
तीव्र हृदय प्रदाह में समपूर्ण आराम और कई बच्चों मेे कोर्टीजोन जैसी दवाईयाँ 2 से 3 हफ्ते देने की आवश्यकता है। बीमारी के लक्षण कम होने पर और खून की जांच सामान्य की तरफ दिखाई पड़ने पर यह दवाई क्रमीक मात्रा में कम करके बंद की जा सकती है।
कोरिया से पीड़ीत बच्चों में शारिरीक देख भाल एवं स्कूली कार्य में पालकों का सहयोग जरूरी है। कोरिया के संचलन की रोकथाम कोर्टीजोन, हैलोपेरीडोल और वैलप्रोईक एसीड जैसी दवाईयों से किया जाता है। इनके साईड ईफेक्ट पर विशेष ध्यान रखना जरूरी है। सामान्यतः अधिक नींद आना और थर्रथराहट इन दवाईयों के साईड ईफेक्टस है जिसे दवाई की मात्रा कम करने से नियंत्रीत कीया जा सकता है। कुछ बच्चों में उचीत ईलाज करने पर भी कोरिया का संचलन कई महीनों तक दिखाई पड़ सकता है।
रयूमेटिक बुखार का निदान तय होने के पश्चात इसके पुनः पुनः अटैक से बचाव के लिये लम्बे समय तक एंटीबायोटिक देना आवश्यक है।

दवा के कुप्रभाव क्या है?
कुछ समय तक दी जाने वाली दर्द निवारक दवाओं का कोई विषेष कुप्रभाव नहीं है। पैनीसीलीन इन्जैक्शन से एलर्जी की जोखीम काफी कम बच्चों में होती है परन्तु पहले इन्जैकशन के समय इन पर विशेष ध्यान देना जरूरी हैै। इन्जैक्शन से असहनीय दर्द बच्चें को इन्जैक्शन से दूर रहने का कारण बनता है। इसलिये बीमारी संबंधीत पूर्ण जानकारी, स्थानीय दर्द निवारक दवा एवं इन्जैक्शन पूर्व विश्राम से मरीज को अवगत कराना जरूरी है।

फिर से बीमारी न हो इसके लिये क्या करना चाहिये?
देखा गया है कि दोबारा बीमारी 3 से 5 साल के अंतरगत होती है। हृदय को क्षति इस दौरान ज्यादा हो सकती है। इन कारणों से जिनमे एक बार रयूमैटिक बुखार हो चुका है उनमे बैक्टीरिया संक्रमण रोकना चाहिये, बिना यह देखें कि पहले लक्षण कम थे या ज्यादा।
अधिकतर विशेषज्ञों की राय में एंटीबायोटीक से बचाव रयूमैटिक बुखार के आखरी अटैक के पश्चात 5 साल या बच्चा 21 साल का होने तक जारी रखना जरूरी है। एक बार हृदय प्रदाह से पीड़ीत होने पर माध्यमीक रोकथाम के लिये एंटीबायोटीक कम से कम 10 वर्ष या बच्चा 21 साल का होने तक (इनमे से जो ज्यादा हो) जारी रखना जरूरी है। यदी हृदय के वाल्व क्षतिग्रस्त है तो एंटीबायोटीक 10 वर्ष या मरीज के 40 वर्ष होने तक या वाल्व बदलने की स्थिती में इससे भी अधिक समय तक दी जाती है।
हृदय के वाल्व के क्षतिग्रस्त होने पर मरीज को संक्रमण रोकने के लिये दांत साफ कराने से पहले और शल्य चिकित्सा के पहले ऐंटीबायोटिक दवा अवष्य लेना चाहिये। संक्रमण रोकना जरुरी इसलिये है कि बैक्टीरिया दांत, नाक, मुह आदि अंगों से आकर हृदय को संक्रमित कर सकता है।

क्या इस बीमारी में कोई अपरंपरागत/पूरक ईलाज सम्भव है?
इस बीमारी के लिये कई पूरक एवं वैकल्पिक ईलाज उपलब्ध है जिससे मरीज व उनके परिजन गुमराह हो सकते है। किन्तु उन्हे इस प्रकार के ईलाज संबंधीत फायदें एवं नुकसान की जानकारी होना जरूरी है और कभी-कभी यह समय, बीमारी की तीव्रता एवं पैसे से नुकसान दायक साबीत हो सकते है। यदि कोई वैकल्पिक/पूरक ईलाज करना चाहे तो उन्हें बच्चोें के गठिया रोग विशेषज्ञ से सलाह लेनी चाहिएं। दोनो ईलाज परसपर एक दुसरे पर विपरीत प्रभाव डाल सकते है। विशेषज्ञ की सलाह अनुसार वैकल्पिक उपचार करने में नुकसान से बचा जा सकता है। वैकल्पिक उपचार के चलते गठिया रोग विशेषज्ञ द्वारा दी गयी दवाईयाँ जारी रखना अत्यावश्यक है। कोर्टिजोन जैसी दवाई को एक दम बंद करना बीमारी के लिये हानीकारक हो सकता है। दवाई के बारे में हर जानकारी अपने विशेषज्ञ से जानना अत्यावश्यक है।

मरीज का कब-कब परिक्षण कराना चाहिये?
मरीज को लगातार चिकित्सक की देखरेख मे रहना चाहिये। बीमारी के दोबारा होने पर शारीरिक जाँच व परिक्षण जरुरी है। कार्डीटाइटिस व कोरिया होने पर मरिज को जल्दी-जल्दी चिकित्सक का परामर्ष लेते रहना चाहिये। लक्षण समाप्त होने के पश्चात, बचाव के लिये दवा और ठीक से समय-समय पर चिकित्सक से परामर्श जरुरी है जिससे कि हृदय की क्षति का पता लग सके।

यह बीमारी कितने समय तक रहेगी?
बीमारी के तत्काल लक्षण कुछ ही दिन या हफ्तों मे ठिक हो जाते है किन्तु रयूमैटिक बुखार दोबारा होने की सम्भावना बनी रहती है, जिससे हृदय क्षतिग्रस्त हो सकता है और लम्बे समय तक लक्षण बने रह सकते है। गले के स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से बचाव के लिये कई वर्षो तक एंटीबायोटीक ईलाज लेना जरूरी है।

इस बीमारी का भवीष्यफल किस प्रकार है?
लक्षणों का पलटना या उनकी तीव्रता का पूर्वानुमान लगाना कठीन है। सर्वप्रथम आने वाले रयूमैटिक बुखार अटैक में यदि हृदय प्रदाह होता है तो हृदय क्षतिग्रस्त होने की सम्भावना अधिक होती है किन्तु कई मरीजों में यह हृदय प्रदाह पहली बार में ही पूरी तरह से ठीक हो सकता है। क्षतिग्रस्त हृदय वाल्व के लिये शल्यचिकित्सा द्वारा बदलना जरूरी होता है।

बीमारी पूर्ण इलाज संभव है?
हाँ, बीमारी का पूर्ण इलाज संभाव है सिवाय उन व्यक्तियों में जिनके हृदयके वाल्व क्षतिग्रस्त हो गये है।


दैनिक दिनचर्या

रोजमर्रा की जिंदगी कैसी होगी?
कार्डीटाइटिस व कोरिया के मरीजों को परिवार का सहयोग मिलना चाहिये। मुख्य लक्षण कम होने पर यदि हृदय में क्षति नहीं है तो रोजमर्रा के कामकाज पर प्रभाव नही पड़ता।
मुख्य चिंता का विषय एंटीबायोटिक दवाओं की रोकथाम के साथ लम्बी अवधि के अनुपालन का है। प्रथिमक देखभाल सेवाओं को शामिल किया जाना चाहिए और शिक्षा के लिये विशेष रूप से किशोरों के लिये, उपचार के साथ अनुपालन में सुधार करने की जरूरत है।

क्या यह बच्चे स्कूल जा सकते है?
यदि समय-समय पर परामर्श से हृदय की गती सामान्य पाई जाती है तो यह बच्चें सामान्य बच्चों की तरह स्कूल एवं उनकी दैनिक गतिविधियां कर सकते है। बच्चें को सामान्य गतिविधियां करने में पालक एवं शिक्षकों का पूर्ण सहयोग होना चाहिएं जिससे बच्चे की पढ़ाई में सफलता बनी रहे और वह अपने समवयस्कों मे घुलमिलकर रहे। रयूमैटिक कोरिया के संचलन के चलते स्कूली पढ़ाई में कुछ दिनों की रूकावट आना अनिवार्य है और शिक्षक एवं पालक को 1 से 6 माह तक इसमें सहयोग करना आवश्यक है।

खेलक्रंीडा सम्भव है?
बच्चो की सामान्य दिनचर्या में खेलक्रींडा का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। बीमारी के ईलाज का एक महत्वपूर्ण अंग यह भी है कि बच्चें को सामान्य दिनचर्या उपलब्ध कराई जाये, जिससे वह अपने समवयस्कों से अलग ना हो। बच्चे की क्षमता अनुसार वह खेलक्रींडा मे भाग ले सकता है। केवल बीमारी के तीव्र लक्षणों के समय बच्चें को सम्पूर्ण आराम एवं प्रतिबंधित शारिरीक गतिविधि करना आवश्यक है।

खानपान कैसा होना चाहिये?
खानापान से इस बीमारी पर प्रभाव का कोई प्रमाण नहीं है। बच्चों को अन्य सामान्य बच्चों की तरह पूर्ण पोषित आहार मिलना चाहिये। बढ़ती उम्र वाले बच्चों को आहार में पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, कैलश्यिम और विटामीन मिलना चाहिये। कोर्टिजोन लेने वाले बच्चों को भूख अधिक लगती है किन्तु इन्हे अधिक खाने से दूर रहना चाहिये।

मोसम का इस बीमारी पर क्या असर होता है?
मोसम का इस बीमारी पर प्रभाव होने को कोई अनुमान नही है

क्या टीकाकरण किया जा सकता है?
हर बच्चें के जरूरत अनुसार विशेषज्ञ टीकाकरण समय सारणी तय कर सकते है। टीकाकरण का इस बीमारी पर कोई सीधा प्रभाव नही पड़ता। प्रतिरक्षण प्रणालि को दबाने वाली दवाई लेने वाले बच्चों को वह टीके जो जीवित बैक्टीरिया/वायरस से बने है उनसे वंचित रखना जरूरी है, क्योंकि ऐसे बच्चों कों तीव्र स्वरूप के इन्फैक्शन होने की सम्भावना होती है। इन बच्चों में मृत बैक्टीरिया/वायरस से बने टीके लगाना सुरक्षीत माना जाता है।
ऐसे बच्चे जिनका प्रतिरक्षण प्रणाली पर दबाव वाली दवाईयों से ईलाज चल रहा हो, विशेषज्ञ को इनका टीकाकरण के पश्चात उससे संबंधीत एंटीबाॅडी की मा़त्रा को नापने वाली जांच कराने की सलाह देनी चाहिये।

यौन जीवन, गर्भधारण और जन्म नियंत्रण में कोई समस्या?
इस बीमारी का यौन जीवन और गर्भधारण पर कोई सीधा प्रभाव नही पड़ता। फिर भी बीमारी के ईलाज में ली जाने वाली दवाईयों का गर्भस्थ शिशु पर असर होने कि सम्भावना का विशेष ध्यान रखना चाहिएं। जन्म नियंत्रण एवं गर्भधारण की सम्पूर्ण जानकारी अपने विशेषज्ञ से प्राप्त करनी चाहियें।


स्ट्रेप्टोकोकल से जुड़ा रिऐक्टिव अर्थराइटिस

क्या है?
बच्चों एवं वयस्को में स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण से जुड़ा अर्थराईटिस का वर्णन किया गया है। इसे पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस कहा जाता है।
पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस 8 से 14 वर्ष आयु के बच्चों एवं 21 से 27 वर्ष के युवा वयस्कों में पाया जाता है। गले के संक्रमण के पश्चात 10 दिन के अंतर्गत मे इसके लक्षण पाये जाते है। इस बीमारी में बड़े जोड़ांे के अलावा, हाथ के छोटे जोड़ एवं रीढ़ की हड्डी पर भी असर होता है। रयूमैटिक बुखार वाले आर्थराईटिस के मुकाबले यह अर्थराईटिस 2 महिनें या अधिक समय तक चलता है।
इसके साथ हल्का सा बुखार एवं प्रदाह दर्शाने वाली जांच जैसे (सी0आर0पी, ई0एस0आर0) में खराबी आ सकती है। किन्तु इनकी मात्रा रयुमैटिक बुखार की तूलना में कम होती है। अर्थराईटिस, नव स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण का प्रमाण, असामान्य स्ट्रेप्टोकोकल एंटीबाॅडी जांच ( ए0एस0ओ0 डी0एन0एस0बी) एवं "जोन्स क्रायटेरिया" के लक्षणों का अभाव ही पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस के निदान का आधार है।
पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस एवं रयूमैटिक बुखार दो विभीन्न बीमारीयाँ है। पोस्ट- स्ट्रेप्टोकोकल अर्थराइटिस वाले मरीज में हृदय प्रदाह नही होता है। रोकथाम के लिये अमैरीकन र्हाट असोसियेशन ने लक्षण के शुरूआत के पश्चात एक साल तक एंटीबायोटीक देने की सलाह दी हैै। इन मरीजों में हृदय प्रदाह का परिक्षण एवं एकोकार्डीयोग्राफी जांच से ध्यान रखना जरूरी है। हृदय प्रदाह पाये जाने पर इनका ईलाज रयूमैटिक बुखार के जैसा करना चाहिये। 1 वर्ष तक हृदय प्रदाह न होने पर एंटीबायोटीक दवाइयां बंद की जा सकती हैै। हृदयरोग विशेषज्ञ के सम्पर्क मे रहना आवश्यक है।


 
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